कुंग – आई -ची (KUNG I-CHI)
(लु-सुन)
अनुवाद – बिनय कुमार शुक्ल
लुसेन में शराब के दूकान चीन के अन्य हिस्से के समान नहीं है | उन सबमें समकोड़ीय काउंटर हैं जिनका प्रवेशद्वार गली की तरफ होता है तथा शराब गरम करने के लिए गर्म पानी रखा जाता है | दोपहर में काम से फारिग होने के बाद शाम को लोग एक प्याला शराब खरीदते हैं | बीस वर्ष पूर्व इसके लिए चार चांदी के सिक्के देने पड़ते थे पर अब दस | काउंटर के बगल में खड़े होकर गर्म शराब पी जाती है और फिर वो आराम करते हैं | एक सिक्के में बांस की कोपलों से बने पकवान या फिर सौंफ के जल में भिगोया और तला हुआ मटर या फिर बारह सिक्के में मांस का बना नमकीन शराब के साथ लया जा सकता है | पर अधिकांश ग्राहक छोटे कोट समूह के होते हैं जिनमें से कुछ ही इसे खरीद पाने में सक्षम होते हैं | सिर्फ लंबे गाउन वाले ही संलग्न कमरे में जाकर शराब और खाने की सामग्री मंगवाकर आराम से बैठकर इसका आनंद लेते हैं |
12 वर्ष की उम्र में मैं प्रोस्पेरिटी टैवर्न में, टाउन के प्रवेश द्वार के पास ही वेटर के रूप में काम करने लगा | टैवर्न के रखवाले ने बताया कि लंबी गाउन वाले ग्राहकों को सामान परोसता हुआ मैं मूर्खों जैसा दिखता था इसलिए मुझे बाहर के कमरे का काम सौंपा गया | हालाँकि छोटी कोट वाले ग्राहक बहुत आसानी से खुश हो जाते थे, पर उनमें भी कुछ उद्दंड स्वभाव के भी होते थे | बोतल से गिलास में डालते वो अपनी आँखों से देख यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि गिलास की तली में कहीं पहले से पानी तो नहीं भर कर रखा है | यही बात शराब से भरे गिलास को गरम पानी में रखते समय भी होती | ऐसी कड़ी जांच की स्थिति शराब में पानी मिलाना बहुत ही मुश्किल था | अतः कुछ दिनों के बाद मेरे नियोक्ता ने तय किया कि मैं इस काम के लिए उपयुक्त नहीं हूँ | सौभाग्य से इस नौकरी के लिए किसी बड़े आदमी से मेरी शिफारिश की थी इसलिए मुझे निकाला तो नहीं गया पर सुस्त काम में लगा दिया गया | अब शराब को गरम करने की जिम्मेदारी दी गयी |
इसके बाद से मैं दिन भर काउंटर के पीछे खड़े रहकर अपनी ड्यूटी बजाता था | हालाँकि मैं पूरी निष्ठा से यह काम करता रहा पर बिलकुल निरस काम था | मेरा नियोक्ता गुस्से वाला था तथा आने वाले ग्राहक उदासी में डूबे होते थे अतः मैं कभी हंस नहीं सका | बस जब कुंग-आई-ची टेवर्न आता तब मैं थोड़ा हंस लेता था | यही एक कारण था कि वो मुझे अब भी याद है |
लंबी गॉउन वाले ग्राहकों में कुंग ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था हो शराब खड़े-खड़े ही पीता था | लंबी चौड़ी काया, चेहरे पर कटे का निशान जो उसकी झुर्रियों के बीच छिप जाता |लंबी-सफ़ेद दाढ़ी उसके चेहरे पर विराजमान थी | अपनी बातों में वह ढेर सारे ऐसे मुहावरे बोलता जिसे समझ पाना असंभव हो जाता था | चूँकि उसका उपनाम कुंग था अतः उसे कुंग-आई-ची का नाम दिया गया था | इसके पहले तीन शब्द बच्चों की कॉपी का ब्रांड है |जब भी वाह दुकान में आता, सब उसकी तरफ देख कर कुढ़ते थे |कुछ उससे पूछ भी लेते, “कुंग- आई- ची तुम्हारे चेहरे पर चोट के कुछ नए निशान हैं, क्या बात है !”
