दिल में चुभी किरिंच (भाग 1)
ठाकुर विला दुल्हन की तरह सजी हुई थी फूलों की खुशबू से पूरी हवेली महक रही थी चारों ओर खुशियों का माहौल था शहनाई की मधुर ध्वनि वातावरण में गूंज रही थी। आज ठाकुर रूद्रप्रताप जो शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित रईस हैं उनकी सबसे छोटी बेटी की शादी थी इस समय विदाई की रस्में चल रही थी।
" ठाकुर साहब हमारी बहू को लेकर आइए नहीं तो विदाई का मुहूर्त निकल जाएगा" रूद्रप्रताप के समधी की गम्भीर आवाज सुनाई दी।
" जी ठाकुर साहब मैं बिटिया को लेकर आता हूं" ठाकुर रूद्रप्रताप ने कहा और बंगले के अंदर चले गए।
तभी उन्होंने देखा कि,उनकी पत्नी गार्गी अपनी बेटी पलक को लेकर बाहर की ओर आ रहीं हैं। गार्गी के चेहरे को देखकर ठाकुर रूद्रप्रताप को कुछ अजीब लगा क्योंकि गार्गी का चेहरा भावहीन दिखाई दे रहा था।
गार्गी दुल्हन बनी पलक को सहारा देकर फूलों से सजी कार की ओर लेकर आ रही थी पलक स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लग रही थी। वहां खड़ी सभी लड़कियां पलक को ईर्ष्यालु नज़रों से देख रही थी। जबकि गार्गी का चेहरा भावहीन था। वहां खड़े सभी लोग गार्गी को देखकर आश्चर्यचकित थे उन्हें शायद इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि,एक मां इतनी कठोर कैसे हो सकती है। लेकिन तभी वहां खड़े लोगों को अपने सवालों के जवाब मिल गए,
गार्गी अपनी बेटी को गले लगाते हुए फूट-फूट कर रो पड़ी बेटी की विदाई के समय कठोर से कठोर इंसान भी अपना संयम खो देता है। गार्गी तो एक मां थी उनका हृदय बेटी की विदाई पर फटा जा रहा था गार्गी की छोटी बेटी पलक विदा हो कर अपनी ससुराल जा रही थी। मां बेटी दोनों एक-दूसरे से लिपटकर फूट-फूट कर रो रही थी यह दृश्य बहुत ही हृदयविदारक था। वहां खड़े सभी की आंखों से आंसूओं की धारा बह निकली उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि, अब वह दोनों कभी अलग होगी ही नहीं।
वहां खड़े रिश्तेदारों ने बड़ी मुश्किल से दोनों को अलग किया गार्गी ने स्वयं को संभाला गार्गी ने पलक को गाड़ी में बैठते हुए धीरे से कहा
"पलक मैंने तुम्हारे पर्स में एक ख़त रखा है उसे तुम अपने हनीमून से आने के बाद पढ़ना तुम्हें मेरी सौगंध है उससे पहले न पढ़ना यह मेरी विनती और आदेश दोनों ही है" अपनी मां की बात सुनकर पलक ने चौंककर उन्हें देखा वह कुछ कहती या पूछती पर यह सम्भव नहीं था क्योंकि विदाई की रस्म के अवसर पर सभी मेहमान वहीं आस-पास ही थे।पलक अपनी मां से कुछ पूंछ नहीं सकी पर उसके मन-मस्तिष्क में आशंकाओं की बवंडर उठा हुआ था।
तभी गार्गी ने अपने दामाद विनायक से कहा
" बेटा मैंने अपने दिल के टुकड़े को तुम्हें सौंपा है आज से यह तुम्हारी अमानत है अब इसकी हिफ़ाज़त करना और पलक को खुश रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है। बेटा पलक भी हर हाल में तुम्हारा साथ निभाएंगी अगर कभी इससे कोई गलती हो जाए तो इसे नादान समझकर क्षमा कर देना। पलक के दिल को कभी ऐसी ठेस न पहुंचाना जिसका दर्द यह बर्दाश्त न कर सके,अगर ऐसा हुआ तो उसकी किरिंच मेरे दिल में चुभेगी मैं पलक की आंखों में आसूं नहीं देख सकती मैं यही चाहती हूं कि, मेरी बेटी की झोली को तुम खुशियों से भर दो" यह कहते हुए गार्गी ने पलक का हाथ विनायक के हाथ में दे दिया।
" मां जी आप निश्चित रहिए अब पलक मेरी पत्नी है इसको ख़ुश रखना मेरी ज़िम्मेदारी है आप फ़िक्र न करें मैं पलक को बहुत खुश रखूंगा" विनायक ने मुस्कुराते हुए गार्गी जी से कहा।
