जब हमें एक-एक कर सहयोगी मिलते चले जाते हैं, तब हमारे लिए कोई भी काम कठिन नहीं रह जाता है। अभी तीन दिन पहले मैंने दैनन्दिनी में दान-पहल की ख़ुशी की बात लिखी थी। जिसमें मैंने बताया था कि हमारे उत्तराखंड के गांव में विभिन्न कार्यक्रमों में काम आने वाली सामग्री की आवश्यकता के लिए वहां के ग्राम प्रधान ने प्रवासियों द्वारा स्थापित ग्राम सुधार समिति नाम के व्हाट्सएप ग्रुप में लिखा कि उन्हें गांव के लिए जरुरी सामान खरीदी के लिए पैसों की आवश्यकता है, जिसमें मैंने उन्हें सामान की सूची तैयार कर पोस्ट करने को कहा तो उनके द्वारा पोस्ट किये जाने पर मैंने उस सूची में से २ पतीलों को अपनी ओर से दान का कहकर और लोगों से भी अपील की कि वे भी इसी तरह अपनी सामर्थ्यानुसार सामान दान देने के लिए आगे आये। आज मुझे ख़ुशी है कि मेरी यह पहल सार्थक हो रही है और जिस सामान की गांव के लोगों को जरुरत थी उसे ग्रुप के सदस्य एक-एक कर आगे आकर दान में देते हुए धीरे-धीरे उसकी पूर्ति करते चले जा रहे हैं। इस बारे में मैंने आज फिर ग्राम प्रधान को एक अपील लिखकर उनके तरफ से ग्रुप में डालने को कहा है, ताकि उनके कहे अनुसार लोगों में जागृति आये। क्योंकि मैं जानती हूँ लोगों को जब तक एक-एक को जगाओ नहीं, वे जागते नहीं हैं। वे एक-दूसरे को सोते देख सोते हैं और जागते देख जाग जाते हैं। देखा-देखी ही सही इससे गांव का भला ही होगा, यह बात मैं अच्छे से समझती हूँ।
मैंने ग्राम प्रधान के माध्यम से उन्हें प्रेरित करने के लिए जो लिखा है, उसका संक्षेप रूप कुछ इस प्रकार है। गांव की भलाई सभी लोगों की साझेदारी से संभव हो सकेगी। गांव के लिए कुछ करने का जज्बा जब किसी के भी मन में आएगा तो उसके संकीर्ण विचार स्वयमेव ही समाप्त हो जाएंगे। हृदय में आत्म विश्वास जागृत होगा। एक-दूसरे के विचार-भावनाओं में सामंजस्य बैठेगा और परस्पर एक-दूजे के लिए समर्पित भाव होंगे तो गांव के विकास का मार्ग खुल जायेगा। क्योंकि कोई भी गांव, परिवार हो, पाठशाला हो, मित्र मंडली हो, मोहल्ला हो, समाज हो, क्षेत्र हो अथवा देश हो- सबकी उन्नति-समृद्धि की नींव आपसी सहयोग और प्रेम-भाव पर ही है- नफरत, नकारात्मक सोच तो अवन्नति का ही मार्ग है। यह सार्वभौमिक सत्य है जहाँ आपसी सहयोग, प्रेम-स्नेह का घर होगा वहां स्वार्थ-लालच का भाव नहीं पनपेगा। पारस्परिक सहयोग और स्नेह-भाव को मूर्त रूप देने के लिए समितियां गठित की जाती हैं। लेकिन यदि उन्हें नए मुकाम, सर्वोन्मुखी प्रगति की ओर बढ़ना है, तो इसके लिए यह जरुरी होगा कि वे अपने उदासीन रवैए को तिलांजलि देते हुए, स्वार्थगत, पूर्वाग्रहगत, अहमगत भाव से बंधनमुक्त होकर गांव के चौमुखी विकास की ओर ले जाने हेतु कदम से कदम मिलकर चले। इसके लिए जो जहाँ भी हो, अपनी सामर्थ्य और क्षमता के साथ स्व एवं ग्राम-परिवार के सर्वोन्मुखी विकास/प्रगति हेतु पूर्ण निष्ठा के साथ सहयोग कर सकता है। यदि हर व्यक्ति 'आत्म दीपो भव' की परिकल्पना के साथ गांव का सच्चा सेवक बनकर और नित्य नए उत्साह के साथ गांव की सेवा के लिए आगे आएगा तो एक जुट, एक मुठ की पारस्परिक एकता गांव को एक आदर्श ग्राम बना देगा। क्योंकि सबको यह समझना जरुरी है कि हमारा समाज हाथ की पांच उंगलियों के समान है। जहाँ कोई छोटी है, कोई बड़ी, सभी असमान हैं, लेकिन हाथ से किसी चीज को उठाना है तो पांचों इक्ट्ठा होकर उठाती है। इस प्रकार पांचों उंगलियों के सहयोग से हाथ काम करता है। उसमें से एक भी छूट जाए अथवा असहयोग कर बैठे तो कार्य सुगमता से नहीं हो पाता है। एक के लिए सब और एक सबके लिए एक, एकता की पहचान है। उद्देश्य, विचार आदि में सब लोगों का मिलकर एक होना एकता है। जलती हुई लकड़ियां अलग अलग होने पर धुआं फेंकती हैं और एक साथ होने पर प्रज्वलित हो उठती हैं। पानी की एक बूंद यदि आग में पड़ जाय तो अपना अस्तित्व खो बैठती हैं, पर यदि हजारों बूंद मिलकर उस पर पड़ती है तो उसे बुझा देती है। विचार और उद्देश्य की एकता के कारण आज कई गांव आदर्श ग्राम बन गए। विभिन संगठनों की शक्ति उनकी एकता में ही निहित होतीे है। जिस परिवार, समाज, दल या राष्ट्र में लोग अपना अपना राग आलापेंगे, अपनी डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग अलग बनाएंगे, अपने स्वार्थ हेतु भेद बुद्धि पैदा करेंगे, तो निश्चय ही वहां अकेला चला भाड़ नहीं फोड़ सकेगा। सबकी एकता और हर एक सदस्य के सहयोग से ही कोई भी ग्राम एक आदर्श ग्राम की पहचान बना सकता है।