आज फिर ऐतवार की छुट्टी खत्म कर भीग दौड करने का पहला हफ्ते का दिन, कुछ कुछ कल की सुस्ती रहती है, जल्दी उठने का दिल ना करता पर तब भी उठना तो पड ही जाता है! कल प्रतिलिपी जी ने सब्जेंट दिया था, छुट्टी का दिन और आज है घर की याद! दोनों ही मेरे दिल के करीब , शायद आपके भी होंगें!
क्यूंकी दोनों ही मुझे बचपन की तरफ वापस ले जाते है वहीं बचपन जो उम्र के हर पडाव पर याद आता जाता है! घर जो बचपन में मेरा था, हालाकि आज नहीं है, पर जहन में आज भी साथ है! आज भी आंखों का बंद करके मैं उसके हर कोने को पहचान सकती हूं! आज जो भी हो मैं, उसकी नींव तो उसी घर ने रखी! हर मुसीबत में हमारा घर मजबूत सहारा था!
अगर अब भी मुझे जिंदगी रिवाइंड का प्ले बटन दे तो मैं वापस उसी घर में जाना चाहूंगी! चलो कल मिलते है!