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दिल में चुभी किरिंच भाग 2

5 फरवरी 2022

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दिल में चुभी किरिंच भाग 2

   
   काव्या अपने पति अखिल और देवर निखिल को देखकर चुप हो गई।

  " आओ बच्चों बैठो मुझे तो तुम लोगों से बात करने का मौका ही नहीं मिला,अब बहन जी की तबीयत कैसी है" गार्गी ने बहुत स्नेह से अपने दोनों दामादों को देखते हुए कहा।

    अखिल और निखिल ने बैठते हुए कहा" मां जी मां अब पहले से ठीक हैं तभी तो हम लोग यहां आए हैं शादी में नहीं आ सके थे इसलिए मां ने कहा कि, तुम लोग बहूओ को लेने चले जाओ इसी बहाने सबसे मिलना हो जाएगा"

    " तुम दोनों यहां आए यह देखकर मुझे भी बहुत खुशी हुई"

" काव्या जल्दी करो नहीं तो हम लोगों की ट्रेन छूट जाएगी" अखिल ने अपने पत्नी से कहा और उठकर खड़ा हो गया

   " हम दोनों तैयार हैं चलिए" काव्या ने उदास लहज़े में जवाब दिया उसके चेहरे की उदासी देखकर अखिल ने कहा " तुम इतनी उदास क्यों हो गई हम लोग जल्दी ही मां से मिलने फिर आएगे।  मां की तबीयत अगर ठीक होती तो मैं अभी तुम दोनों से चलने के लिए न कहता"

    गार्गी ने नौकर को आवाज लगाई तभी एक नौकर वहां आ गया " आपने बुलाया छोटी मालकिन"?

  "हां मोहन!! बच्चों का सामना बाहर लेकर चलो" गार्गी ने मोहन से कहा मोहन सामान उठाकर बाहर निकल गया।

  काव्या अपनी मां का चेहरा देख रही थी उसका मन बार बार यह कह रहा था कि, मां के मन में कुछ न कुछ जरूर चल रहा है वह क्या है यही उसे समझ नहीं आ रहा था।इस समय मां से वह कुछ  पूछ भी नहीं सकती थी, सभी लोग कमर से बाहर निकल गए जब गार्गी अपनी बेटियों और दामादों के साथ नीचे हाल में पहुंचीं तो गार्गी ने देखा वहां उसकी सास पार्वती, बुआ सास लक्ष्मी उसके पति और ननद सुगंधा बैठे हुए थे।

   अखिल और निखिल ने पार्वती जी का पैर छूकर मुस्कुराते हुए कहा "दादी आप भी हमारे साथ नैनीताल चलिए इस समय वहां का मौसम बहुत अच्छा होता है"

   " पहले अपनी मां की सेवा कर लो फिर हमें लेकर चलना पैसे वैसे की कमी हो तो सीधे-सीधे बता दो बहाना बनाकर मांगने की जरूरत नहीं है" पार्वती जी ने व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा।

   पार्वती जी की बात सुनकर अखिल चौंककर उन्हें देखने लगा पारूल और काव्या का चेहरा गुस्से से लाल हो गया गार्गी ने बहुत गहरी नज़रों से अपनी सास को देखा कहा कुछ नहीं।

  "दादी आप मेरे पति का अपमान कर रहीं हैं उन्होंने आपको अपने साथ लेकर चलने की बात की है इसमें पैसे की बात कहां से आ गई"?

   " इतना नाराज़ होने की जरूरत नहीं है काव्या"

   " क्यों नहीं है आप हमारे पतियों का अपमान कर रही हैं और हम नाराज़ भी न हों" इस बार पारूल ने गुस्से में कहा।

    " मैंने बिल्कुल सही बात कही है तुम लोग मुझे अपने साथ ले जाने की बातें कर रहें हो मैं तुम लोगों के साथ जाऊंगी तो मुझे तुम लोगों के साथ रहना पड़ेगा। हमारे खानदान में बहन बेटियों के घर का पानी भी नहीं पीते इस परम्परा का मुझे भी पालन करना पड़ेगा तो मैं वहां जितने दिन रहूंगी जो ख़र्चा तुम लोग करोगे तो उसका चार गुना मैं दूंगी। इसलिए यह सब दिखावा करने की क्या जरूरत है वैसे ही मुझसे पैसे मांग लो वैसे तो तुम्हारी मां ने चोरी से शगुन के नाम पर पैसा दे ही दिया होगा" पार्वती जी ने मुंह बनाते हुए व्यंग से कहा।

