दुष्यंत की इस कविता का मिजाज बदलाव के पक्ष में है। वह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव चाहता है, तभी तो वह दरख्त के नीचे साये में भी धूप लगने की बात करता है और वहाँ से उम्र भर के लिए कहीं और चलने को कहता है। वह तो पत्थर दिल लोगों को पिघलाने में विश्वास रखता है। समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी रचनाएँ के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यंत कुमार को मिली, वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है। दुष्यंत एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं। दुष्यंत का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है।
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