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एक दिन फुटपाथ के साथ

5 जुलाई 2016

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रोज के तरह सुबह-सुबह टहलने निकला था | अपनी मौज में गुनगुनाता चला जा रहा था , लगा जैसे किसी ने आवाज लगाया हो | सुनने के लिए इधर-उधर देखा, कहीं कोई दिखाई नहीं दे रहा था | मन का वहम सोच कर आगे बढ़ने लगा कि फिर वही आवाज आयी | पुकारने वाले ने धीमे से कहा, ”जनाब ज़रा नीचे तो झांकिए, मैं आपका चिर परिचित  'फुटपाथ' आपको आवाज दे रहा हूँ|” अब चौंकने की बारी थी , फुटपाथ मुझसे बात करने को उद्धत | उसने आगे कहा, “आज तक आपने बहुतों के बारे में लिखा- पढ़ा- सुना  होगा | कभी मेरे बार में भी कुछ लिख दीजिये|” थोड़े देर के लिए मैं सोच में पड़ गया कि क्या लिखूं , फिर निश्चय किया कि पूरी कहानी सुन लिया जाए फिर लिखने की शुरुआत होगी | वो बताता गया, मैं लिखता गया |

      सुबह की पहली किरण आकाश से फूटकर अभी नीचे आ भी नहीं पाती कि अपनी सेहत का ख्याल रखने वाले कुछ मतवाले, कुछ भटकते लोग विभिन्न वेशभूषा में मचलते- मटकते चले आते हैं , मॉर्निंग वाक के नाम से | इनमें से कुछ तो सही रूप में  'वाक' शब्द को चरितार्थ करते हुए दीखते हैं | पिछले दिन की घटनाएं, मित्रों एवं पड़ोसियों के छिद्रान्वेषण , घर से लेकर राजनीति तक का हर हाल आपस में बयां करते हुए चल देते हैं |इनमें कुछ ऐसे उद्दमी भी होते हैं जो बिना तम्बाकू सेवन के नहीं रह सकते ,शायद अपने घर से नित्य क्रिया करने न निकलते हों लिहाजा एक कोना देख कर उत्सर्जन कर अपने आप को हल्का कर लेते हैं | मैं वेचारा क्या कर सकता हूँ , मेरी चीख भी तो उन्हें सुनायी नहीं देती है | धीरे-धीरे सेहताकांक्षी इन वीरों का काफिला चला जाता है | आकाश भी लालिमा छोड़ अब अगले रंग में ढलने लगता है | यह समय शायद दिन भर के अच्छे समयों से एक होता है , जब नगर निगम के कर्मी प्रेम से अपने अस्त्रों द्वारा सेहताकांक्षी वीरों द्वारा फैलाये हुए कचरे के साथ दिन भर के गन्दगी को साफ़ करके निकल जाते हैं | इसके साथ ही   धीरे - धीरे मजमा लगना शुरू हो जाता है | आने जाने वालों का सफर शुरू हो जाता है , इसके साथ ही उनके विभिन्न आवश्यकताओं की वास्तु बेचने वाले सौदागर विभिन्न  रूप –रंगों में सज कर आ जाते हैं और फिर मंडी सा माहौल लग जाता हैं | शुरुवात में तो सब शांत सा चलता रहता है ,पर अचानक हलचल और भगदड़ मच जाती है | पलट कर देखा तो पता लगा कि ये नगर निगम एवं पुलिस का एक संयुक्त अभियान है जो इस प्रकार के अनाधिकृत व्यापारियों के खिलाफ चलता रहता है | ऐसा रोज नहीं होता है, पर जिस दिन ऐसा होता है उस दिन बेचारे व्यापारियों की शामत आ जाती है | बेचारे करें भी तो क्या |कम आमदनी वाले ये लोग मोटा पैसा लगाकर कहीं स्थायी व्यापार तो लगा नहीं सकते , लिहाजा आज यहाँ तो कल कहीं किसी फुटपाथ पर चलता रहता है | समय का चक्र आगे