shabd-logo

Chapter 3rd

12 नवम्बर 2021

19 बार देखा गया 19
अब तक हमने पढ़ा की सुधा और नरेश की शादी बड़े ही धुमधाम से हुई थी....।।।। सुधा के ससुराल में उसकी सास....  और ननद  थे...।।।। अब आगे....... 

कुछ दिनों तक तो घर में मेहमानों की चहल पहल बनी रही फिर एक एक कर सभी ने विदा ली....।।।।। 

जब तक मेहमान थे सुधा के घर काम में उसकी ननद और सास हाथ बंटाते थे लेकिन मेहमानों के जाने के साथ ही सुधा की हंसती हुई जिंदगी को जैसे किसी की नजर लग गई हो....।।। 

धीरे धीरे सुधा के साथ उनका व्यवहार बदल गया...।।।। वो दोनों सुधा की किसी भी काम में कोई मदद नहीं करते थे....।। ऊपर से घर के जो नौकर थे उनको भी हमेशा के लिए ये कहकर निकाल दिया की अब तुम्हारी कोई जरूरत नहीं हैं....।।।। 

कभी कभार सुधा अगर उनको कुछ मदद करने के लिए बोलती भी थी तो भी वो दोनों साफ साफ़ मना कर देती थी.... सुधा ने कई बार इस बारे में नरेश से बात की पर नरेश ने उसकी हर बात को सुनी अनसुनी कर दी...।।। 
सुधा ने बहुत बार अपनी ननद और सास से भी कहा की वो ऐसा क्यूँ कर रहीं हैं तो भी वो उसको बस झड़प लगा देती थी...।।। 

पुरा दिन अकेले सारा काम करते करते सुधा बुरी तरहा थक जाती थी..... इस पर वो रात को जल्दी सो जाती थी इस पर नरेश उस पर हर रोज़ झगड़ा करता था.... उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि सुधा की कंडिशन कैसी हैं.... उसे बस हर रात अपनी मनमानी करनी थी.... उसकी नजरों में एक पति का ये ही फर्ज था.... ये ही पति का हक़ था... ।।। 

दिन ब दिन सुधा की हालत अब खराब होती जा रही थी... घर में आए दिन सुधा के साथ उसकी सास और ननद लड़ाइयाँ करने लगी....।।।। रात में नरेश उसके साथ जबरदस्ती करने लगा...।।। 
सुधा को कुछ समझ नहीं आता था की वो आखिर करें तो क्या करे....।।।। वो अपने मायके में भी किसी से बात नहीं कर सकतीं थी क्योंकि उसकी मम्मी की तबियत आए दिन खराब रहतीं थी वो उन सबको ओर कोई चिंता नहीं देना चाहती थी....।।। 

बात तो अब यहाँ तक आ गई थी की सुधा को घर के अंदर नजरबंद रखा जाने लगा.... उसे ना कही बाहर जाने दिया जाता था.... ना पड़ौस में किसी से बात करने दिया जाता था... ना ही उसे अब मायके में रहने के लिए छोड़ा जाता था...।।।। 

सुधा अंदर ही अंदर घुट रही थी..... पर किसी को उसकी इस हालत से कोई फर्क नहीं पड़ता था....।।।।।। 

हर रोज़ किसी न किसी बात पर सुधा के साथ लड़ाईयॉ की जाती थी...।।।। अगर कभी सुधा कुछ बोल दे या विरोध कर दे तो उस दिन उसकी शामत आई समझों..... क्योंकि उसकी सास के कहने पर नरेश अब उस पर हाथ भी उठाने लगा था....।।। 

एक वक्त ऐसा भी आया जब सुधा को लगा की शायद अब उसके ससुराल में कुछ बदलाव आए...।।। उसकी ननद की शादी की बातें होने लगी...।।। लेकिन उसकी सास अपनी बेटी की रिश्ता अपने ही घर के पास या पास के ही मोहल्ले  में से ही करवाना चाहती थी....।।। क्योंकि वो अपनी बेटी को अपने से दूर नहीं करना चाहतीं थी...।। 

