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दोहे

14 अगस्त 2024

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11. काशी के कण में बसा, महिमा अपरम पार।
अति सूक्ष्म ये रहस्य है, वेदों का ये सार।।


12. जिया अगर तो क्या जिया, जो न किया शिव ध्यान।
माटी की इस गात पर, मिथ्या करता मान।।


13. छप्पन भोग क्षुधा नही, करते जल का पान।
जो सुमिरे नित रुद्र को, चढ़े नये सोपान।।


14. अकेला खड़ा राह पर, साथी मिला न कोय।
सुमिरन बाबा का किया, संग न भाये कोय।।


15. समझ खुद को अनाथ मत, रुद्र खड़े हैं साथ।
दीनो को आनंद दे, है सबका वो नाथ।।


© लक्ष्मी दीक्षित

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

वाह बहुत खूबसूरत लिखा है आपने 👏👏👏👏👏👏👏🙏

15 अगस्त 2024

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रचनाएँ
शिवोहम
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दोहा छंद काव्य विधा का बहुत ही लोकप्रिय छंद है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है रामचरितमानस। किंतु आधुनिक काल में छंद बद्ध काव्य शैली का अभाव हो रहा है। युवा लेखक छंद बद्ध रचनाओं को लिखने में अपना समय और शक्ति को नही लगाना चाहता। इस पुस्तक में दोहा छंद के माध्यम से शिवजी के प्रति अपनी आस्था को अभिव्यक्त करने का प्रयास लेखिका द्वारा किया गया है। जो कि पढ़ने में बहुत ही मधुर और भोले शंकर के प्रति अपनी आस्था को अभिव्यक्त करने के लिए सर्वथा उपयुक्त है। आशा है पाठकों को पसंद आएंगे। 😊🔱🚩
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दोहे

12 अगस्त 2024
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1. सर्प हार पहने गले, माला सोहे मुंड। बाघंबर तन पे सजे, भाल मध्य त्रिपुंड।। 2. सावन में गौ रस चढ़े, होता जल अभिषेक। भांग, धतूरा , मधु चखें, रख बाबा बहु भेष।। 3. चोट लगी रोया नही, बहुत बड़ा तू

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दोहे

13 अगस्त 2024
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6. जब बाबा काशी गए, गौरा भयीं अधीर। अन्न, अंबु, घर तज दिया, अक्ष बहे झर नीर।। 7. कंठ हार भोले सजे, है परम मूल्य वान। भक्त अपरिमित वासुकी, न करे कोई मान।। 8. शिव पूजन का नाग का, है पहला अधिकार।

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दोहे

14 अगस्त 2024
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11. काशी के कण में बसा, महिमा अपरम पार। अति सूक्ष्म ये रहस्य है, वेदों का ये सार।। 12. जिया अगर तो क्या जिया, जो न किया शिव ध्यान। माटी की इस गात पर, मिथ्या करता मान।। 13. छप्पन भोग क्षुधा नही

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