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बीतें लम्हें (भाग दो)

13 सितम्बर 2024

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दूसरा संस्करण ----
    
   बाज़ार से सामान खरीदा।घर लौटते समय पुराने पड़ोसी मिल गये और उनके घर जाना हुआ।
 हंसी खेल में ना जाने कब समय व्यतीत हो गया।
   इधर बच्चों ने घेरा बना कर शोरगुल मचाना शुरू किया तभी आवाज कानों में सनसनी सी फैल गई सभी डर गयें।
    आवाज़ तेज़ होती जा रही है, जबकि ऐसा नहीं था कभी यह क्या हो रहा है।
पता नहीं चला।
पूरा दिन डर में बीता। सुबह होते ही पूजा अर्चन करना शुरू कर दिया पूजारी भी आयें कथा शुरू हुयी, प्रसाद वितरण किया गया। सभी ने हाल जानना चाहा अब क्या ही बतायें कि डर गयें हैं सभी कहीं तों कुछ भूतिया स्थान है जों पता नहीं चल पा रहा है।
अगले ही पल तबियत ख़राब होने लगी बाथरूम में गये और चक्कर आने लगा तभी एक डरावना चेहरा की झलक देखी और किसी तरह से बिस्तर पर हनुमान चालीसा पाठ करतें हुए सोने की कोशिश करने लगे।
  आधी रात को प्यास लगी अगल बगल देखा सभी गहरी नींद में सो रहे थे। किसी तरह खुद को समभाला और जैसे ही उठने की कोशिश करने लगे एक जवान लड़की बालों को खोले हुये मेरी तरफ घूर रही थी।
  क्या और कैसे यह दिख रहा था कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं थे।
अगले दिन उठें सांस में सांस आई जिंदा होंने से खुशी हुई।
बस कुछ ही समय बीता था कि तबियत भारी होने लगी और चल दिया काफ़िला एडमिशन लेने,
 चारों तरफ़ चक्कर काटते हुए एक अस्पताल ने एडमिट किया फिर निकाल भी दिया कुछ पता नहीं चला हुआ क्या।
  अब क्या करें?
 तबियत बिगड़ती जा रही थी दूसरे में गये वहां भी नहीं लिया फिर तीसरे में गये वहां लिया गया जांचें कि खत्म ही नहीं हो रही थी, हुआ क्या है?.
  रिजल्ट घोषित कर दिया गया, लीवर इन्फेक्शन, पीलिया हुया, उल्टियां बंद नहीं हो रही थी,
चलों जान में जान आई कम-से-कम कक्षा तों मिली और वो भी ICU emergency ward wah with oxygen 
   क़सम से फिल्मों जैसे ही अनुभव हुआ।
   जों है यहां जी भर जियो 
अब बाकी जों भी संगी साथी पति, रिश्ते दार सभी ने अंतिम विदाई की तैयारी में प्रथम चरण शुरू किया 
   हाय हाय ओ रे कैसे भवा 
और हम मानों सबसे बड़े युद्ध में लेटे हुए संगीत का आंनद उठा रहे थे,और आक्सीजन मास्क लगाएं इशारों में पूछ रहे थे कि कौन चला गया काहे रोये रहें हैं,
तभी बच्चों ने भी दुलार शुरू किया। भई वाह वाह 
इतना ही देख कर हम फिर बेहोश हो गए।
जल्दी से सभी को बाहर जाने कों कहा गया हमें शिफ्ट करने की तैयारी शुरू हों गयी 
अब कहां का सफ़र तय हो रहा था पता नहीं बस दिल, दिमाग काम नहीं कर रहा था।
 ख़ैर वहां भी गज़ब परिणाम मिला अब जायें चाहें जहां,
उन्होंने हाल देखकर पैसे बचाने कों कहा:
   सबकी सांसें थम गयी 
बस एक हम तब भी हंस रहे थे सभी कों देख कर खुश थे बस बेटे की परीक्षा थी इसलिए उसे नहीं देखा।
ख़ैर चल पड़े आगे लखनऊ पहुंचे, पीजी आई में रात्रि को आठ बजे हालत और हालात दोनो ही बिगड़ रहें थे बस हम बच्चों को याद करते हुए कहा कि सब ठीक है,
  किंतु नियती को तरस नहीं आया और वहां से भी निकलना पड़ा,बेड खाली नहीं था हालत बिगड़ती जा रही थी। इधर आक्सीजन का सिलेंडर भी खत्म हो रहा था कुछ भी दिखाई दे रहा था।
