दुराभिमान
एक राज्य में एक राजा था।उसकी प्रजा उससे बहुत खुश थी।
उसके महल में एक छोटी सी कोठरी थी, जिसकी चाबी राजा हमेशा अपने कमर में लटकाये रहता था।
सप्ताह में एक बार वह उस कोठरी में जाता.. आधा एक घंटा अंदर रहता और बाहर निकल कर बड़ा सा ताला उस कोठरी में लगा देता था, और अपने अन्य कार्यो में लग जाता।
इस तरह राजा के बार-बार उस कमरे में जाने से सेनापति को अचम्भा होता कि राज्य का सारा खजाना, सारे रत्न, मणि, हीरे, जवाहरात तो खजांची के पास है।
सेना की शस्त्रा गार की चाबी मेरे पास है और अन्य बहुमूल्य कागजातों की चाबी मंत्री के पास है।
फ़िर इस छोटे से कोठरी में ऐसा क्या है, जो राजा यहां हर सप्ताह अंदर जाता है। और थोड़ी देर बाद बाहर निकल आता है।
सेनापति ने हिम्मत करके राजा से पूछा की राजन, यदि आप क्षमा करें तो यह बताइये कि उस कमरे में ऐसी कौन सी वस्तु है, जिसकी सुरक्षा की आपको इतनी फ़िक्र है।
राजा ने सेनापति से कहा कि वक्त आने पर बताऊंगा
मंत्री और सभासदों ने भी राजा से पूछने का प्रयास किया परन्तु राजा ने किसी को भी उस कमरे का रहस्य नहीं बताया।
बात महारानी तक पहुंच गयी और आप तो जानते है की स्त्री हठ के आगे किसी की भी नहीं चलती, रानी ने खाना-पीना त्याग दिया और उस कोठरी की सच्चाई जानने की जिद करने लगी।
आख़िरकार विवश होकर राजा सेनापति व अन्य सभासदों को लेकर कोठरी के पास गया और दरवाजा खोला..
जब कमरे का दरवाजा खुला तो अंदर सिवाय एक फटे हुए कपड़े के जो दीवार की खुटी पे लटके थे इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था।
मंत्री ने पूछा की महाराज यहा तो कुछ भी नहीं है।
राजा ने उस फटे कपड़े को अपने हाँथ मे लेते हुए धीमे स्वर में कहा कि यही तो है मेरा सब कुछ..
जब भी मुझे थोड़ा सा भी अहंकार आता है, तो मै यहाँ आकर इन कपड़ों को देख लिया करता हूँ।
मुझे याद आ जाता है की जब मै इस राज्य में आया था तो इस फटे कपड़े के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं था। तब मेरा मन शांत हो जाता है और मेरा घमण्ड समाप्त हो जाता है, तब मै वापस बाहर आ जाता हूँ।
इस रहस्य को जानने के बाद सभी राजा की जय जय कार करने लगे
सार :-
अहंकार अग्नि के समान होता है, जो मनुष्य को अपने ताप से भस्म कर देता है।
बिरला ग्रुप के मालिक जब तक जीवित रहे, पत्थर तराशने वाले मज़दूर सदैव उनके यहाँ काम करते रहते थे क्योंकि वह स्वयं पत्थर काटने वाले मज़दूर थे।
*सदैव ध्यान रहे *यह दिन भी नहीं रहेंगे*