माननीय प्रधानमन्त्री महोदय,
मैं आपके शासनकाल में देश को विकास की ओर अग्रसर करने वाली योजनाओं के लिए ह्रदय से आभारी हूँ | एक भूतपूर्व सैनिक होने के नाते कुछ ऐसी बातें हैं जिनपर कोई साकारात्मक सहयोग हो इस आशा से कुछ बिंदु आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
1. शिक्षा के क्षेत्र में विसंगतियों :- यूँ तो कामकाजी लोगों को उच्च शिक्षा अर्जन के लिए UCG. द्वारा मनोनीत कई विश्वविद्यालयों द्वारा स्नातक से पी एच डी तक के पाठ्यक्रम चलाये जाते हैं | अनुमानतः हजारों छात्र इस पाठ्यक्रमों से शिक्षा ग्रहण कर रोजगार की तलाश में लगते हैं | भूतपूर्व सैनिक के लिए ये कार्यक्रम सर्वथा उपयुक्त हैं | पर हाल ही में यह देखा गया है कि कई सरकारी संस्थान जिनमें नौ रत्न की कम्पनी भी शामिल हैं, वे भर्ती विज्ञापन में मात्र नियमित पाठ्यक्रम(regular courses) से पास अभ्यर्थियों को ही आवेदन करने के लिए कहते हैं | ऐसे में दूरस्थ शिक्षा देने वाले संस्थानों से पास हुए छात्र काबिलियत होते हुए भी आवेदन से चूक जाते हैं | धीरे धीरे यह ट्रेंड बढ़ता जा रहा है | इस सम्बन्ध में मेरा निवेदन है कि या तो नियोक्ता(सरकारी) दूरस्थ माध्यम से पढ़े छात्रों को भी नौकरी के लिए आवेदन के लिए पात्रता दे, अथवा दूरस्थ माध्यम से शिक्षा देने वाले विश्वविद्यालय(IGNOU. इत्यादि) को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाए ताकि ऐसे संस्थानों से शिक्षा प्राप्ति के बाद छात्र ठगा सा महसूस न करें |
2. संचार माध्यम के सम्बन्ध में :- एक ग्रामीण अथवा काम आय के व्यक्ति के लिए संचार एवं संपर्क का एक मात्र माध्यम भारतीय डाक सेवा है | डाक सेवा बचत बैंक का भी कार्य देखती हैं | इसमें देश के अधिकांश गरीब लोग अपनी कमाई जमा करते हैं | हाल ही में डाक विभाग द्वारा कोर बैंकिंग प्रणाली का विकास किया गया है | कुछ क्षेत्रों में अभी भी कार्य प्रगति पर है | यह एक अच्छा प्रयास है पर इस प्रयास में कुछ ऐसी बाधाएं हैं जो शायद इस प्रणाली को सफल करने में बाधक हैं उनका विवरण निम्नवत है :-
(क) संसाधन की कमी या निम्न स्तर का संसाधन – कुछ राज्यों में डाकघर में इस प्रणाली से जुड़ने के लिए कंप्यूटर प्रणाली जो दी गई हैं वो समसामयिक नहीं हैं | और फिर आवश्यक मात्रा से कम दी गईं हैं | पश्चिम बंगाल के ग्रामीण अंचलों के डाकघरों में यह बात आम है | या तो ये कंप्यूटर आधे दिन हैंग हुए रहते हैं या फिर बिजली न होने के कारण बंद रहते हैं | इसके कारण डाकघर के कार्मिक आम निवेशक एवं नागरिक के कोप भाजन बनते हैं | सबकुछ जानते हुए भी इन संसाधनों के सुधार के लिए वो विभाग से कुछ कहते हुए डरते हैं क्योंकि स्थानांतरण एवं सस्पेंड होने की घटना हो जाने का खतरा है |
