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डर आजादी का

अजय अमिताभ सुमन

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आदमी ना तो अकेले रह हीं सकता है और ना हीं औरों को अकेले रहने देता है । मैना भी आदमी की तरह आजादी से डरने लगा है। खुले आसमान में उड़ने के लिए आखिरकार आसमानों के खतरे भी तो उठाने पड़ते हैं।  

dar aajadi ka

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