  "मां आप को कहां क्या बोलना चाहिए इसकी भी समझ नहीं है अरे काव्या और पारूल इस घर की बेटियां हैं इनका हक़ बनता है उपहार और शगुन लेने का भाभी ने अगर दिया भी है तो यह सब कहने की क्या जरूरत है हर मां अपने बेटी को विदाई के समय शगुन देकर विदा करती है।
आप इस घर की बड़ी हैं यह काम तो आपको करना चाहिए आप कुछ अच्छी बात नहीं कह सकतीं तो किसी को अपमानित करने वाली बात भी न कीजिए" सुगंधा ने गुस्से में कहा

   " सुगंधा गुस्सा करने की जरूरत नहीं है मां जी अपने मन की भड़ास निकाल रहीं हैं  मेरी बेटियों के खुशहाल जीवन को देखकर। काव्या और पारूल बेटा अपनी दादी की बातों का बुरा न मानो यह जो चाहतीं थीं वह नहीं हुआ तो उसका गुस्सा तुम्हारे पतियों को अपमानित करके निकाल रहीं हैं" गार्गी ने जहरीली मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया।

   " गार्गी"••••गी रूद्रप्रताप जो से चिल्लाए
 
   " भैया आप भाभी पर क्यों चिल्ला रहें हैं भाभी ने क्या किया है" सुगंधा ने आश्चर्य से कहा।

  " गार्गी बहू बेटियों को विदा करना है पहले उन्हें विदा करो उसके बाद अपनी घर की समस्याओं को सुलझाती रहना वरना उनकी ट्रेन छूट जाएगी" गार्गी की बुआ सास लक्ष्मी ने गम्भीर लहज़े में कहा।

   काव्या और पारूल अपनी मां से लिपटकर रोने लगी गार्गी ने उन्हें कसकर अपनी बाहों में समेट लिया जैसे वह उन्हें दिल में क़ैद कर लेना चाहती हो अखिल और निखिल के चेहरे पर तनाव दिखाई दे रहा था।

   काव्या और पारूल ने अपनी बुआ सुगंधा और लक्ष्मी दादी से मिलकर आशीर्वाद लिया उनका अपनी दादी से मिलने का मन नहीं था फिर भी बेमन से उनका आशीर्वाद भी लिया।

    तभी जमुना काकी वहां आ गई उनके हाथ में सूप था उसमें दिया जल रहा था उसमें सिंदूर की डिबिया और चावल के साथ गुड़ रखा हुआ था।
   वह गार्गी के पास आई और उन्होंने कहा "बहूरानी आप बिटिया लोगों का कोंछा भर दीजिए बेटियां खाली आंचल लेकर मायके से नहीं जाती"

    " हां बहू जमुना ठीक कह रही है" लक्ष्मी बुआ ने कहा

   " नहीं बुआ दादी हमें मां का आशीर्वाद मिल गया है और हमें कुछ नहीं चाहिए चलिए अखिल हम लोग लेट हो रहें हैं" काव्या ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा

  "बिटिया ऐसा न कहो" जमुना काकी ने कहा

  " नहीं काकी यहां जरूरत से ज्यादा प्यार और सम्मान मिल गया है इससे ज्यादा प्यार हम लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते" पारूल ने अपने पापा ठाकुर रूद्रप्रताप की ओर  गुस्से में देखते हुए कहा और वह हाल से बाहर निकल गई पारूल के साथ साथ काव्या, अलिख और निखिल भी बाहर निकल गए।

   यह देखकर कि,उनकी बेटियां उनके पास नहीं आई ठाकुर रूद्रप्रताप का चेहरा कठोर हो गया उनके चेहरे पर गुस्से के बादल दिखाई देने लगे।

  तभी गार्गी हाल में दाखिल हुई उसे देखते ही ठाकुर रूद्रप्रताप ने गुस्से में कहा " गार्गी तुमने अपनी बेटियों के मन में मेरे और मां के खिलाफ इतना ज़हर भर दिया है कि, वह दोनों मुझसे बिना मिले ही चलीं गईं"