आखिरकार एक रिश्ता उनकी पंसद का आया... लड़का पास के ही मोहल्ले का था... और अच्छा पैसे वाला भी था... दिखने में भी खुबसूरत था....।।।।।।।। 

कुछ ही महीनों में उसकी ननद की धूमधाम से शादी की गई...।।।
लेकिन सुधा की कंडिशन में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ... जैसा सुधा ने उम्मीद की थी उसके बिल्कुल विपरीत ही हुआ.... क्योंकि उसकी ननद आए दिन अपने मायके में आती रहतीं थी...।।। और वहाँ आकर सुधा के साथ पहले से भी बुरा सलुक करतीं थीं..।।।। 

(पहला फर्क तो यहीं दिखता है की...... बेटी मायके में हर रोज़ आए.... कोई रोक नहीं.... बहु का मायके जाने पर रोक....) 

(दुसरा फर्क ये की दामाद बेटी को बाहर घुमाने ले जाए... बाहर खिलाए.... पिलाए तो .... दामाद के गुणगान.....और बेटा बहु को घर में नजरबंद करके रखें....) 


एक बार तो हद तब हुई जब एक त्यौहार के उपलक्ष्य में... सुधा की माँ ने सुधा के लिए उसकी पसंद की मिठाई बनाकर भेजी...।।।। 
उसी वक़्त सुधा की ननद अपने ससुराल वापस जा रहीं थी जो कुछ दिनों से मायके में रहीं हुई थी.... वो लोग सुधा के साथ चाहें कैसा भी व्यवहार क्यूँ ना करते हो सुधा फिर भी उनके बारे में हमेशा सोचती थी इसलिए सुधा का मन नहीं माना और उसने अपने मायके से आई हुई मिठाई में से कुछ हिस्सा निकाल कर बाकी का सारा बाक्स अपनी ननद को दिया....।।।। उसकी ननद ने बाक्स को खोलकर देखा और उसी पल वो बाक्स पास में खड़ी सुधा के मुंह पर दे मारा और कहा... :- तेरी हिम्मत कैसे हुई ये फकीरों के घर से आई हुई घटिया मिठाई मुझे देने की... ये गंदगी तुम्हें ही मुबारक...।।।।।। 

अचानक और अनचाहे हुए इस वाक्ये से सुधा बहुत ज्यादा सहम गई.... उसकी माँ की भेजी हुई मिठाई फर्श पर सब ओर फैल गई थी....।।।। सुधा की आंखों से आंसू बहने लगे... वो बस फर्श पर बिखरी मिठाई को देख सोच रहीं थी.... माँ ने कितने प्यार से ये सब बनाया होगा... क्या जरूरत थी मुझे दीदी को यह सब देने की...।।। वो वही बूत बनकर खड़ी थी की उसकी सास की आवाज से जैसे वो वापस अपने वर्तमान में आई.... उसकी सास चिल्लाई... :- अब यहाँ खड़ी खड़ी कौनसा मंत्र पढ़ रहीं हैं.... जा जाकर साफ कर ये सब और बाहर खड़ें कुत्तों को खिला दे...।।।। 
सुधा मन मानकर उसे उठाकर बाहर फेंक आई.....।।।।।।। उस वक़्त सुधा के दिल पर क्या बिती होगी वो तो सुधा ही समझ सकतीं हैं....।।।। 

लेकिन सुधा की मुश्किलें थी की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहीं थी....।।।। 

आगे जो होने वाला था वो इससे भी ज्यादा भयानक था....।।।।। 


जानते हैं अगले भाग में....।।। 


3
रचनाएँ
फर्क दिखता हैं.....।
0.0
बहु और बेटी दोनों में फर्क दिखता हैं.... बेटा और दामाद दोनों में फर्क दिखता हैं....।। आज भी हमारे समाज में ऐसे ना जाने कितने ही परिवार हैं.... जो ऐसी मानसिकता के साथ चल रहे हैं...।।।। इसी पर आधारित हैं मेरी ये छोटी सी कहानी...।।।

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए