तीसरा संस्करण ---
ईश्वरीय अनुकम्पा से पूरी तरह स्वस्थ होने के पश्चात फुहार की तरह वो बातें भी कचोटने लगी किन्तु किया भी क्या जा सकता है, बस यह भूतिया बाधा से मुक्ति की पूजा सदा मां से प्रार्थना करतीं हूं कि प्रत्येक आतमायें जों भी अभी भी मुक्ति नहीं पायी हों उन्हें उनके ही स्थान पर जाने को बाध्य करें यह कोई डर पैदा करने या किसी भी प्रकार की अफ़वाह नहीं है यथार्थ है बस जों भी अनुभव जिनके पास घटित हुआ होता है वहीं जान सकते हैं।
हम तों इतना ही जानते है कि यदि देवता हैं तो राक्षस भी है, यदि जिवित है तों मृत आत्माएं भी तृप्त की तलाश में कोई ना कोई जगह या व्यक्ति चुनती है इसलिए हमेशा बाहर से आने पर हम सभी हाथ पैर धोकर ही घर में अन्य कार्यों में लिप्त होते हैं।
ख़ैर अब तक तो सभी कुछ ठीक ही चला।
पूजा अर्चन वंदन करने से घर वा स्वयं में एक आ
आ लौकिक भाव जन्म लेता है खोई हुई शक्ति जागृत होती है।
एकाग्रता, चैतन्यता का उदगम होता है स्वयं ही हर वह व्यक्ति सभी प्रकार से उन्नति करना चाहने लगता है, यदि वैज्ञानिक रुप से भी इस बात को समझें तों भी एक औरा उस व्यक्ति के चारों ओर घिरने लगता है जों अपने दैनिक जीवन में सूर्य से पहले उठते हैं, मन्त्रों का उच्चारण करते हैं,योग करतें हैं,कुछ परहेज़ जों ग्रन्थों में बतायें गये है, चाहें धर्म कोई भी हों नियम बनाए और सुचारू रूप से व्यवहार में उतारिये, फिर देखें कि ज़िंदगी खूबसूरत होने लगेगी।
हम स्वयं कों ही बहुत कठिन परिस्थितियों में ऐसे ही निकल कर जीवित है।
अपने बच्चों कों भी सीखने कों प्रेरित करतें हैं किंतु ज़ोर नहीं डालते क्योंकि जब स्वयं कि इच्छा ईश्वर में विश्वास पैदा करेंगी तभी मन पूजा में लगेगा हमारे या अन्य किसी के भी कहने का प्रभाव कुछ पल का होता है यह तों मन से बैठे हुए भी मौन जाप चलता रहता है,हम कब जाप करें यहां यह भी प्रश्न है क्योंकि महिलाओं को तों मानसिक वा शारीरिक रूप से कुछ समय वर्जित है, उसके अलावा पूरे समर्पण भाव से पति वा बच्चों के उत्तम स्वास्थ्य वा उन्नति, दीर्घ आयु के लिए प्रार्थना प्रभु से करिये।
आगे यही नहीं आज-कल की शैक्षिक योग्यता अनुसार ही अन्य योग्यता जों हममें नहीं है बस वही सीखनें का प्रयास कर रहे हैं।
यही जीवन मंत्र है ॐ जों चिरकाल से अनंत ब्रम्हांड में गुंजायमान हैं ,हर कोई अपने अपने ईष्ट कों अनेकों नाम से पूजते हैं।
फिलहाल नाम चाहें जों जपें कल्याण का भाव भी होना चाहिए।
भला किसी का कर ना सकें तों बुरा किसी का मत करना
पुष्प यदि नहीं बन सकतें हैं तों कांटे बनकर मत रहना
यही भावनाओं को विकसित करने का सतत् प्रयास करने का भाव जगाना होगा।
लेखिका ------ नीलम द्विवेदी" नील" ।
प्रयाग राज, उत्तर प्रदेश, भारत।