शिक्षा पर जितना भी लेख लिखा जायें वह कम हीं है,हर पल नये नये आयामों को गढ़कर नित नित नए प्रयोग सामने आ रहे हैं। अनेकों पहलुओं पर विचार रखें
जिससे शिक्षा में उच्च अंक वा पद प्राप्त हों वा वह शिक्षा
जीवकोपार्जन में सहायक हो।
अनेक लेखों में सभी लेखकों के अपने विचार व्यक्त है
किंतु सत्यता यही है कि आज़ के नवीनीकरण युग में वही
शिक्षा पूर्ण रूप से फलित हैं जहां व्यवहारिक रूप में भी
दिखाई दे।
कभी कभी आज़ भी ऐसे लोग हैं जो शिक्षा में बाधक बन
जातें हैं,कि यह एक अजीब सी बात प्रतीत होती है।
आज के सभ्य समाज में महिलाओं एवं पुरुषों को
बराबरी का दर्जा दिया गया है।
यदि फिर भी यदि कोई भी ऐसा घर हैं जहां सिर्फ एक
झलक में नकारा जायें तों मानसिक रूप से यह बहुत
अजीब बात मानी जाती है।
बेटियों को, महिलाओं को पूर्ण रूप से स्वतंत्र बनाने
वालीं सभी शिक्षकों को भी सम्मानित किया जाता रहा है।
समाज में यदि महिला अपने पैरो पर खड़ी रहेंगी तों वह एक मजबूत सशक्त रूप से अपने बच्चों को भी काबिल बना सकतीं हैं, समयावधि में जरूरतें बढ़ती है, ऐसे में पुरुष के सहभागिता में महिला भी घरेलू खर्च में, अन्य कार्यों में धन का योगदान दें कर उस खर्च कों सन्तुलित
कर सकतीं हैं।
यह शिक्षा कों लगातार पढ़ने से, समझने से उसी शिक्षा को अम्ल में लाने से ही सम्भव है।
एक महिला यदि शिक्षा से योग्यता प्राप्त करतीं हैं तों उसका परिवार भी सम्मान प्राप्त करता है।
इसीलिए कहा गया हैं कि शिक्षा पूर्ण रुप में चमकता सितारा हैं जों प्रत्येक क्षेत्र में योग्यता अनुसार ख्याति प्राप्त
करता है।
, शिक्षित बनिये सभ्य बनिये
नीलम द्विवेदी "
,नील", प्रयागराज उत्तर प्रदेश भारत।