मर्यादा
जीवन निर्वाह के नियमों को संतुलन में रखने वाली निर्धारित सीमा रेखा को मर्यादा कहा जाता है । इन्सान को सर्वप्रथम अपनी मर्यादाएं समझना आवश्यक है । इन्सान की मर्यादा स्वभाव, व्यवहार एवं आचरण पर निर्भर करती है । आचरण की मर्यादा इन्सान के अपराधी होने से ही भंग नहीं होती अपितु झूट बोलने, बुराई का साथ देने, उधार लेकर ना चुकाने, बहाने बनाने, आवश्यकता पड़ने पर गायब होने, नशा करने, जुआ, सट्टा जैसे अनुचित कार्य करने जैसे अनेकों कारण भी खराब आचरण प्रस्तुत करते हैं । इन्सान के जीवन में परिवार की मर्यादा बनाए रखना अत्यंत आवश्यक होता है । मोह, लोभ, काम, क्रोध, अहंकार, ईर्षा, घृणा, कुंठा, निराशा, आक्रोश, प्रेम, श्रद्धा, शक, विश्वास, ईमानदारी, परोपकार, दान, भीख, चंदा, स्वार्थ, चापलूसी, आलोचना, बहस, तर्क, कोई भी विषय हो जब तक मर्यादा में रहता है कभी हानिप्रद नहीं होता परन्तु मर्यादा भंग होते ही समस्या अथवा मुसीबत बन जाता है । किसी भी प्रकार की मर्यादा भंग करने से किसी ना किसी इन्सान से द्वेष आरम्भ हो जाता है तथा समस्याएँ उत्पन्न होना आरम्भ हो जाती हैं ।
-अश्विनी कुमार मिश्रा