  " ठाकुर साहब काव्या और पारूल अब छोटी बच्ची नहीं हैं उन्हें सब समझ आता है कि,कौन उनके साथ कैसा व्यवहार कर रहा है मुझे उन्हें समझाने की जरूरत नहीं है वह दोनों सब समझती हैं" गार्गी के चेहरे पर जहरीली मुस्कुराहट फ़ैल गई।

    " गार्गी••••  तुम्हारी ज़बान बहुत चलने लगी है" ठाकुर रूद्रप्रताप ने गुस्से में कहा

   " तुम्हारी छूट का नतीजा है  पहले तो जैसे मुंह में जबान ही नहीं थी और अब हर बात पर जवाब देती है। गरीब परिवार की लड़कियां जब बड़े खानदान में जाती हैं तो अपनी औकात भूल जाती हैं मैंने इस गरीब लड़की को अपने खानदान की बहू बनाया और अब यह अपनी औकात दिखा रही है" पार्वती ने घृणा से मुंह बनाते हुए कहा।

   " अभी आपने मेरी औकात देखी कहां है मां जी" गार्गी ने मुस्कुराते हुए कहा गार्गी की मुस्कुराहट देखकर पार्वती जी का चेहरा गुस्से से आग-बबूला हो गया

  " कैलाश गाड़ी निकालो मुझे कहीं जाना है" गार्गी ने मुस्कुराते हुए अपने पति और सास को देखा  और बिना किसी की परवाह किए हवेली से बाहर निकल गई।

पार्वती और रूद्रप्रताप आश्चर्य से गार्गी को जाते हुए देखते रहें••••• क्रमशः

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
7/5/2021

  


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रचनाएँ
दिल में चुभी किरिंच
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एक औरत अपना पूरा जीवन अपने पति और परिवार के लिए समर्पित कर देती है फिर भी उसको वह मान-सम्मान और प्यार प्राप्त नहीं होता जिसकी वह अधिकारी होती है इस बात की चुभन उसके दिल को हमेशा घायल करती है वह अपने मनोभावों को दुनिया समाज के सामने व्यक्त भी नहीं कर सकती है क्योंकि वह संस्कारों की बेड़ियों में बंधी हुई होती है।अगर वह अपने दिल के दर्द को बयां करना भी चाहे तो लोग उसके संस्कार और चरित्र पर उंगली उठाने लगते हैं वह सही है इसका प्रमाण देना होता है फिर भी समाज उसे शंका की दृष्टि से देखते हैं।लोग उपदेश देते हैं औरत हो कुछ दर्द और अपमान तो सहना ही पड़ेगा तुम्हारा सम्मान तुम्हारे पति के सम्मान से जुड़ा हुआ है तुम पुरूषों की बराबरी नहीं कर सकतीं सदियों से यही चलता आया है कि,औरत को झुककर और सहन कर के रहना पड़ता है।जब अपनो से समाज से औरत ऐसी बातें सुनती है तो उसका मन तड़प उठता है वह पिंजरे में बंद पंक्षी की तरह फड़फड़ा उठती है पर संस्कारों की बेड़ियों में जकड़ी होने के कारण उन्हें तोड़कर आज़ाद नहीं हो सकती।यह कहानी हर औरत की है चाहे वह पढ़ी लिखी उच्च समाज से सम्बन्ध रखती हो, मध्यमवर्गीय परिवार से हो या कम पढ़ीलिखी औरत हो उसे खुलकर अपने मन की पीड़ा को बयां करने का अधिकार नहीं होता अगर कोई औरत बगावत करने की कोशिश करती भी है तो स्वयं उसका स्त्रीयोचित गुण उसे ऐसा करने से रोक लेता है मेरा यही विचार है और यही कारण है कि,एक औरत कभी भी किसे से खुलकर अपने दिल के दर्द को नहीं कहती वह जीवनपर्यंत मुखौटा लगाकर रहती है उसके मन की पीड़ा उसके चेहरे की हंसी को छुपा लेते हैं लोग जिसके खुशहाली का बखान करते हैं उसके मन की पीड़ा सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका मन ही जानता है दूसरा कोई नहीं औरत के इसी दर्द को उकेरने की कोशिश मैंने अपने इस उपन्यास में किया है। मैं इसमें कहां तक सफल रही हूं इसका निर्णय मेरे पाठक गण करेंगे मुझे अपने पाठकों के स्नेह और समीक्षा का इंतजार रहेगा धन्यवाद।
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