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सैन्य जीवन में अध्यात्म

4 जनवरी 2016

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भगवान की अनमोल एवं अद्भुत रचनाओं में मनुष्य जीवन की रचना अपने आप में अद्वितीय है । संसार के समस्त प्राणियों से इतर मनुष्य को भगवान ने बौद्धिक क्षमता एवं भाषा की शक्ति दी। भाषा एवं बौद्धिक क्षमता के बल पर मनुष्य पृथ्वी के समस्त प्राणियों से श्रेष्ठ माना जाता है । इसकी यह बौद्धिक क्षमता एक तरफ इसके लिए सुख-शांति एवं समृद्धि लेकर आया तो दूसरी तरफ कुत्सिक विचारों का ताना-बाना भी मन को लपेटने में प्रवृत्त हुआ और फिर प्रकृति की इस विशेष संरचना ने अपने कुत्सित  विचारों के भँवर में फँसकर विकास के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए विनाश का भी मार्ग चुनना प्रारम्भ कर लिया ।  

       चूंकि जीवन के प्रारम्भिक काल में मनुष्य  एवं जानवर में जीने के संसाधनों के संदर्भ में कोई विशेष भिन्नता न थी। अतः  मनुष्य और पशु दोनों जीने एवं जीवन निर्वाह के लिए प्रकृति, समुदाय एवं अन्य प्राणिमात्र के बीच संघर्ष परमावश्यक था और हिंसक भी हो जाता था। मनुष्य ने अपने  सभ्य होने के क्रम में सबसे पहले हिंसा को त्याज्य मान उससे दूरी बनाई ।  मानव जीवन के विकास के साथ-साथ संघर्ष सदा चला और संघर्षशील होना तो अब भी सार्थक जीवन का पर्याय माना जाता है परंतु यह आवश्यक है कि यह संघर्ष अहिंसक ,सकारात्मक एवं सही दिशा में हो । निर्माण के लिए हो नाश के लिए नहीं। 

        मानव जीवन को सभ्य और शिष्ट शैली से आगे बढ़ाने के लिए सामाजिक ढांचा बना, समाज एवं देश की परिपाटी चली। इस तरह क्रमशः  सभ्यता की ओर मानव उन्मुख होता गया । अब यह अन्य  प्राणियों से सर्वथा भिन्न हो गया , जानवरों को अपना गुलाम बनाकर घरेलू या अन्य प्रकार के कामों में उनका प्रयोग लेने लगा । चूंकि समय परिवर्तनशील है अतः अब धनलोलुपता और सत्ता की चाह अहं तुष्टि का एक माध्यम बनता चला गया । इसने समाज को और भी कई स्तरों में विभाजित किया जिसमें मुख्य रूप से बलशाली वर्ग प्रभावशाली होते गए  और शासक और शासित दो प्रकार के वर्ग सामने आए । शासन  वर्ग ने सत्ता को अक्षुण रखने के लिए सैन्य बल का गठन प्रारम्भ किया । यह सैन्य बल बलशाली तो था पर प्रभावशाली न होने के कारण शासन  वर्ग द्वारा पोषित रहा । समय के साथ विभिन्न कुनबे,कबीले,राज्य इत्यादि का निर्माण हुआ । कोई अपनी रक्षा तो कोई साम्राज्य वृद्धि के लिए सैन्य बल गठित करने लगा । यह क्रिया-प्रक्रिया  सतत जारी है । इसमें कई बार आमूल-चूल परिवर्तन भी आया पर जब भी उसे नए सिरे से खड़ा किया गया तो नए का भी मूल ढांचा और नियंत्रण लगभग पूर्व जैसा ही तैयार हुआ और उसी तरह उसका विकास भी हुआ।

