आज के समय में युवा हो या वृद्ध , अधिकांश लोगो को इस बीमारी से पीड़ित देखा जाता है | आइये जानें कि आखिर क्या है "स्लिप डिस्क"|
हमारे शरीर के हड्डियों की श्रृंखला में रीढ़ की हड्डी एक मुख्य भूमिका निभाती है | गर्दन से लेकर पीठ के निचले हिस्से तक 31 हड्डियों की श्रृंखला है जो आपस में एक दूसरे से जुडी हुई है | इस श्रृंखला के बीच से एक खोखले पाइप नुमा छेद सा बनता है | इस छेद से होकर स्पाइनल नर्व की श्रृंखला मस्तिष्क से लेकर कमर के निचले हिस्से तक जाती है | आगे चलकर यह स्पाइनल नर्व शरीर के विभिन्न हिस्सों को कंट्रोल करती हैं | इनका मुख्य कार्य ब्रेन से भेजे जाने वाले न्यूरल सिग्नल को ब्रेन से शरीर के विभिन्न हिस्सों में ले जाना होता है | इसकी लम्बाई पुरुषों में 45 सेंटीमीटर एवं महिलाओं में 43 सेंटीमीटर है | रीढ़ के हड्डियों की सुराख के बीच में स्पाइनल नर्व होता है , स्पाइनल नर्व को घेरे हुए एक तरल पदार्थ "स्पाइनल- फ्लूड" होता है | स्पाइनल फ्लूड एवं स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) का मुख्य प्रयोजन इन स्पाइनल नर्व को सुरक्षा प्रदान करना, शरीर के ढाँचे को मजबूती से संभाले रखना है |
इन 31 हड्डियों की श्रृंखला में सबसे पहला सर्वाइकल है जो हमारे गर्दन के पास से होकर निकलती है | इसकी संख्या 08 है , इसके बाद नंबर आता हैं थोरेसिक का जो 12 की संख्या में है| हमारे छाती के पास के पीठ के हिस्से मे इसका स्थान होता है | इसके बाद 05 हड्डियों की श्रृंखला आती है जिसे लम्बर कहते हैं , इसकी संख्या कुल 05 है| ये हड्डियां कमर के हिस्से को सहायता करती हैं |इसके साथ ही सैक्रल की श्रृंखला में 05 हड्डियां हैं | अंतिम श्रृंखला है कोक्सिस (coccygeal) की जो एक संयुक्त हड्डी है | इन हड्डियों के बीच में हर एक के बीच एक सॉफ्ट पैड होता है |(दिए गए चित्र में हड्डियों के बीच नीले रंग के अवयव यही पैड हैं) यह पैड दो हड्डियों के बीच कुशन सा कार्य करती हैं एवं इनको आपस में घिसने से बचाती हैं| कभी कभी किसी प्रकार के आघात अथवा अन्य कारणों से हड्डियों के बीच का यह पैड अपने स्थान से आगे पीछे खिसक जाता है | इस विस्थापन के कारण हड्डियों के बीच से गुजर रही स्पाइनल नर्व पर दबाव पड़ता है | इस दबाव के कारण दबाव के स्थान से लेकर आगे तक चुभता हुआ दर्द होने लगता है |अधिकांशतः यह समस्या या तो गर्दन की हड्डियों में (सर्विकल) अथवा कमर की हड्डियों (लम्बर अथवा सैक्रल) में देखा गया है | यदि सर्विकल में है तो गर्दन अथवा कंधे एवं बाजुओं में तकलीफ देखी जाती है | यदि कमर के हिस्से में है तो कमर अथवा पैरों में यह तकलीफ देखी जाती है |
