सच कहू सखी सुबह तुझसे मेरी मुलाकात ना हो पाई, बहुत वक्त बाद याद आया की तुझसे मिलना तो बाकी है, तो झट् से प्रतिलिपी को ओपन किया और तुझसे मुलाकात करने के लिए चली आई मैं, आय होप तुम मुझसे नाराज नहीं होगी!
जल्दी से लिखते या तुझे बताते है आज क्या क्या हूँवा?चलो बताती हू, इतना बेसब्र मत हो। आज प्रतिलिपी वालों ने बचपन की एक मजेदार वाकिया की याद दिला दी। जब बचपन में मैं बहुत जिद करती थी घूंगरु पहनने के लिए। मुझे उसकी आवाज बहुत पसंद थी, कितनी प्यारी आवाज निकलती थी उससे, मैं डांन्स भी टीवी पर सिर्फ वहीं आवाज सुनने के लिए देखती थी।
एक बार मैं डांन्स में शामिल होने की जिद लेकर बैठी, पर पापा को नाच करना पसंद ना था, तो मैंं सिर्फ इसी शर्त पर मान की वो मुझे पायल लाकर दे, पापा मान गये। पर हम चार भाई बहन थे एक के लिए ना ला सकते थे, तो वे मैं और मेरी दो बहने और माँ केे लिए भी पायल लेकर आये, जो अबतक याद है। जो मेरी पहली पायल थी। आज सोचती हूँ की पैसों की कमी होकर भी कहाँ से पापा ने पायलों के लिए पैसे जूटा लिये होगें।क्यूंकी मंथ एंड था और पापा अकेले कमाने वाले थे, पर सच कहूँ इस दुनिया में कोई भी माँ बाप से अमीर नहीं होता, क्यूंकी वो बच्चों के जिद के लिए जमीं आसमाँ एक कर देते है।
एक बात ये भी है की माँ बाप से गरीब भी कोई ना होता क्यूँकी ख्वाईशों को पूरा करते करते उनके अपने लिए कुछ ना बचता। खैर छोडिये, पर जब मुझे पता चला की मेरी पायल के लिए पापा ने अपनी शादी की रिंग बेच दी, तब फिर ज़िदगी में मैने कभी अब तक जिद ना की किसी च़ीज के लिए। ना मेरे भाई बहन ने, मेरी सबसे छोटी बहन को छोडके।
चलो फिलहाल के लिए पापा के यादों में रहती हूँ कल मिलती हूँ। तब तक खयाल रखना अपना।