चौड़ी आँखों से झांकते हुए वह बोल उठता, “क्यों शरीफ आदमी का नाम तुम लोग बिगाड़ रहे हो|”
इन सब बातों को अनदेखा करते हुए वह काउंटर पर आता, गरम शराब, सौंफ के पानी में भीगे हुए भूने हुए मटर लाने का आदेश देता | इसके लिए वह ताँबे के नौ सिक्के देता था | पीछे से तेज आवाज में कोई और भी बोल उठता :
“तुम फिर चोरी कर रहे होंगे |”
“क्यों बेकार में बदले आदमी को बदनाम करते हो?” अपनी आँखें चौड़ी करते हुए वह बोल उठता |
“हों.. भला आदमी! अभी कल ही तो मैंने अपनी आँखों से देखा कि हो परिवार से किताब चुराने के कारण तुम्हे उलटा लटकाकर पीटा जा रहा था!”
कुंग अपनी भौंहे चढ़ाते हुए कहता है, 'किताब ले लेना चोरी नहीं कही जा सकती,.........किताब लेना पढ़े-लिखे लोगों की बातें हैं, यह चोरी हो ही नहीं सकती!' उसके साथ ही मुहावरे के बोल "गरीबी में भी एक ईमानदार व्यक्ति अपनी इज्जत की रक्षा करता है," बोल उठता | इसके साथ ही कई तरह से मुंह बनाता जिसे देख ठहाकों की लड़ी फुट पड़ती |पूरा टेवर्न टाउन जीवंत हो उठता |
बातचीत में ही मैंने सुना था कि कुंग-आई-ची ने पढाई तो खूब की थी पर आधिकारिक तौर से कोई भी परीक्षा पास नहीं किया था |आजीविका का कोई साधन न होने के कारण वह गरीब होता गया और के ऐसा भी समय आया जब उसे भीख मांगनी पड़ी | उसकी लिखावट बहुत ही सुन्दर थी जिसके कारण उसे लिखने का ढेर सारा काम मिल जाता और वह अपना जीवन बड़े ही आराम से बिता सकता था पर शराब और आलस्य उसकी कुछ बहुत बड़ी कमजोरी थी जो उसे कुछ करने नहीं देती थी | कुछ दिनों के अंतराल पर हाथ में कुछ किताबें, पेंट,ब्रश लेकर कहीं चला जाता था | ऐसा अक्सर होता था | उसकी इस आदत के कारण कोई भी उसे काम नहीं देना चाहता था | आय का कोई अन्य साधन न होने के कारण छोटी-मोटी हेराफेरी कर लिया करता था, पर हमारे टेवर्न नगर में उसका व्यवहार काफ़ी बढ़िया था | कभी कभी जब उसके पास पैसे नहीं होते तब उधार पर पी लिया करता था | हमारे यहाँ रखे बोर्ड पर उधारी लेने वाले लोगों की सूची में उसका नाम सबसे ऊपर रहता था | पर कुछ दिनों के बाद उधार चुका देता था और उसका नाम उस बोर्ड से मिटा दिया जाता था |
थोड़ी सी शराब के घूँट मारने के साथ ही बावला हो उठता | इसी बीच पीछे से कोई उससे पूछ पड़ता,”कुंग-आई-ची तुम्हे पढ़ना आता भी है?”
कुंग उनकी तरफ हिकारत भरी नजर से देखता तभी फिर कोई प्रश्न दाग देता, “जब पढ़ना जानते हो तो अबतक कोई परीक्षा पास क्यों नहीं कर पाए?”
इस प्रश्न से वह असहज हो उठता | उसका चेहरा पीला पड़ जाता, होठ जैसे सील जाते थे | अजीब सा मुँह बना लेता, जिसे देख ठहाके फूट पड़ते |
इन ठहाकों में शामिल होकर मैं भी हंस लिया करता था | ऐसे में मालिक के डांटने का भी डर नहीं होता था | कभी-कभी तो हंसने के लिए मालिक खुद ही कुंग को छेड़ दिया करता था | उनसे बात करने का उसे कोई फायदा तो था नहीं लिहाजा हम बच्चों से बातें करता था | एक बार उसने मुझसे पूछा, “कभी स्कूल गए हो?”
