आज रह रहकर मेरा मन मायूस हूँवा जा रहा, मैनें अदम गोंडवी जी की कविता चमारों की गली सुनी, कितना दर्दनाक है ना आज के जमाने में जाति व्यवस्था का दर्द, महज कोई अलग कुल में पैदा हूँवा, इसलिए वो नीच कुल का, कोई उच कुल का ये कौन सा भेदभाव है, किसीको ये हक किसने दिया की किसीके बेटी, बहू के साथ बदसलूकी करे, और उपर से ये हिमायत की गुन्हेगार को सामने लाकर सजा देने के बजाय उसे बचाने के लिए जिन पर अन्याय हुंँवा उसे फसाया जाये।
कौन सा लॉजिक है कोई ओर बताये की लडकियों को कैसे रहना चाहिए, हर एक के जिंदगी पर, सोच पर पहला हक तो उसका अपना होना चाहिए ना किसी ओर का, खैर समाज बदले तब बदले, पहले खुद को तो बदलो, किसीको जज करना छोड दो।
कितनी ही लडकिया आज इंसाफ की लडाई लड रही है, पर कितनों को इंसाफ मिल पाता है, आज का विषय था लव कॉन्ट्रैक्ट, सच कहू तो आजकल प्यार भी बिकाऊ हुँवा है,जो जहाँ फायदा दिखे, वहीं मूड जाता है, बडा मतलबी प्यार है, शादी के बाद भी साथ रहे इसकी कोई गारंटी ही नहीं।
बस साथ देनेवाला प्यार मिले तो नशीब अपना।