वह मुसाफिर क्या जिसे कुछ शूल ही पथ के थका दें?
हौसला वह क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें?
- गोपालदास नीरज
मित्रों आप सभी ने एमएसटी होल्डर शब्द कभी न कभी अवश्य सुना होगा | रेल के प्लेटफार्म पर खड़े होते ही डिब्बो में एक समूह में घुसकर एक सीट पर 6 लोगो को बैठे हुए आपने अवश्य कभी न कभी देखा होगा | और प्रथम दृष्टया आपको यही ख्याल आता है कि कैसे लोग हैं ?
आपको आज दैनिक यात्रियों की उस सच्चाई से रूबरू करवाता हूं जिसके बाद आपके खयालात बदल जाएंगे |
दैनिक रेल यात्री ऐसा व्यक्ति होता है जिसका अधिकांश समय रेल में यात्रा से ज्यादा रेल के इंतज़ार में निकल जाता है|
सुबह उठकर ही ट्रेनों की लिस्ट देखना उसका पहला काम हो जाता है उसके ठीक बाद रनिंग स्टेटस चेक करके अपने गन्तव्य पर पहुचने के समय के अनुसार सही गाड़ी का निर्णय करता है |
जब आप परिवार के साथ आराम से नास्ता कर रहे होते हैं तो वे अपना नास्ता टिफिन में रखकर घर छोड़ देते हैं ताकि गाड़ी मिस न हो |
किसी तरह जल्द से जल्द स्टेशन पहुचने की मजबूरी रहती है ताकि उसको उचित गाड़ी मिल सके |
दिन भर आफिस का वर्क लोड करने के साथ ही साथ शाम को कौन सी गाड़ी मिलेगी इसकी चिंता अनवरत रहती है|
फिर जॉब से निकलते ही भागदौड़ शुरू जल्द से जल्द अपने गन्तव्य(घर वापसी) को पहुचने वाली पहली गाड़ी पकड़ने की ताकि अपने परिवार जिसके लिए वो इतने संघर्ष कर रहा है उनके पास अतिशीघ्र पहुच सके|
1 सेकंड की भी देरी उसको कई घण्टे पीछे कर देती है |
कई बार दौड़ कर गाड़ी पकड़ने की मजबूरी उसको जान जोखिम में डालने पर मजबूर कर देती है |
इतना सहने के बाद जल्दी सुबह निकला व्यक्ति देर शाम तक घर पहुच पाता है |
दिमाग और शारीरिक रूप से इतना थक चुका होता है कि परिवार को सही से समय भी नही दे पाता |
फिर भी वो हर समय मुस्कराहट लिए रहता है ,दैनिक रेल साथियों में ही अपना परिवार खोजकर सारे कष्ट सहन करता है | मैं एक दैनिक रेल यात्री की पीड़ा को समझ सकता हूं क्योंकि मैं भी एक दैनिक रेल यात्री रह चुका हूं|
आगे मेरी दैनिक रेल यात्रा से जुड़े कई अच्छे बुरे अनुभव आप सबके समझ रखूंगा |
आशा है अब जब भी आप एक दैनिक रेल यात्री(एमएसटी होल्डर) से मिलेंगे तो उनकी मुस्कान/गुस्से के पीछे छुपे एक संघर्षमय जीवन को समझ सकेंगे |
आपका :- शैलेश