जब मैंने हाँ में सर हिलाया तो उसने मुझसे कहा, “ चलो तुम्हारा टेस्ट लेते हैं | बताओ 'हुई -जियांग पी(खाता लिखने की कला) ' कैसे लिखोगे ?”
मुझे लगा कि एक भिखारी मेरा टेस्ट कैसे ले सकता है! और मैंने उसकी तरफ से ध्यान हटा कर अनसुना सा कर दिया | कुछ देर प्रतीक्षा के बाद उसने मुझसे कहा, “तुम लिख नहीं सकते न! पर तुम्हें लिखना सीखना पड़ेगा क्योंकि जब कल तुम्हारी अपनी दूकान होगी तो हिसाब-किताब कैसे रखोगे | चलो मैं तुम्हें लिखना सिखाऊंगा |
मेरे लिए तो दूकान की बात तो जैसे दिवास्वप्न था और फिर मेरा मालिक हुई-जियांग-पी' शैली पसंद भी नहीं करता था | ऐसे में भला कैसे कुछ सीख सकता हूँ | मैं चकित और हताश दोनों ही था | उससे मैंने कहा, “तुम्हे अपना शिक्षक भला कौन बनाना चाहेगा? तुम्हारे बारे में लोग न जाने क्या-क्या बातें करते हैं, और हुई सीखना भी तो काफी कठिन काम है |”
कुंग प्रसन्न था | टेबल पर अपनी अँगुलियों को नचाया और सर हिलाते हुए बोला, “एकदम सही बात है !” “तुम्हे पता है हुई लिखने के सिर्फ चार तरीके हैं|” मेरी सहनशक्ति ख़त्म हो रही थी | मैं चिढ़ा वहां से हट गया | कुंग-आई-ची ने अपनी अंगुली शराब में डुबाया और काउंटर की तरफ देखा जैसे किसी और को ढूंढ रहा हो | मेरी तरफ से कोई जवाब न मिलता देख उसने एक गहरी सांस भरा और उदास हो गया |
हंसी की आवाज सुनकर कभी-कभी पड़ोस के बच्चे आ जाते थे और कुंग के चारों और घेरा बनाकर खड़े हो जाते |वह भी हर बच्चे को सौंफ के पानी में भिगोया हुआ मटर देता | मटर खाने के बाद भी बच्चे अन्य खाद्य पदार्थ की तरफ निहारते रहते थे | उन्हें ऐसा करते देख प्लेट को हाथों से ढक लेता और उसपर आधा झुकते हुए कहता, “इसमें बहुत कम है और मैंने अभी खाया भी नहीं है | चलो भागो अब नहीं दूंगा|” ऐसा कहते हुए सीधे खड़ा हो जाता और फिर बच्चों को खदेड़ने लगता | बच्चे भी शोर मचाते हुई भाग खड़े होते |
कुंग-आई-ची के साथ बिताना सबको बहुत अच्छा लगता था |कभी कभी उसके बिना भी काम चलना पड़ता था |
एक दिन मध्य पतझड़ उत्सव के पहले टेवर्न का कर्ता-धर्ता हिसाब किताब मिला रहा था | इसके लिए दीवार पर लगे बोर्ड को उतारा जा रहा था | अचानक उसने कहा, “कुंग-आई-ची काफी दिनों से आया नहीं | उसपर अभीतक 19 तांबे के सिक्के उधार हैं !” उसकी इन बातों से लगा कि कुंग को देखे काफी समय बीत चुका है |
“वह आ भी कैसे सकता है ?”, पिछली बार की पिटाई में उसकी टांगें टूट गयीं थीं |
“आह ...”
“फिर चोरी कर रहा था | इस बार प्रांतिक विद्वान मिस्टर टिंग के घर चोरी की| अब उनके यहाँ से कौन बच सकता है |”
“फिर क्या हुआ"
होना क्या था? पहले तो उन लोगों ने उससे माफ़ीनामा लिखवाया उसके बाद पूरी रात उसकी जमकर पिटाई हुई | तबतक उसको पीटा गया जबतक उसके पैर टूट नहीं गए |”
"और फिर?”