"बहन जी आप परेशान न हो हम पलक का बहुत ख्याल रखेंगे हमारे घर में बहूओ को लक्ष्मी समझा जाता है हमारे कुल खानदान में बहूओ का स्थान बहुत ऊंचा है हम लोग कभी भी औरतों का अपमान नहीं करते।हमारा तो यह मानना है कि,जिस घर में बहू बेटियों का अपमान किया जाता है वह घर दिन शमशान बन जाता है। इसलिए आप निश्चित रहिए हमारे घर में पलक को कभी कोई तकलीफ़ नहीं होगी" पलक के ससुर ठाकुर भूपेंद्र ने कहा।
गार्गी के चेहरे पर अपने समधी की बात सुनकर संतोष भरी मुसकान फैल गई उन्होंने हाथ जोड़कर अपने समधी का धन्यवाद किया,
उधर पलक की बात अधूरी रह गई थी वह अपनी मां से कुछ पूंछ नहीं सकी थी।इस समय पलक को किसी की कोई बात सुनाई नहीं दे रही थी, पलक अभी भी गार्गी जी को आश्चर्य से देख रही थी उसका मन किसी आशंका से धड़क रहा था। तब तक ड्राईवर ने दुल्हन की गाड़ी आगे बढ़ा दी गार्गी आंखों में आसूं लिए दुल्हन की कार को तब तक देखती रही जब तक कार उनकी आंखों से ओझल नहीं हो गई।
गार्गी के चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह अपना सब कुछ जुएं में हार गई हो," मां आप कब तक यहां खड़ी रहेगी पलक हम सबसे दूर कहां जा रही है इसी शहर में तो है।आप जब चाहें उसे अपने पास बुला सकती हैं, अब आप अंदर चलिए सभी मेहमान आपका इंतजार कर रहे हैं उनमें से बहुत लोग तो अभी जाना चाहते हैं। मां मुझे और पारूल को भी अभी निकलना होगा आप तो जानती ही हैं कि, मेरी सासू मां की तबीयत ठीक नहीं है मेरा वहां पहुंचना जरूरी है" गार्गी जी की बड़ी बेटी काव्या ने उदास लहज़े में कहा
" हां•••••• लम्बी सांस ली गार्गी ने
" मां क्या बात है आप कुछ परेशान लग रही हैैं"? काव्या ने पूछा
" नहीं ऐसी कोई बात नहीं है पलक के जाने की वज़ह से थोड़ा दुःखी हूं"गार्गी ने धीरे से कहा और आगे बढ़ गई।
" नहीं मां आप मुझसे कुछ छुपा रहीं हैं आपके मन में कोई तूफ़ान उठा हुआ है जो आपके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा है।यह पलक के जाने के कारण नहीं है कोई बहुत गम्भीर बात है जो आपने अपने मन में छुपा रखा है" काव्या ने गार्गी को गहरी नज़रों से देखते हुए कहा।
" ऐसा कुछ नहीं है और अगर तुम्हें कुछ आभास हो रहा है तो वह बहुत जल्दी पता चल जाएगा" गार्गी ने सपाट शब्दों में कहा तब तक वह दोनों हाल में दाखिल हो गई थी।
गार्गी काव्या के साथ अंदर आई वहां हाल में शादी में आए हुए मेहमानों के साथ गार्गी की सास और ननद भी बैठी हुई थी।
"अब बेटी की विदाई हो गई है वह कोई विदेश नहीं चली गई जो तुम इतना दुखी हो रही हो तुम इस खानदान की बहू हो तुम्हें घर आए हुए मेहमानों का भी ध्यान रखना चाहिए। तुम्हें तो अपने बेटी के अलावा कोई दिखाई ही नहीं दे रहा है, हमारे तो कर्म फूट गए जो ऐसी बहू मिली जिसने सिर्फ़ लड़कियां ही पैदा की इस खानदान को कोई वारिस नहीं दे सकी" गार्गी की सास पार्वती जी ने व्यंग्यात्मक लहजे में ऊंची आवाज में गार्गी से कहा।
" मां जी आप अपने बेटे की दूसरी शादी कर दीजिए शायद दूसरी बहू इस खानदान को वारिस दे-दे" आज पहली बार गार्गी ने अपनी सास को उलटकर जबाव दिया था।
गार्गी का जवाब सुनकर सभी लोग आश्चर्य से गार्गी की ओर देखने लगे गार्गी अपनी सास को जवाब दे सकती है इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। काव्या और पारूल दोनों आश्चर्य से एक-दूसरे का चेहरा देखने लगी। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि,उनकी मां दादी को उलटकर जबाव भी दे सकती हैं।
" गार्गी तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि, तुम मां का अपमान करो" रूद्रप्रताप ने गुस्से में पूछा