       निरंतर संघर्ष और त्रादसियों ने मनुष्य के मन को विदीर्ण भी किया । चूंकि हर मनुष्य का विचार एवं संस्कार एक जैसा नहीं होता है,अतः आवश्यक नहीं कि हर व्यक्ति क्रूर और लड़ाकू  ही हो । लड़ाई-झगड़े की प्रवृति से दूर मनुष्य के मन में विरक्ति का भाव पैदा हुआ और इन त्रासदियों  और विरक्तियों ने मनुष्य को अमन-शांति की राह ढूँढने के लिए मजबूर किया । समय के साथ शांति की खोज ने विभिन्न मार्ग, विभिन्न पंथ एवं विभिन्न धर्मो को जन्म दिया । देश काल की  आवश्यकताओं के  अनुसार संसार के भिन्न-भिन्न भूभागों में नाना  धर्मों  ने जीवन को अपनी तरह से संस्कारों में ढाला । लेकिन अच्छे और बुरे के बीच का संघर्ष कभी समाप्त नहो सका । अंधेरे और उजाले के बीच की लड़ाई को ये धर्म भी मिटा न सके। इसी बीच आधुनिकता और भौतिकवाद नाम के नए राक्षस इस लड़ाई में  शामिल हो गए। 

     अत्याधुनिक जीवन की अधुनातन जरूरतों और समय के परिवर्तन के साथ ही इस संघर्ष की परिभाषा एवं प्रारूप भी बदलने लगा । कहीं कुछ प्राप्ति के लिए तो कहीं अहं की तुष्टि के लिए मानव जाति अपने बार्बरिक  जीवन से भी अधिक हिंसक हो उठी । सभी धर्म अब इस नई समस्या से जूझ रहे हैं। धर्म के नाम पर हो रहे कत्लेआम भी धर्म को ही कटघरे में खड़े कर दे रहे हैं। इस तरह धर्म खुद संकट में है। लेकिन सच्चा धर्म तो मानव जीवन का रक्षक है, भक्षक नहीं। उसकी बेहतरी के लिए है बदतरी के लिए नहीं। बेशक भिन्न-भिन्न धर्मों की पूजा पद्धति भिन्न हो सकती है तथा उसकी व्यावहारिक जीवनशैली की  प्रक्रिया भी भिन्न हो सकती है परंतु सब धर्मों का मूल बस शांति की खोज एवं उसकी प्राप्ति ही है । अध्यात्म भी इस प्रक्रिया की एक कड़ी है । अध्यात्म मनुष्य को कर्मशील, निर्भय एवं स्वावलंबन की तरफ ले जाता है ।

      सैन्य जीवन यूं तो संघर्षशील जीवन का एक ज्वलंत उदाहरण है, जहां मनुष्य अपने आत्मबल, बौद्धिक क्षमता, कौशल एवं निर्भीकता का परिचय देते हुए निरंतर देश की सेवा में संलग्न रहता है । वह प्रायः सामाजिक  उपेक्षा का भी शिकार रहता है परंतु अपनी धुन में मस्त ना तो किसी से शिकायत करता है ना ही कभी आक्रोश व्यक्त करता है । अगर करे भी तो किससे करे? उसके मन में तो देश सेवा एवं उसकी रक्षा का जुनून जो रहता है । यदि सीमा पर हो तो हर वक्त गोली का शिकार होने का भय, यदि सरहद से दूर हो तो शांति बहाली के दौरान घायल होने की आशंकाएँ उसकी देह के इर्द-गिर्द ही रहती है । खतरों के बीच रहते हुए भी उसके चेहरे पर मुस्कान, सीना तना हुआ रहता है। अपना और अपने देश का  सिर ऊंचा किए अपने नागरिकों की सुरक्षा और उनके सम्मान में  गला देने वाले हिमशिखरों की छाती पर भी बेखौफ़ चलता रहता है ।

