एक दिन समाचार पत्र में पढ़ा कि स्कूल में छुट्टी है सच में मज़ा आ गया।
मम्मी ओं मम्मी अब स्कूल में छुट्टी होगी कोई चीज है शायद, इतना कहकर बिट्टी भाग गई।यह क्या कह गयी सुन कर मम्मी का माथा ठनका,अजी सुनते हैं!
नहीं नहीं मैं तों बहरा हूं जन्म से, भाग्य में जब से तुम मिली दिखना भी कम हो गया शाय़द हा हा हा हा
अयं क्या मतलब हम क्या हे,अरे कुछ नहीं बस बुढ़ापे में सढियां गयें हैं,
ओह वो तों हम पहले से ही कह रहे थे तभी हम सोचें कि आजकल बातें किस्से करतें रहते हैं।
और दोनों पति-पत्नी हंसने लगें।
तभी बाहर से खेलते-खेलते बच्चे आ गये। पापा ने बड़े प्यार से दुलारा, बूंदें गिर रही है शायद बरसात होगी। जानतें हैं हम पर क्या करें?
अरे जाओ ज़रा छत का दरवाजा बंद कर आओ।ठीक है पापा इतना कहकर बेटा चला गया।
फिर मम्मी आईं और बोली कि सुनो बच्चों आज-कल त्यौहार शुरू हैं सीखों हमारी संस्कृति संस्कार उपजते हैं तभी तो हमें ज्ञान होगा।यह रीति रिवाजों से ही अपने संस्कार बढ़ते हैं। कल कृष्ण जन्माष्टमी पर्व शुरू हैं,कई जगहों पर बहुत समय तक मनातें है, जैसे नागपंचमी बीता है ना, रक्षाबंधन पर्व बीता अब जन्म अष्टमी मनाया जायेगा।कंस मामा का वध किया था कृष्ण ने सभी कों सताता था।अपनी ही बहन को जेल में बंद कर रखा था। अच्छा हां बेटा कई बार तों कालिया नाग की भी कहानी है। मम्मी सुनायें ना कहानी।
बस मम्मी भी होशियार बच्चों कों दादा जी दादी के पास कहानी सुनने कों छोड़ आई।
अगले सुबह बच्चों ने दैनिक कार्यक्रम किया तत्पश्चात पूजा अर्चन वंदन किया एवं ख़ुशी ख़ुशी पापा मम्मी बच्चों को साथ लेकर स्थानीय मेला मीडिया को बताते हुए बहुत ही उत्साहित होकर पूरी जानकारी दे
ने लगें।
लेखिका ----- नीलम द्विवेदी "नील"
उत्तर प्रदेश, भारत।