अरे नहीं नहीं! मेरा तात्पर्य यह नहीं था। मै नाश्ता लगातीं हूं और बताइये क्या चल रहा है,कुछ नहीं मन बहुत बेचैन है समझ नहीं आता क्या करें? मतलब क्या करें?
अरे बहुत दिन हों गये चलों कहीं घूम आयें। ठीक है।
सागर पहुंचे और भेड़ाघाट जबलपुर सभी स्थलों पर घूमते-घूमते बहुत आनन्द आ रहा था।
एका एक सामने से गाड़ी रुकती है उसमें से जों देखा उसके होश उड़ गए।
बहुत साल पहले जिन्हें हम प्यार से काका कहा करते थे वोह तों मर चुके थे तो यह कौन है?
दिमाग फेरा जा रहा था। यूं लगा कि पैर जम गये।ठिठक कर हम सभी वहीं के वहीं खड़े होकर बुत बन गये।
मुंह तो खुल नहीं रहा था यह क्या भूत या सही?
ओह! जैसे जैसे वो पास आ रहें थें कलेजा धड़कने लगा, सांसें थमने लगी।
उन्होंने पहचान लिया था। और हम भूत बन गये।
जब होश आया तो हम सभी एक कमरें में थे। चारों ओर लोग भीड़ बनायें देख रहें थें।
उठो उठो जागो क्या हुआ तुम सबकों?
अरे हम वही है जो मर गये थे,आंय यह क्या?
पूरी कहानी कंपकंपा देने वाली थी,दांत किटकिटा रहें थें।हम कांप रहें थें।
हमारी लाश बर्फ में दबी पायी गयी। हेलीकॉप्टर वाले समझदार थे, उन्होंने बचा कर इलाज कराया।
सालों तक मैं वहीं पड़ा रहा।
अब अपने शहर वापस आया हूं।
तुम्हारा पता लगा तों यहां आया तुम सब तों ऐसे देखें जैसे भूत दिखा।
हंसी खेल में वकत गुज़र गया।
अगली सुबह खटखटाने की आवाज कानों में पड़ी।
सभी हाथों में हथियार लिये वा सामने पुलिस खड़ी थी।
यह क्या हों रहा था कुछ समझ नहीं हम सभी पा रहें थें।
पानी का गिलास भरकर हमें चेहरे पर डालने कों कहा जिससे हम होश में आ जायें।
फिर हमने पूछा कि आप सभी क्या कर रहे हैं?
सब हमें घूरने लगें अरे आप सभी पूरी रात ठहाके लगा कर शोरगुल मचा रहें थें। अकेले जंगल में क्यों और कैसे पहुंचे?
गनीमत जाने कि पुलिस ने पीछा किया और पूरी रात सुबह का इंतजार किया यह भूतिया महल है, यहां कोई नहीं आता जाता।
एक हादसे के बाद यह जंगल केवल सुबह खुलता है।
हमने पूरी कहानी सुनाई।
तब एक बोलें आप सही कह रहें हैं वो भूत से अधिकतर लोगों की जान बचायें है।
अच्छी आत्मा यें अक्सर अच्छाई करतीं हैं।
अब निकलये यकीं नहीं हो रहा था किन्तु सभी कुशलता से घर पहुंच गये।
यही वाक़या हमारे अन्तर्मन में बैठ कर द्वन्द कर रहा था।
लेखिका -- नीलम द्विवेदी "नील"
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।