स्वच्छ भारत अभियान को लेकर कितने भी स्लोगन लिखवा लो, पोस्टर छपवा लो, अखबारों या टीवी में विज्ञापन चलवा दो या फिर घर-घर से नगर निगम की कचरा उठाने वाली गाड़ी में लाउड स्पीकर में जोर-जोर से गाने बजवा-बजवा लोगों की कान दुखवा लो, लेकिन बहुत से लोगों के कानों में तब भी जूं तक नहीं रेंगने वाली। जाने कौन से मिट्टी के बने होते हैं ऐसे लोग जो शहर को अपना कचरा घर समझ बैठते हैं। यूँ तो शहर में स्वच्छ भारत अभियान के चलते साफ़-सफाई के खूब ढोल पीटे जाते हैं और सर्वेक्षण के दौरान थोड़ा-बहुत साफ़-सफाई भी दिखाने के लिए होती हैं, लेकिन वीआईपी और वीवीआईपी के अलावा कुछ जगहों को छोड़ दें तो गन्दगी हर जगह पसरी मिल जाती है। घनी आबादी वाली बस्तियों में तो बुरा हाल रहता है, यहाँ तक स्वच्छता अभियान आ ही नहीं पाता है। घनी आबादी वाली बस्तियों के अलावा सरकारी कालोनियों का कम बुरा हाल नहीं रहता है। हमने अपने घर के आगे तो स्वच्छता के अभियान को चार चाँद लगा रखे हैं। आँगन हो या सीढ़ियों या फिर हमारा बगीचा सब चकाचक हैं। लेकिन घर के पीछे वाले हिस्से का हाल मत पूछो, ऊपरी मंजिल में रहने वालों के मेहरबानी से गन्दगी का ऐसा नज़ारा देखने को मिलता है, बस देखते ही रह जाओ। पीछे बने चेम्बर तो नज़र ही नहीं आ रहे हैं। इसी को देख हमने पहले तो पीडब्लूडी में शिकायत की तो वे वहां कचरा देख यह कहकर भाग खड़े हुए कि पहले नगर निगम से साफ़-सफाई कराओ तभी चेंबर की सफाई हो पाएगी। नगर निगम में शिकायत की तो आजकल-आजकल करते दो दिन बाद उनका फ़ोन आया कि हमने कचरा उठा लिया, गीला कचरा जब सूखेगा तभी साफ़ होगा। अब जब हमने चेक किया तो वहां कचरा वैसा का वैसा। हमने फिर उन्हें फ़ोन मिलाया तो उनका कहना था कि शायद दूसरी जगह की सफाई कर ली होगी। अब घर का पता, जोन नंबर, वार्ड नंबर, एक-एक जानकारी वे पूछते हैं फिर लिखते भी हैं , फिर भी देखिये सही जगह पर नहीं पहुँच पाते हैं, इसे क्या कहेंगे? दुबारा शिकायत करने पर कहने लगे कि ऊपरी मंजिल में रहने वालों के नाम से शिकायत करो तो हम उन पर फाइन लगाएंगे तो हमने उन्हें कहा कि जरूर लेकिन वे खुद आये और चेक करे और फिर फाइन जरूर लगाएं क्योंकि वे तो सुधरने से नहीं। हम तो कहते-कहते थक गए। अब उन्होंने कल सुबह आने को कहा है देखते हैं क्या करते हैं? क्या वे अच्छे से सफाई करते हैं या नहीं और क्या वे बिल्डिंग में कचरा फेंकने वालों पर फाइन कर पाते है कि नहीं, यह देखना बाकी होगा। क्योंकि उन पर क्या विश्वास करें, जो खुद ही सड़क पर कचरे को देखकर उठाने के जहमत नहीं करते हैं। हम तो ठहरे सफाई के ठेकेदार अपना कर्त्तव्य समझकर पूरे मोहल्ले का कचरा ढोते फिरते हैं। सरकारी बिल्डिंग में सबसे नीचे तल पर रहने वालों को ऊपरी मंजिल में रहने वालों की वजह से कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, यह वे सभी लोग अच्छे से समझ सकते हैं जो निचले तल पर रहते हैं या कभी रहें होंगे।
इस बारे में आप क्या कहेंगे? क्या आपके शहर का भी ऐसा ही हाल है या आप इस मामले में खुशहाल हैं? जरूर बताएं।