समस्या की पहचान होने वाले चुभन के साथ रहने वाले दर्द से हो जाती है | पुष्टि स्वरूप एक्स-रे और एम आर आई की जांच होती है | सबसे सटीक जांच एम आर आई की होती है जिसमें हड्डी के अंतिम सतह, नर्व की स्थिति का सही आंकलन किया जा सकता है | प्रारम्भ में तो समस्या सिर्फ दर्द तक ही सीमित रहती है पर धीरे-धीरे समस्या बढ़ती जाती है और इसके दुष्प्रभाव के रूप में अन्य तकलीफें आती जाती है | इस तकलीफों में सायटिका , फुट ड्राप (इसमें पैर पर व्यक्ति का कंट्रोल लगभग ख़त्म सा हो जाता है | इसे आंशिक पक्षाघात अथवा Paralysis. भी कह सकते हैं |) , प्रभावित नर्व के कारण सुन्नपन अथवा आगे चलकर पक्षाघात का ख़तरा बढ़ जाता है |स्लिप डिस्क के कारण नर्व पर लगातार दबाव पड़ता रहता है | यदि यह दबाव अपेक्षाकृत बढ़ जाए तो नर्व के कट जाने का ख़तरा बढ़ जाता है | एक बार नर्व कट गयी तो सम्बद्ध समस्या स्थायी हो जाती है, नर्व शरीर के जिस हिस्से को कंट्रोल करती है उसमें विकार उत्पन्न हो जाता है एवं इसका इलाज लगभग असंभव है |
प्रारंभिक तकलीफ में योग, फिजियोथेरपी एवं दवा के प्रयोग से इसपर काबू किया जा सकता है परन्तु यदि तकलीफ बढ़ जाए तो डॉक्टर इसमें ऑपेरशन की ही सलाह देते हैं | ऑपेरशन के दौरान सर्जन इस खिसके हुए डिस्क को काट कर निकाल देते हैं | डिस्क के निकल जाने से नर्व पर पड़ने वाला दबाव ख़त्म हो जाता है तथा मरीज को आराम हो जाता है |
ऑपेरशन ऐसी चीज है जिसका नाम सुनकर बड़े से बड़े हिल जाते हैं , खासकर जब कमर के ऑपेरशन की बात की जाए | है भी यह जोखिम की बात | तीन तरह की विधियां इस ऑपेरशन की प्रचलित है | पहली विधि है पारम्परिक ऑपरेशन का जिसमें सम्बद्ध स्थान कमर अथवा गर्दन के पीछे के हिस्से में चीरा लगाया जाता है एवं डिस्क को काट कर निकाला जाता है | डिस्क को काट कर निकालने की प्रक्रिया को डिसक्टोमी कही जाती है | इस प्रक्रिया में मरीज को स्पाइनल एनेस्थीसिया दिया जाता है | यानी कि मरीज के स्पाइनल नर्व में सुन्न करने की सुई लगाई जाती है और ऑपेरशन किया जाता है | इस ऑपेरशन से एक और उन्नत ऑपेरशन की प्रक्रिया चली जिसे माइक्रो सर्जरी का नाम दिया गया | इस ऑपेरशन में भी परम्परागत ऑपेरशन जैसा ही सब कुछ होता है | इन दोनों ऑपेरशन में प्रभावित अंग के आसपास बेहोशी की दवा का असर होने के कारण किसी सूक्ष्म नर्व के प्रभावित होने का ख़तरा रहता है | तीसरे प्रकार का एक ऑपेरशन है Transforaminal Endoscopic Discectomy(Stitchless) है | इस विधि में की होल जैसे एक चीरा के द्वारा सर्जन इंडोस्कोप द्वारा सर्जन प्रभावित डिस्क अथवा उसके हिस्से को निकाल देते हैं | इस प्रक्रिया के दौरान मरीज पूर्णतया होश में रहता है तथा डॉक्टर उससे बातचीत करता रहता है | यदि ऑपेरशन के दौरान किसी सूक्ष्म नर्व में ज़रा सी भी तकलीफ हो जाती है तो मरीज को इसका एहसास हो जाता है तथा सर्जन इसका ध्यान रखता है | इस ऑपेरशन की खास बात यह रहती है कि ऑपेरशन के एक घंटे के बाद मरीज अपने घर जा सकता है | तथा यह ऑपेरशन लोकल एनेस्थेसिया देकर किया जाता है |इन तीनों ऑपेरशन का अपने अपने स्थान पर अलग अलग महत्व है|