  सभी बहुत परेशान हों रहे थे।
  इधर बच्चे अकेले क्या खाया क्या नहीं कुछ पता नहीं।
तभी किसी ने भाग्य को पकड़ रखा था शायद,
और किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में जगह मिली,
  अन्दर गये जांच शुरू और इंटरव्यू भी, क्या खाया,कब उल्टियां हुयी वग़ैरह वग़ैरह,
शुक्र है वहां मर्ज पकड़ कर इलाज सही दिशा में शुरू किया गया तीन दिन आसीयू में आक्सीजन मास्क लगाएं पड़े रहे।
   कई बोतल खून चढ चुका था।
फिर सभी के चेहरों पर मुस्कान दिखाई दीं।
सभी डाक्टर ख़ुश थे नर्स भी बधाई दे रही थी आप ख़तरे से बाहर निकल आईं।
  अब छठे दिन खुद से उठने लगी, बच्चों से चोरी-चोरी वीडियो कांफ्रेंसिंग में बातें की, सभी रो रहे थे।
बस दो दिन और लगेंगे फिर हम ठीक।
  एक हफ्ते बाद में लखनऊ से प्रयाग राज़ आयें बच्चे तों मानसिक रूप से थकें थें ऊपर से बोर्ड का पेपर भी हाईस्कूल वा इंटर दोनों।
 ख़ैर जान सलामत थी
दो महीने तक सभी ने घर संभाला और हमें भी,तीन महीने बीत चुके थे। हम भी ढीक से कोशिश करने लगे कि पहले जैसें ख़ान पान और स्वस्थ रहें।
  रिजल्ट आया बच्चों ने टांप किया था। खुशियां बरसने लगीं और स्वास्थ्य सुधरने लगा।
   तकलीफ़ भी कभी बता कर नहीं आती किंतु पिछले दो साल से एक नया नजरिया जागा, अस्पताल में जीना सिखाया जाता है और हम हर छोटी बात में ख़ुद को कितने बार मार चुके होते हैं, वहां जीवन की घड़ियां इक इक पल जीना की राह कों संजोने वाले बहादुर नर्स वा डॉ.जो ख़ुद की परवाह नहीं करते दिन रात हंसते मुस्कुराते हुए मरीजों को जीवन देने की पूरी कोशिश करने में सहायक होते हैं, यही देखा।
  दिन बीतते गए और हमें लेखनी ने प्रेरित किया कि पुनः सक्रिय हो जाओ वह लिखों जों जीवंत है, पेड़ बचायें, मृदा संरक्षण, वायु, हरियाली, खुशियां,और हम रचनाकार बनते चले,
   प्रेम वास्तविक में महसूस करने पर ही मौत खींच रही थी किंतु ईश्वरीय कृपा, मां दुर्गा की शक्ति ने हमें नवजीवन प्रदान किया, अनेक बार रात्रि में धन्यवाद कर के सोते हैं,आप सभी भी हर पलों को जीतें हुए दैवीय शक्तियों को प्रणाम व अपने ईष्ट कों धन्यवाद देते हुए सोया वा जागा करिये।
                      --नीलम द्विवेदी नील, प्रयाग राज़ उत्तर प्रदेश भारत।
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रचनाएँ
नीलम द्विवेदी की डायरी "काव्यांजलि"
5.0
" काव्यांजलि "यह पुस्तक विभिन्न मनोभावों को लयबद्ध तरीके से प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास है। हमारे माता-पिता एवं मित्रों का बेहतरीन सहयोग प्राप्त हुआ जिस परिणाम स्वरूप हमने मां सरस्वती को ध्यान कर लेखनी को गति प्रदान करने की शुरुआत की है। काव्यांजलि में प्रत्येक पलों को गढ़ने की अनोखी पहल की है आशा करतीं हूं कि हमारे पुस्तक प्रेमियों को नव रचनाकारों की शुरुआत हुई इस लेखनी को अवश्य प्रेरणा मिलती रहेंगी। काव्यांजलि में कोशिश की है कि प्रत्येक रंगों से सराबोर हो कर सभी रसों का स्वागत एवं अभिनन्दन किया गया है। हम पुनः शब्द इन के द्वारा चलाए जा रहे यह व्यापक मंच का हार्दिक स्वागत एवं आभार व्यक्त करतें हैं जहां प्रत्येक साहित्य प्रेमी अपनी लेखनी कों आकार देने में समर्थ बनने की पूर्ण कोशिश कर सकतें हैं। रचनाकार ***** नीलम द्विवेदी "नील"***
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