" यह तो बड़ों को सोचना चाहिए कि,वह ऐसी बात करें ही न जिससे कोई उनका अपमान करे। मैं 30 सालों से आपकी मां के ताने सुनती आई हूं बहुत सह और सुन लिया अब और नहीं सुनूंगी" गार्गी ने गम्भीर मुद्रा में कठोरता से कहा और वहां से चली गई।
गार्गी का ऐसा रूप देखकर हाल में सन्नाटा छा गया किसी ने कुछ नहीं कहा काव्या और पारूल भी अपनी मां के पीछे चलीं गईं।
" मां••••• मां•••• आज मैं बहुत खुश हूं आप बोलना भी जानती हैं यह तो मुझे आज ही पता चला है वरना मैंने आपको हमेशा दादी के तानों को चुपचाप सुनते देखा है आज यह चमत्कार कैसे हो गया मैं तो हमेशा आपसे कहती थी कि,आप क्यों इतना बर्दाश्त करतीं हैं। पर मेरी बातों का कोई असर ही नहीं होता था आज आपने वह किया है जो आपको बहुत पहले करना चाहिए था" पारूल ने ख़ुश होते हुए कहा
" हर बात का एक समय होता है आज वह समय आ गया था तो मैंने जवाब दे दिया" गार्गी ने गम्भीर मुद्रा में जवाब दिया।
काव्या ने कुछ नहीं कहा उसके चेहरे पर गम्भीरता छाई रही पता नहीं क्यों काव्या को लग रहा था कि, जैसे घर में कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है।
तभी जमुना काकी ने आकर बताया कि, दोनों दामाद जी आ गए हैं। जमुना काकी की बात सुनकर गार्गी ने कहा "तुम लोग अपनी पैकिंग कर लो मैं उन लोगों से मिलकर आती हूं"और कमरे से बाहर निकल गई।
" दी अब मुझे मां की चिंता नहीं रहेगी क्योंकि अब मां ने बोलना सीख लिया है" पारूल ने खुश होकर कहा।
" पारूल तुम गलत सोच रही हो मुझे तो चिंता अब हो रही है तुमने शायद ध्यान नहीं दिया मां के चेहरे पर मुझे चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं। मुझे पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा है कि, मां कोई बहुत बड़ा फैसला करने वाली हैं" काव्या ने परेशान होते हुए कहा।
" दी आप सोचती बहुत हैं मां अब ऐसा कौन-सा फैसला करेगी आज मां ने अपनी आखिरी जिम्मेदारी भी पूरी कर ली अब मां के जीवन में फैसला करने के लिए बचा ही क्या है" पारूल ने लापरवाही से अपनी पैकिंग करते हुए कहा
काव्या चुप हो गई उसका मन बहुत बेचैन हो रहा था तभी गार्गी ने कमरे में प्रवेश किया इस समय भी उनके चेहरे पर गम्भीरता दिखाई दे रही थी। गार्गी ने अपनी अलमारी खोली उसमें से दो लिफाफे निकाले अलमारी बंद कर अपनी बेटियों से पूछा,
" तुम लोगों की पैकिंग हो गई"?
" हां मां हम लोगों की पैकिंग हो गई है गार्गी ने काव्या और पारूल के सिर फर हाथ फेरते हुए गम्भीरता से कहा " आज मैं अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गई अब मैं स्वतंत्र हूं कोई भी निर्णय लेने के लिए"
दोनों बेटियों के हाथ में एक एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा "यह ख़त है इसे 15 दिन के बाद खोलकर पढ़ना उसके बाद तुम लोगों का जो निर्णय होगा उसे मुझे बताना"
" मां इस ख़त में ऐसा क्या लिखा है जो आप हम लोगों से नहीं कह सकती हैं उसे हमें बताने के लिए आपको ख़त का सहारा लेना पड़ा"? काव्या ने घबराकर पूछा
"तुम्हारे सभी सवालों के जवाब तुम्हें ख़त पढ़ने के बाद मिल जाएगे इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है जो मैंने कहा है उस बात को नज़रंदाज़ करके इस ख़त को पहले नहीं पढ़ना तुम दोनों को मेरी सौगंध है"गार्गी जी ने सपाट स्वर में कहा
काव्या कुछ और पूछतीं तभी गार्गी के दोनों दामाद कमरे में दाखिल हुए और बात अधूरी रह गई••••••• क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
6/5/2021