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दाग लगा नोट

Mannu bharti

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एक बड़ा सा कमरा, दो मंजिले पर एक डाईनिंग हाल में पचपन छप्पन साल की एक महिला डाईनिंग टेबल पर सब्जी काट रही है और ठीक पीछे उसका पति तैयार हो रहा है शायद कही जाने के लिए। पति की उम्र साठ के उपर होगी, वो याद से सभी सामान को अपने पास रखता है जिसे लेकर उसे बाहर जाना है। इतने में उनकी नौकरानी आती है बोलती है - चाची आज फिर देर हो गई, आपने नाश्ता बना लिया होगा तब बताओ दोपहर में क्या बनाऊ???। महिला ने कहा नाश्ता तो हमने कर लिया जा तु भी जाके कर ले, सब्जी काट दी है, दाल और चावल पका दे। नौकरानी ने नाश्ता निकाला और उसका एक - एक कौर मुंह में डालते हुए अपने खबरों की पोटली खोल दी। इधर बुढ़ा भी जब तैयार होकर जाने लगा तब बुढ़ी ने कहा- तुम नहीं मानोगे, कितने महिने से चक्कर काट रहे हो, कुछ फायदा हुआ। बुढ़े ने आंखे उठाई, चेहरे पर बनावटी मुस्कुराहट लाया और बोला खुद को यकीन दिलाने के लिए की मैं जिन्दा हूँ कोशिश कर रहा हूँ, मुर्दे क्या खाक कोशिश करते हैं। औरत ने ज्यादा प्रतिरोध नहीं किया क्योकि बुढ़ा जिस सपने को जीवंत करने का प्रयास कर रहा था उसे वह स्वयं भी जीना चाहती थी। बुढ़ा अपनी फाईल लेकर चल पड़ा। सरकारी कार्यालय, चारो तरफ भीड़, टाइपराइटरो का शोर, चाय और कचौड़ी के दुकान पर शोर, सभी अपने-अपने समस्याओं को सुलझाने की जुगाड़ में, कही बड़े बाबु तो कहीं छोटे बाबु का इंतजार हो रहा है, सरकारी चक्कीओ में अधपीसे लोगों की भीड़। एक अजीब सी निराशा चारों ओर फैली, इस भीड़ में हर कोई अकेला। रोज चक्कर लगाने वाले इन लोग के चेहरे का भाव अनिश्चित। दलालों का आश्वासन और बाबुओं और कर्मचारियों की कुटील मुस्कान। खैर बुढ़ा, कार्यलय में गया, एक हाल सा कमरा था जिसके एक कोने पर बड़े बाबु बैठे थे। चारो तरफ अन्य कर्मचारीयों के टेबल थे जहाँ आम लोग अपनी समस्या फरियाद लेकर आ रहे थे। बुढ़ा बड़े बाबु के पास गया और अपनी फाईल रखी। बड़े बाबु बुढ़े को देखकर दांत दिखाते हुए बोले- अरे चचा आप फिर आ गए, मैंने आपकी फाईल देखी है अभी भी कागज कम हैं आपका काम नहीं हो सकता। मैं मजबूर हूँ खुद को बुरा लगता है की आप जैसा बुजुर्ग बार-बार आए पर नियम कानून से मेरे हाथ बंधे है। समझ गए चचा बुढ़े ने कहा- आज फाईनल उपाय बता दिजिए बाबु साहब बड़े बाबु-   ही ही ही.......  तो आज फाईनल करके ही मानियेगा........ ठीक है साहब आप बुजुर्ग आदमी हैं....... सो पच्चीस हजार, और आपका सारा काम करके एक सप्ताह में फूल एन फाईनल करके आपको फाईल दे दूंगा। बुढ़ा- पच्चीस हजार कुछ ज्यादा  हैं बाबु साहब बड़े बाबु- सरकार! आप भी तो दुकान खोल कर लाखों छापेगें  बुढ़ा- ठीक है साहब, लेकिन  पैसे आज नहीं लाया, आज पांच हजार देता हूँ कल बीस हजार दूंगा बडे़ बाबु-   जैसी मालिक की इच्छा बुढ़े ने पांच हजार निकाल कर बड़े बाबु के हाथ में रख दिया। बड़े बाबु तन्मयता से नोट गिनने लगे, अंतिम कुछ नोट गिनते समय देखा कि एक सौ के नोट पर एक बड़ा सा दाग था, बड़े बाबु बोले- चचा इ  सौ का नोट बदल दिजिए, इसमें दाग लगा है इ......नहीं चलेगा। बुढ़ा अचानक कुर्सी से खड़ा होकर चीखा- ये दाग नही ये खून है। अचानक बुढ़े की इस प्रतिक्रिया से बड़े बाबु चौक कर खड़े हो गए और नोट उनके हाथ से छूटकर टेबल पर बिखर गए। आसपास के सभी टेबलों के कर्मचारियों और आम जनता की आंखें उनकी ओर जम गई। बुढ़े की आंखों में एक ज्वर था, एक ऐसा ज्वार भाटा जो मानों सबकुछ लील लेने को आतुर हो। बुढ़े ने एक अधजला पर्स निकाला, उसमें कुछ कागज और कुछ नोट थे सब पर दाग लगे थे। बुढ़े ने कहा- ये मेरे बेटे का पर्स है जो सरहद पर जंग लड़ता हुआ शहीद हुआ। उसके बंकर में दुश्मनो ने ग्रेनेड से हमला किया फिर भी वह लड़ता रहा कितनी ही गोलीया लगी उसे फिर भी पीछे न हटा और अपनी शहादत दी। उसके खून से ये पर्स और उसके नोट रंग गए। उसके सामान के साथ ये पर्स भी मुझे भेज दिया गया, जब भी इसे देखता हूँ इसकी पीड़ा आखों के सामने उभर आती है। बड़े बाबु आप कहते हैं कि ये नोट नहीं चलेगा, जिस नोट पर उसी के शहीद के खून का रंग लगा हो वो नहीं चलेगा, जरा इस नोट की नीलामी करा कर देख लो........की इस देश की जनता इस नोट को क्या मान, सम्मान और किमत देतीं हैं जाओ इस नोट से रोटी खरीद लेना, खुद भी खाना और अपने परिवार को भी खिलाना लेकिन ये याद रखना की तुम और तुम जैसे लोग जो रोटी खा रहे हो वो किसी ना किसी शहीद के खून में डूबी हुई है उसके खून में डूबी हुई है जिसने.......... देश................ जाने दो तुम नहीं समझोगे मै और मेरी पत्नी तो मात्र उस स्कूलों के सामने एक छोटी सी स्टेशनरी की दुकान खोलना चाहते थे ताकि उन बच्चों में अपने बेटे का बचपन देख सके .........जी सके, पैसे के लिए नहीं.... बुढ़े ने फाईल उठाई और निकल गया आसपास खडी़ जनता ने नाक भौ सिकोड़ने शुरू किया मानो इन सरकारी टेबलों पर सरकारी कर्मचारी न हो के,सड़ती हुई लाशें पड़ी हो, जिसके दुर्गन्ध से मन, मस्तिष्क और आत्मा फटी जा रही हो  

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