11. काशी के कण में बसा, महिमा अपरम पार।
अति सूक्ष्म ये रहस्य है, वेदों का ये सार।।
12. जिया अगर तो क्या जिया, जो न किया शिव ध्यान।
माटी की इस गात पर, मिथ्या करता मान।।
13. छप्पन भोग क्षुधा नही, करते जल का पान।
जो सुमिरे नित रुद्र को, चढ़े नये सोपान।।
14. अकेला खड़ा राह पर, साथी मिला न कोय।
सुमिरन बाबा का किया, संग न भाये कोय।।
15. समझ खुद को अनाथ मत, रुद्र खड़े हैं साथ।
दीनो को आनंद दे, है सबका वो नाथ।।
© लक्ष्मी दीक्षित