लद गए वो दिन जब आदमी से हाल पूछो तो बड़ी मायूसी से कह देता था, 'बस, चल रही है दाल-रोटी किसी तरह'। अब धोखे से भी ये जुमला मुंह से निकल जाए तो कौन जाने दूसरे ही दिन डाका पड़ जाए। ये मज़ाक नहीं, बल्कि आज की हक़ीक़त है। 20 रूपए किलो आटा और 160 रूपए किलो दाल का भाव उस आदमी को ज़रूर रटा होगा जो सुबह से शाम तक म