उर्जा दौड़ते हुए आईं और तालियां बजाकर बाकी के बच्चो को भी बुला लाईं और सुनो ना कौन-कौन चलेगा मेला।
सभी बच्चे तैयार हो कर अपने अपने घर भाग गयें।
शाम का इंतजार होने लग गया अब तों आओ पापा देरी हो रही है बस सब से पहले जायेंगे और ढ़ेर सारे खिलौने लेंगे।
अच्छा अच्छा ठीक है चलों सच्ची में सबसे पहले ही पहुंच गए कोई भी नहीं था।बस दूर से रावण, दिखाई दे रहा और कुछ दुकानदार,।
मुंह तों ऐसे बन गया कि पूछों मत।
अब क्या ही करतें जल्दी जल्दी गोलगप्पे खायै, मीठे गुलाब जामुन,सेवाई खरीदी।
मुंह फुलाकर बैठ गई
पापा ने कहा कि वह देखो,
अरे वाह! यह चक्की है घर के खिलौने खरीदें फिर हर बात में गर्दन हिल आग ने वाले बुड्ढा बुड्ढी खरीदीं, आगे बढ़े तों चमकदार गुडडा लिया और वापस घर लौट आए। अगले दिन सुबह में बच्चे स्कूल जाने की तैयारी
करने में लग गए और निकल गये।
लेखिका ---- नीलम द्विवेदी "नील"
प्रयाग राज़, उत्तर प्रदेश भारत।