बेनाम सा सफर ये क्यूँ रूक नहीं जाता
जो ठहरा है वो बीत क्यूँ नहीं जाता
कब से दफन है इक तूफान भीतर
ये आंसुओं का समन्दर क्यूँ सूख नहीं जाता..
आईना बदलता रहा सूरत हर घड़ी
इक तेरा चेहरा है जो मेरी आँखों से नहीं जाता
यहां हर ज़ख्म की अपनी दास्तां है
हर दर्द पूछता है कि तू मर क्यूँ नहीं जाता..
टूटने को टूटी है हर सब्र की दरिया
ये जो रास्ते मे पत्थर है क्यूँ बह नहीं जाता
उम्मीदों का कारवाँ तो कब का गुजर गया
पीछे छूटा वो खंडडर क्यूँ गिर नहीं जाता...
बेनाम सा सफर ये क्यूँ रूक नहीं जाता
जो ठहरा है वो बीत क्यूँ नहीं जाता......