बढ़ता रहता है और उसी क्रम में यह बाजार भी | शाम की शुरुवात के साथ यह बाजार सिमटने लगता है | व्यापारी अपना सब समेटकर अपने घरों को लौट जाते हैं | अब लगता है कि थोड़ा सुकून मिल जाएगा | पर ऐसा कहाँ सम्भव हो पाता है | दिन ढलने के बाद शाम के व्यापारियों की शुरूवात हो जाते है | एक निर्जन पड़ा फुटपाथ फिर से जीवंत हो उठता है | यह सिलसिला भी कुछ पलों के बाद थम जाता है | अब लगता है कि नीरवता आ गयी हो | पर नहीं असली चहल- पहल का समय तो अब आता है | शहर भर के    बेघर – बेसहारा लोग, दिन भर इधर उधर भटकने के बाद चैन की नींद लेने के लिए मेरे आगोश में आ बैठते हैं | कभी लकड़ी सुलगाकर, तो कभी बेकार पड़े प्लास्टिक और  पॉलीथीन जलाकर कच्ची पक्की रोटी बनाकर बड़े सुकून से आपस में मिल बांटकर ग्रहण करते हैं | भोजन का ऐसा अप्रतिम आनंद तो मुझे लगता है पंच-तारा होटलों के भोजन के स्वाद में नहीं होगा | रैन बसेरा तक ही यह सीमित नहीं होता है | ये शरणार्थी इसी फुटपकथ पर शादी- विवाह से लेकर हर प्रकार के रश्मों रिवाजो में बंधते  हैं | बल बच्चेदार बनते है , वृद्धावस्था में प्रवेश करते हैं और फिर दुनिया से कूच कर जाते हैं | दिन भर के बिछुड़े हुए ऐसे मिलते हैं जैसे जन्मों बाद मिल रहे हों | अब यह मिलन सदा प्रेम मिलन ही हो जरूरी नहीं | कुछ व्यसन के शौकीन शरणार्थी भी तो होते है | ऐसे लोग पास सोते हुए लोगों की परवाह न कर आपस में झगड़ा- फसाद भी कर ही डालते हैं , अब वो  चाहे अपनी घरवाली से हो या फिर अन्य लोगों से | कभी -कभी तो इन्हें शांत करने के लिए पुलिस तक को  आना पड़ जाता है | अब यदि पुलिस आयी तो बाकी बेचारों को भी बेघर होना पद जाता है | पकडे जाने के भय से सब पलायन करने लगते हैं | जबतक मौसम मेहरबान है तबतक गर्मी अथवा सर्दी हो , ये मेरा साथ नहीं छोड़ते हैं , पर जैसे ही बर्षात की शुरुआत होती है , मेरे साथ-साथ इनपे भी शामत आ जाती है | कुछ तो यूँ ही भीगते हुए बर्षात के ख़त्म होने का इंतजार करते है तो भीगने से बचने के लिए कोटरों की तलाश में भटकने लगते हैं | यह इनके लिए कठिनतम समयों से एक होता है | पर बेचारे करें भी तो क्या |यूँ ही लुढ़कते- लुढ़कते जीवन के अंतिम पड़ाव तक पहुँच ही जाते हैं | धीरे धीरे रात  गहराती है , दिन के उजाले लाने के लिए घड़ी अग्रसर होने लगती है | ये निवासी उठकर दिन भर के दिनचर्या की शुरुवात कर डालते हैं | पानी का ड्रम लेकर क्या महिला , क्या पुरुष सभी बारी - बारी से स्नान करने लगते हैं | जो निपट गया वो भोजन बनाने में लग जाता है | फटाफट भोजन बनाकर , खाकर अपना सब सामान समेत किसी पेड़ की डाली या दीवार की कोटरों में छुपाकर सब इधर उधर हो जाते हैं | लगता है जैसे यहाँ कभी कोई रहा ही ना हो | अलार्म बजना , सेहताकांक्षी वीरों का आगमन और फिर से पूरा चक्र चल पड़ता है |हमेशा सोचता रहता हूँ कि शायद आज शांत रहे माहौल , पर निरंतर सबकुछ चलता रहता है |

