आज मेरे बेटे का १०वीं सीबीएसई बोर्ड का आखिरी पेपर था। जब मैं शाम को ऑफिस से घर आयी तो मुझे उसके चहेरे पर रौनक दिखाई दी। आखिर रौनक आती क्यों नहीं, अब जाकर तो बेचारे को पिछले माह की २७ तारीख से आज दिनांक तक भीषण गर्मी में १५ कि.मी. दूर जाकर पेपर देने से छुटकारा जो मिल गया था। मुझे भी बड़ी राहत मिली कि चलो बेटे के सभी पेपर हो चुके हैं और सभी अच्छे से गए हैं। हर दिन बड़ी फिक्र लगी रहती थी। अब मुझे उसके आगे की पढ़ाई और कम्पटीशन की तैयारी करवानी की थोड़ी चिंता हैं। मुझे उसकी चिंता करते देख मेरी बिटिया कहती है कि माँ भैया अब तो बड़ा हो गया है, वह बच्चा थोड़े ही है, इसलिए उसकी चिंता करने की जरुरत है। उसे क्या करना है उस पर छोड़ दो। बिटिया की बातें सुनकर मुझे उसका बचपन याद आ रहा है, जब वह ३ साल का था तो वह घर की फर्श पर चाक से आड़ी -तिरछी रेखाओं से कोई चित्र बना रहा था, जिसे देख मेरी बिटिया मेरा हाथ पकड़कर उसकी वह करतूत दिखाकर कहती कि- देखो मम्मी ! भैया ने कितनी गोदागादी कर दी है, आप इसे भी मेरे साथ स्कूल क्यों नहीं भेजती? बड़ा हो गया है वह! बच्चू जब स्कूल जायेगा तो ये गोदागादी सब भूल जायेगा! जिस पर मैंने तब एक छोटी से कविता लिखी थी, जिसे आज की दैनन्दिनी में प्रस्तुत कर रही हूँ। आशा है आप लोगों को भी अच्छी लगे.............
मम्मी देखो! पापा देखो!
भैया मेरा बड़ा हुआ
देखो जरा फर्श तो देखो
इसने कितना गोद दिया
जाकर बाज़ार से अब
स्लेट-बत्ती ला दो
पकड़कर हाथ इसका
ABCD सिखला दो
रात को जल्दी सुलाकर इसे
सुबह जगाना न जाना भूल
मेरे संग-संग मेरा भैया भी
अब जायेगा स्कूल