(ख) इस प्रक्रिया में सबसे बाधक जो दूसरी वस्तु है वह है भारत संचार निगम लिमिटिड की इंटरनेट सेवा | इनकी कनेक्टिविटी इतनी खराब रहती है कि आप एक पेज खोलने के लिए कम से कम 15 मिनट इन्तजार करें तब जाकर पेज खुलेगा | इन सब का खामियाजा आम जनता को ही तो भोगना पड़ता है | मैं भी अपने घर में BSNL. व्यवहार करता हूँ | रोज ही इसकी मंद गति के कारण दुखी होता हूँ पर कुछ कर नहीं सकता सिवाय कोसने के | ऐसा नहीं की बीएसएनएल के लोग काम नहीं करते हैं पर यहाँ भी वही संसाधनों की कमी देखी जाती है | संसाधन ही न हो तो कर्मठ कार्मिक भी क्या करेगा |
अब यदि देश के संचार माध्यम की रीढ़ ही ठीक न हो तो, आगे विकास कोई कैसे करे | हालांकि मैं इस बात का पक्षधर हूँ कि देशी और सरकारी कंपनियां तरक्की करें इसलिए इन दोनों से जुड़ा हुआ हूँ पर कबतक कोई ऐसी परिस्थिति में किसी उपक्रम के साथ चल सकता है | आशा करूंगा कि इन दोनों विभागों में प्रबंधक स्तर पर नव चेतना जागृत करने का प्रयास किया जाएगा ताकि लोगों के खोए विश्वास को लौटाने के लिए ये प्रयास कर सकें |
3. स्वास्थ्य सेवा की दिशा में :- भारत का ग्रामीण अंचल आज भी समुचित स्वास्थ्य सेवा से वंचित है | मूल रूप से आधारभूत संरचना से भी अधिक चिकित्सा परिचर का अभाव इस समस्या का मूल कारण है | यह भी स्वाभाविक है कि कोई भी शहरी चिकित्सक ग्रामीण अंचलों में जाकर कार्य करने की इच्छा नहीं रखता |
भारतीय सेना के तीन अंग(सतह सेना,वायु सेना एवं नौ सेना) में अलग से चिकित्सा कोर है | इस कोर के लोग इस प्रकार से प्रशिक्षित होते है कि हर प्रकार की इमरजेंसी, आपदा एवं सामान्य समय की बिमारियों में प्राथमिक चिकित्सा एवं उपचार करते हैं | स्थल सेना में इन्हे नर्सिंग असिस्टेंट और वायुसेना एवं नौसेना में इन्हे मेडिकल असिस्टेंट कहा जाता है | सेना के हर यूनिट में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र प्रबंधन एवं चिकित्सा सेवा में इनकी अहम भूमिका होती है | सेवा निवृति के बाद चिकित्सा क्षेत्र में कोई रोजगार न होने के कारण ये अन्य क्षेत्र में रोजगार की तलाश में भटकते हैं | और इतने कुशल लोग समाज की कोई भी सेवा अपने कौशल के क्षेत्र में नहीं दे पाते हैं | मैं यह समझता हूँ कि बजट एवं अन्य समस्यों के कारण इन्हे चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में रोजगार दे पाना संभव नहीं होगा पर यदि कोई ऐसी व्यवस्था की जा सके जहाँ इनके प्रशिक्षण को सिविल अथॉरिटी मान्यता दें ताकि ये चिकित्सा परिचर अथवा पैरामेडिकल के रूप में पंजीकरण करवाकर प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकें तो इनके स्वरोजगार का अवसर खुल जाएगा और ग्रामीण अंचल के लोगों को समय पर सही सेवा मिल पाएगी |
4. रोजगार के आवेदन के लिए लगने वाले शुल्क के संबंध में : आजकल यह देखा गया है विभिन्न सरकारी संगठन, उपक्रम, बैंक आदि रोजगार सूचना में आवेदन करने वाले प्रार्थियों से एक शुल्क की मांग करते हैं| विभिन्न संस्थाओं द्वारा लिया जाने वाला यह शुल्क भी भिन्न होता है | यह शुल्क सौ रुपया से लेकर 1500 रुपया तक होता है | सौ रुपया तक तो चलिए कोई भी मान जाए पर मनमाने ढंग से संस्थाएं आवेदन शुल्क वसूलती हैं | ऐसे में गरीब छात्र पैसे के अभाव में नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर पाते हैं| सबसे दुःख