      इस कहानी में मैं तो जैसे खो सा गया था , तभी पीछे से श्रीमतीजी ने आवाज लगाई , “ कहाँ खो गए हो , आगे भी चलना है , चलो बढ़ो |” मुस्कुराते हुए मैंने फुटपाथ को विदा कहा और मैं भी अपनी दिनचर्या में लग गया |

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जुमानी की माँ बहुत दुखी थी,पति कैंसर से मर गए। एक बेटा और बेटी सर्प दंश से काल कलवित हो गए। एक बेटी बची थी,वह भी अर्ध विक्षिप्त रहती थी। गांव वालो के अनुसार उनके घर पर ब्रह्मराक्षस का साया था। एक दिन पडोसी के दामाद से भेंट हुई,उनहोंने सुन रखा था कि दामादजी का बड़े बड़े तांत

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इंदुसंचेतना मार्च 2017

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आलेख हेतु निवेदन

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चीन के एक विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाली एकमात्र हिन्दी पत्रिका इन्दु संचेतना के बाल कथा विशेषांक के लिए रचनाएँ आमंत्रित हैं।कृपया अपनी रचना दिनांक 20मई2017 तक indusanchetana@gmail.com पर भेज कर हिन्दी के वैश्विक प्रचार में सहयोग करें ।

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सरकारी दलित :व्यंग्य

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*व्यंग्य: सरकारी दलित*बारिश प्रचंड वेग पर थी।सरकार के तरफ से यह मुनादी फिरा दी गई कि नदी के किनारे बसे लोग कहीं सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं, बाढ़ आने की आशंका है,जान माल का नुकसान हो सकता है।कुछ लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए, जिनका कोई न था वे बेचारे इधर उधर होकर रह गए।सचमुच बाढ़ आ गई।काफी तबाही हुई

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माननीय प्रधानमन्त्री महोदय, मैं आपके शासनकाल में देश को विकास की ओर अग्रसर करने वाली योजनाओं के लिए ह्रदय से आभारी हूँ | एक भूतपूर्व सैनिक होने के नाते कुछ ऐसी बातें हैं जिनपर कोई साकारात्मक सहयोग हो इस आशा से कुछ बिंदु आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ :-1. शिक्षा के क्षेत्र में विसंगतियों :- यूँ त

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17 दिसम्बर 2019
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मंटूबड़ा खुश था । प्राइमरी में टीचर लगे उसेअभी साल भर भी नहीं हुआ था कि सरकार द्वारा प्रायोजित डी-एड पाठ्यक्रम के लिए उसकानामांकन हो गया । प्राइमरी स्तर के बालकों कोपढ़ाने के लिए डी-एडकी पढाई काफी महत्वपूर्ण है । समय परसमस्त शिक्षक सेंटर पहुँच गए । पाठ्यक्रमप

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मैं अक्सर हार जाता हूँ-भाग-1

28 जुलाई 2020
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परसों किसी सज्जन ने मुझे व्हाट्सएप पर संदेश दियाWhy Job ??? When U can own ur Business..........Let's learn 2 *EARN* कुछ नया व्यापार,सपनों की हर बात हासिल करने की शायद राह दिखाना चाह रहे थे। मैं भी उत्साहित था कि कुछ नया करने का मौका है।और फिर उन्होंने मुझे फोन किया।औपचारिक बातचीत के बाद उन्होंने म

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शब्दों का जादू

7 सितम्बर 2021
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अपने डेस्क से बगल वाले डेस्क पर झांक कर देखा। कुर्सी पर बैठे बाबू बीच बीच में लंबी सांसे ले रहे थे,कभी सिर खुजाते कभी सिर रगड़ते और फिर लंबी सांसे लेने लगते।ऐसा लग रहा था मानो दर्द से उनका सिर फट रहा

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