ध्यान में मौत का उत्सव
.............एक साधु जीवनभर इतना प्रसन्न था कि लोग हैरान थे। लोगों ने कभी उसे उदास नहीं देखा, कभी पीड़ित नहीं देखा।
उसके शरीर छोड़ने का वक्त आया और उसने कहा कि अब मैं तीन दिन बाद मर जाऊंगा।
यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि जो आदमी जीवन भर हंसता था, उसकी मौत पर कोई रोए नहीं।
जब मैं मर जाऊं, तो इस झोपड़े पर कोई उदासी न आए।
यहां हमेशा आनंद था, यहां हमेशा खुशी थी।
मेरी मौत को दुख मत बनाना, मेरी मौत को एक उत्सव बनाना।
लोग बहुत दुखी हुए। वह तो अदभुत आदमी था। और जितना अदभुत आदमी हो, उतना उसके मरने का दुख घना था।
उसको प्रेम करने वाले बहुत थे, वे सब तीन दिन से इकट्ठे होने शुरू हो गए।
वह मरते वक्त तक लोगों को हंसा रहा था, अदभुत बातें कह रहा था और
उनसे प्रेम की बातें कर रहा था।
सुबह मरने के पहले उसने एक गीत गाया। गीत गाने के बाद उसने कहा, ‘स्मरण रहे, मेरे कपड़े मत उतारना। मेरी चिता पर मेरे पूरे शरीर को कपड़ों सहित चढ़ा देना । मुझे नहलाना मत।’
वह मर गया। उस की इच्छा थी इसलिए उसे कपड़े सहित चिता पर चढ़ा दिया।
वह जब कपड़े सहित चिता पर रखा गया, लोग उदास खड़े थे, लेकिन देखकर हैरान हुए।
उसने कपड़ों में फुलझड़ी और पटाखे छिपा रखे थे।
वे चिता पर चढ़े और फुलझड़ी और पटाखे छूटने शुरू हो गए। चिता उत्सव बन गयी।
लोग हंसने लगे और उन्होंने कहा, ‘जिसने जिंदगी में हंसाया, वह मौत में भी हमको हंसाकर गया है।’
जिंदगी को हंसना बनाना है। जिंदगी को एक खुशी और मौत को भी एक खुशी और जो आदमी ऐसा करने में सफल हो जाता है, उसे बड़ी धन्यता मिलती है और बड़ी कृतार्थता उपलब्ध होती है।
जीवन और मृत्यु बिल्कुल पास पास हैं एक ही सिक्के के दो पहलु की तरह।
जो क्रियाओं के अभ्यास से स्वांसों को पहचान कर मृत्यु को जान लेता है वह जीवन को भी जान लेता है और शांति का अनुभव कर लेता है। और हृदय में बैठे परमानंद की प्राप्ति करके सत्-चित्-आनंद का भी अनुभव कर लेता है और अपना मनुष्य जीवन सफल बना लेता है..!!