कामना
गीत
विधि-विधन हो मधुमय मृदुल मनोहर।
आलोकित हो लोक अधिकतर
हो काल विपुल अनुकूल सकल कलि-मल टले॥1॥
विमल विचार-विवेक-वलित हो मानस।
पाये तेज दलित हो तामस।
मंजुल-तम ज्ञान-प्रदीप हृदय-तल में बले॥2॥
हो सजीवता सर्व जनों में संचित।
क न कोमल प्रकृति प्रवंचित।
भावे भावुकता भूति भाव होवें भले॥3॥
कर न सके भयभीत किसी को भावी।
साहस बने सुधारस-स्रावी।
दिखलावे सबल समोद दुखित दल दुख दले॥4॥
मद-रज से हों मानस-मुकुर न मैले।
बंधु-भाव वसुधा में फैले।
मानवता का कर दलन न दानवता खले॥5॥
मर्म हृदय का हृदयवान् जन जाने।
ममता पर ममता पहचाने।
बन धर्म धुरंधर लोक-कर्म-पथ पर चले॥6॥
जगा जीवनी-ज्योति जातियाँ जागें।
अनुरंजन-रत हो अनुरागें।
भव-हित-पलने में देश-प्रेम प्रिय शिशु पले॥7॥
विपुल विनोदित बने सुखित हो पावे।
सुर-वांछित वैभव अपनावे।
पहुँचे पुनीत तम सुजन देव-पादप-तले॥8॥
द्रवित मोम सम पवि मानस हो जावे।
कूटनीति तृण-राशि जलावे।
होवे हित-पावक प्रखर प्रेम-पंखा झले॥9॥
छिले न कोई उर न क्षोभ छू जावे।
शान्ति-छटा छिटकी दिखलावे।
छल करके कोई छली न क्षिति-तल को छले॥10॥
सब विभेद तज भेद-साधना जाने।
महामंत्र भव-हित को माने।
अभिमत फल पाकर साधक जन फूले-फले॥11॥
शिखरिणी
दिवा-स्वामी होवे रुचिर रुचिकारी दिवस हो।
दिशाएँ दिव्या हों सरस सुखदायी समय हो।
मयंकाभा होवे सित-तम महा मंजु रजनी।
सुधा की धारा से धुल-धुल धरा हो धवलिता॥12॥
भले भावों से हो भरित भव भावी सबलता।
स्वभावों को भावें भुवन-भयहारी सदयता।
सदाचारों द्वारा सफलित बने चित्त-शुचिता।
सुधारों में होवे सुरसरि-सुधा-सी सरसता॥13॥