कवि: शिवदत्त श्रोत्रियबेटी तुम्हारे आँचल में जहां की खुशियां भर देती हैतुम्हारी चार दीवारों को मुकम्मल घर कर देती है ॥बेटी धरा पर खुदा की कुदरत का नायाब नमूना हैबेटी न हो जिस घर में, उस घर का आँगन सूना है ॥बेटी माँ से ही, धीरे-धीरे माँ होना सीखती जाती हैबेटी माँ को उसके बचपन का आभास कराती है ॥बेटी