“फिर क्या? उसकी टांगें टूट गयी |”
हाँ पर उसके बाद क्या हुआ?”
“उसके बाद?............... क्या पता मर गया हो!”
इसके बाद टेवर्न के कर्ता- धर्ता ने और कुछ नहीं पूछा | बस अपने काम में मशगूल हो गया |
मध्य पतझड़ उत्सव के बाद दिन-प्रतिदिन हवाओं में सर्दी बढ़ने लगी | सर्दी भी आ गयी | हालाँकि सारा दिन मैं सिगड़ी के पास ही रहता था, फिर भी सर्दी से बचने के लिए मुझे गरम कोट पहनना पड़ता था | एक दिन दोपहर के समय दूकान खाली थी, आँखें मूंदे मैं बैठा हुआ था तभी एक आवाज आयी :
“एक प्याला शराब गरम करो |”
आवाज बहुत धीमी थी पर जानी-पहचानी सी थी | मैंने देखने का प्रयास किया तो कोई दिखाई नहीं दिया |मैं खड़ा होकर दरवाजे की तरफ़ देखने लगा, सामने काउंटर के नीचे कुंग-आई-ची बैठा हुआ दिखा | उसका चेहरा बुझा हुआ, वह कृशकाय लग रहा था | फटे हुए कपड़े का जैकेट पहने हुए था, एक चटाई पर पालथी मारकर बैठा हुआ था, चटाई का एक सिरा एक रस्सी के साथ उसके कंधे पर बंधा हुआ था | मुझे देखकर उसने फिर से दोहराया :
“एक प्याला शराब गरम करो|”
मेरा मालिक काउंटर के नीचे की तरफ झांकते हुए बोला, “क्या ये कुंग-आई-ची है? 19 सिक्के अब भी तुम्हारे ऊपर उधार है|”
“हाँ ….........पता है| अगली बार उसे चुका दूंगा,” कुंग ने कहा | “आज नकद पैसे लाया हूँ, शराब अच्छी होनी चाहिए |”
पहले की तरह ही टेवर्न का कर्ता-धर्ता उससे पूछ पड़ा :
“कुंग-आई-ची तुमने फिर से चोरी की!”
पर इसका पुरजोर विरोध करने की बजाय उसने कहा, “ इस तरह के मजाक तुम पसंद करते हो |”
“मजाक? अगर तुमने चोरी नहीं किया तो उन्होंने तुम्हारी टांग क्यों तोड़ी ?”
“मैं गिर गया था,” बुझे स्वर में कुंग ने कहा | मैं गिर गया था जिससे मेरी टांग टूट गई |” उसकी आँखें टेवर्न के रखवाले से आर्त नाद कर रहीं थीं कि मामले को यहीं ख़त्म करे | अबतक ढेर सारे लोग इकट्ठा हो गए थे और वो हंस रहे थे | मैंने शराब गरम किया और उसे ले जाकर उसके पास रख दिया | उसने अपने फटे कोट की जेब से चार सिक्का निकालकर मेरे हाथ पर रख दिया | मैने देखा कि उसके हाथ कीचड़ से सने हुए थे | शायद यहाँ तक वह हाथों के बल घिसटता हुआ आया था | उसने अपना जाम ख़त्म किया और लोगों के कहकहे और हंसी के बीच धीरे धीरे हाथों के बल घिसटता हुआ चला गया |
इस घटना के बीते काफी समय बीत गया पर कुंग दुबारा दिखाई नहीं दिया | साल के अंत में बोर्ड निचे उतारते हुए रखवाले ने कहा, “कुंग-आई-ची पर अभी भी 19 ताँबे के सिक्के उधार हैं!” अगले साल ड्रेगन बोट फेस्टिवल के समय भी उसे यही बात कहा | पर जब मध्य बसंत उत्सव आया तब उसने कुछ भी नहीं कहा | इसी तरंग अगला नया साल भी आ गया पर उसे मैंने कभी नहीं देखा |
हो सकता है कि वह अब इस दुनिया में न हो इसलिए अब तक कभी भी नहीं दिखा |