(भृंग छंद)सँभल सँभल चरण धरत, चलत जिमि मराल।बरनउँ किस विध मधुरिम, रसमय मृदु चाल।।दमकत तन-द्युति लख कर, थिर दृग रह जात।तड़क तड़ित सम चमकत, बिच मधु बरसात।।शशि-मुख छवि अति अनुपम, निरख बढ़त प्यास।रसिक हृदय मँह यह लख, जगत मिलन आस।।विरह विकल अति अब यह, कनक वरण नार।दिन निशि कटत न समत न, तरुण-वयस भार।।अँखियन थक