30 मार्च 2024
बिखरा हूँ मैं, ताश के जैसे जिन्दा तो हूँ, लाश के जैसे लोग मारते, कुछ तो पत्थर कुछ पत्थर, ठुकरा देते हैं जां लेने पर, तुले हो मेरी लो हम खुद ही, जां देते हैं जख्म हरे मेरे, घास के जैसे बिखरा हूँ