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भृंग

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(भृंग छंद)सँभल सँभल चरण धरत, चलत जिमि मराल।बरनउँ किस विध मधुरिम, रसमय मृदु चाल।।दमकत तन-द्युति लख कर, थिर दृग रह जात।तड़क तड़ित सम चमकत, बिच मधु बरसात।।शशि-मुख छवि अति अनुपम, निरख बढ़त प्यास।रसिक हृदय मँह यह लख, जगत मिलन आस।।विरह विकल अति अब यह, कनक वरण नार।दिन निशि कटत न समत न, तरुण-वयस भार।।अँखियन थक

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