ऐसी ही कुछ तकलीफ मैंने देखा है जिसमें दुर्भाग्यवश मरीज को पारम्परिक ऑपेरशन एवं Transforaminal Endoscopic Discectomy(Stitchless) दोनों प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ा | स्लिप डिस्क(PIVD) के कारण पहले मरीज को फुट ड्राप हुआ | सभी न्यूरो सर्जन ने ऑपेरशन का ही सलाह दिया | अनन्तः मरीज का ऑपेरशन करवाया गया | यह ऑपेरशन पारम्परिक ऑपेरशन जैसा ही था | ऑपेरशन के बाद मरीज हफ्ता भर तो ठीक रहा पर हफ्ते के बाद उसकी तकलीफ और बढ़ गयी | अब तो उसका बैठना उठना भी मुश्किल हो गया | पता लगा कि ऑपेरशन के स्थान पर आतंरिक इन्फेक्शन(Post operative discitis) के कारण मवाद जैम गया है |जबतक यह मवाद ठीक नहीं हो जाता शारीरिक तकलीफ में किसी प्रकार के परिवर्तन की आशा नहीं की जा सकती | लगभग सात आठ माह तक तकलीफ चलती रही परन्तु सुई एवं दवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था |रीढ़ की हड्डी के इस भाग तक दवा का असर लगभग 0.2% ही हो पाता है क्योंकि इस स्थान पर पहुँचते पहुँचते उसका अधिकांश भाग या तो शरीर में अवशोषित हो जाती है या फिर शरीर उसे बाहर निकल देता है | एक मात्र यदि किसी प्रकार से उस स्थान पर सुई द्वार पहुँच कर दवा डाली जाए तो कुछ होने की संभावना रहती है | परन्तु उस स्थान के स्पाइनल नर्व की नाजुकता को देखते हुए कोई भी चिकित्सक ऐसी प्रक्रिया करने की सलाह नहीं देता है |कई डॉकटरों की सलाह ली गयी | सबने एक सुर में कहा कि पुनः एक बार ऑपेरशन करना होगा उसके बाद यदि मवाद (puss) रुक गयी तब तो ठीक है वरना बाद से बदतर होने की संभावना होगी | ठीक होने की संभावना का आश्वाशन किसी ने नहीं दिया | सौभाग्यवश एक सहिद्रय न्यूरो सर्जन डॉ अजय शर्मा मिले जिन्होंने एक डॉक्टर को Transforaminal Endoscopic Discectomy(Stitchless) करते हुए देखा था | उन्होंने बताया कि करने को तो मै भी ऑपेरशन करता हूँ पर इस बार भी वही पारम्परिक विधि होगी | इसमें कहा नहीं जा सकता कि इन्फेक्शन कितना जाएगा अथवा निदान कितना हो सकता है | यदि हमलोग चाहे तो इस Transforaminal Endoscopic Discectomy(Stitchless) से ऑपेरशन करवा सकते हैं | इसमें Post operative infection होने की संभावना अपेक्षाकृत नगण्य है | इसके लिए उन्होंने मुझे उस विशेषज्ञ का फोन नंबर दिया जो इस प्रकार का ऑपेरशन करते हैं |उनके सलाह पर हम इस प्रक्रिया के लिए तैयार हो गए | लगभग दो घंटे ऑपेरशन चला | ऑपेरशन के दौरान ऑपेरशन थियेटर में लगे बड़े आकार के TV. के परदे पर रीढ़ की हड्डी के प्रभावित हिस्से में चल रही समस्त हलचल एवं प्रक्रिया को चिकित्सा दल एवं मरीज देखता रहा | इस दौरान डॉक्टर मरीज को उसके इन्फेक्शन और उसके हड्डी की दशा एवं आकार को स्क्रीन पर ही बताते रहे | ऑपेरशन पूर्णतः सफल रहा | ऑपेरशन के कुछ दिन के बाद दवा एवं फिज़िओथेरपी से मरीज पूर्णतः स्वस्थ है एवं ठीक से चल फिर सकता है |
ऑपेरशन की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कही ना कहीं कुछ और असुविधाएं होने की संभावना रहती ही है |पर यदि कोई उपाय ना हो और ऑपेरशन करवाना ही पड़े तो मेरी सलाह है कि इस नयी प्रक्रिया के बारे में अपने डॉक्टर एवं इस प्रक्रिया के विशेषज्ञ से एक बार अवश्य राय ले लिया जाए | अनन्तः प्रकृत ने मनुष्य जीवन को सुचारु रूप से चलायमान रखने के लिए एक मूलमंत्र दिया है , वह है अपनी दिनचर्या एवं नियम का पालन करना , इससे बीमारी पास आ ही नहीं सकती है |