तो तब होता है जब संस्थाएं मोटी रकम आवेदन शुल्क के रूप में वसूल तो लेती है, परीक्षा भी लेती हैं पर दुसरे दिन यह घोषणा की जाती है कि परीक्षा अपरिहार्य कारणों से निरस्त की जाती है | एक बार तो समझा जा सकता है पर बार बार होना, कहीं न कहीं व्यवस्था के प्रति प्रश्नचिन्ह लगता है | मैं दो संस्थाओं का उदहारण देना चाहूंगा पहली है केंद्रीय विद्यालय संगठन जिसकी 2014 की परीक्षा, 2015 की परीक्षा लगातार निरस्त की गई और अगली कब होगी इसका कोई अंदाज नहीं | दूसरी संस्था है कर्मचारी राज्य बीमा निगम जिसने समाजिक सुरक्षा अधिकारी नियोजन के लिए 2014 में आवेदन आमंत्रित किया था पर अबतक परीक्षा की तिथि घोषित नहीं हुई | भारतीय रेल की रेलवे भर्ती बोर्ड ने अनुवादक की भर्ती परीक्षा के लिए 2015 में परीक्षा लिया था, कुछ क्षेत्रों ने तो भर्ती प्रक्रिया पूरी कर ली पर कुछ क्षेत्र अब भी उसके प्रथम चरण का परिणाम प्रकाशित नहीं किये |
मेरा निवेदन है कि प्रार्थियों के hit में नियोजक द्वारा मांगे जाने वाले शुल्क की अधिकतम राशि पर एक नियंत्रण एवं विज्ञापन की तिथि से लेकर नियोजन तक की समय सीमा निर्धारित हो, हर विभाग इसे स्वीकार करें ऐसे प्रावधान की आवश्यकता है |
4. प्राथमिक एवं सरकारी स्कूलों के शिक्षा व्यवस्था के सम्बन्ध में : यह देखा गया है कि भारत सरकार प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के लिए काफी रकम खर्च कर रही है | शिक्षा सबको मिले इसके लिए काफी प्रयास किया जा रहा है पर आशानुरूप परिणाम प्राप्त नहीं हो रहा है | या तो स्कूलों में विद्यार्थी नहीं हैं या शिक्षक | कुल मिलकर सर्व शिक्षा का उद्देश्य असफल हो जाता है | जबकि केंद्रीय विद्यालय जैसी सरकारी संस्थान में अपने बच्चों को दाखिल करवाने के लिए लोग लालायित रहते हैं | यदि ध्यान से देखा जाए तो कमियां असंख्य मिलेंगी पर उन्हें सुधारने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिया जाता है :-
(क) बच्चों में परीक्षा के बाद फेल-पास करने की प्रथा जो बंद कर कर दी गई है उसे पुनः शुरू किया जाए | भले ही फेल हुए छात्रों को पूरक परीक्षा देकर अगले दो या तीन माह बाद पास होने का अवसर दिया जाए पर सही प्रदर्शन न करने वाले छात्र एवं अभिभावक के मन में कुछ भय होगा तो बच्चों की पढ़ाई का स्तर सुधरेगा |
(ख) छात्रों के स्तर का बीच बीच में जांच करने के लिए School Educational Audit दल का गठन हो जो नियमित रूप से स्कूलों की जांच कर छात्रों की प्रगति जांचें और इसका विवरण मंत्रालय तक भेजा जाए | यदि कोई कमी पाई जाए तो स्कूल के हेड मास्टर और विषय विशेष के शिक्षक को उत्तरदाई ठहराया जाए एवं तदनुसार कार्रवाई की जाए |
(ग) हर क्षेत्र के स्कूल को उस क्षेत्र के बड़े उद्योग या नियोक्ता चाहे वो बैंक हो या कोई संस्थान पपप मॉडल के अंतर्गत गोद ले और उसके विकास(Infrastructure) का ख्याल रखना CSR. के रूप में बाध्यतामूलक किया जाए |
उपरोक्त विवरण के आलोक में मेरा विनम्र निवेदन है कि जनता के हित को ध्यान समुचित उपाय किया जाए |