      अध्यात्म मनुष्य को नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर ले जाता है । आध्यात्म से साक्षात्कार होने के बाद मनुष्य का मुख मण्डल हर परिस्थिति  में तेज और आत्मविश्वाश से भरा रहता है ।  यह सब गुण एक सैनिक में स्वाभाविक रूप से आ ही जाता  है । वह सुख-दुख में सम भाव से सदा  धीर-वीर, गंभीर बना रहता है । एक आध्यात्मिक पुरुष में भी तो ऐसे ही गुण विद्यमान रहते हैं । उसकी त्याग की भावना इसी से परिलक्षित हो जाती है कि अपने और अपनों से दूर जंगल-नदी और पहाड़ों के बीच पड़ा रहता है । ना ही वह अपनों की सुध ले पाता है और  ना ही उसके अपने उसकी सुध ले पाते हैंफिर भी कभी विचलित नहीं होता । ऐसे एकांत और वीराने के माहौल में उसे उसका आध्यात्म ही तो है जो जीवन से और सेवा से उसे जोड़े रहता है । इससे अधिक आध्यात्मिक भला कौन हो सकता है । उसके जीवन में कई-कई बार  ऐसी घटनाएँ होती हैं  जब युद्ध का आगाज़ होते ही उसे आदेश दिया जाता है  कि अपने परिवार के समस्त सदस्यों को सुरक्षित स्थान पर छोड़ कर वापस आ जाए । चेहरे पर शिकन का लेशमात्र भी बोध न कर आदेश का पालन करते हुए बच्चों को घर छोड़ युद्धभूमि की तरफ चल देता है । उस समय बस एक ही जुनून रहता है आतताइयों  से देश की सुरक्षा । उसे यह भी पता होता है कि हो सकता है वह वापस न आ सके परंतु फिर भी विचलित हुए बिना रणभूमि में अपना कौशल दिखाने अवश्य जाता है ।एक सैनिक को छोडकर और कौन हो सकता है जो मौत करीब देख कर भी उसे गले लगाने या उससे दो हाथ करने के लिए बढ़ चले। अभावों  के बीच , दुश्वारियों को झेलते हुए जबतक लक्ष्य हासिल ना हो जाए , डिगता नहीं है , यह उसके संयम का एक प्रारूप है जो शायद आम इन्सानों में न मिले । यही समस्त गुण एक आध्यात्मिक पुरुष में होते हैं ।

      अपने रब पे भरोसा, हर धर्म के प्रति समादर और स्वकर्म में आस्था  उसे भीड़ से अलग खड़ा करता है । अधिकांशतः सेना के हर ठौर पर एक ही कमरे में मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा-गिरजा स्थित रहता है । आवश्यकतानुसार सर्वधर्म सभा आयोजित कर ली जाती है अथवा अपने धर्म और इष्ट के अनुसार लोग पूजा या इबादत के लिए स्वतंत्र होते हैं । ना किसी का दूसरे से मतभेद ना ही  मनमुटाव । वो अलग बात है कि यदि कोई बड़ा स्थान है तो इबादत के ये स्थान अलग-अलग जगहों पर हो सकते हैं पर सब एक दूसरे से जुड़े ही रहते हैं । न छुआ-छूत न ही तो जात-पांत का भेदभाव । सब एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, एक साथ ही हर काम करते हैं । सैनिक के लिए तो उसका सैन्य धर्म सर्वोपरि, समाज और देश की रक्षा उसका लक्ष्य और हर परिस्थिति में सम बना रहना ही एकमात्र धेय होता है ।   

       एक सैनिक जीवन हर तरह से आध्यात्मिक संपूर्णता से भरपूर होता है। जहाँ हम शरीर और जगत की नश्वरता को शब्दों में जीते हैं ,वे यथार्थ में जीते हैं। उनके  जीवन में तो वास्तव में जीवन और मृत्यु एक गोली के फासले पर साथ-साथ चलते हैं। इस दृष्टि से उंसे याधिक विदेह भला और कौन हो सकता है। इन सब स्थितियों-परिस्थितियों के मद्देनज़र अध्यात्म की राह पर चलने वालों की प्रेरणा के लिए सैनिक जीवन से अधिक प्रेरक शायद ही कोई और जीवन इस जगत में मिल सके।  

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इंदुसंचेतना मार्च 2017

12 मार्च 2017
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चीन से प्रकाशित हिन्दी पत्रिका इंदुसंचेतना का नवीनतम अंक https://drive.google.com/file/d/0B8uhA2a0ZiVHNnl1SGdsVGZaenc/view?usp=sharing indusanchetana-final-march.pdf - Google Drive

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आलेख हेतु निवेदन

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चीन के एक विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाली एकमात्र हिन्दी पत्रिका इन्दु संचेतना के बाल कथा विशेषांक के लिए रचनाएँ आमंत्रित हैं।कृपया अपनी रचना दिनांक 20मई2017 तक indusanchetana@gmail.com पर भेज कर हिन्दी के वैश्विक प्रचार में सहयोग करें ।

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सरकारी दलित :व्यंग्य

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माननीय प्रधानमंत्री जी

17 जनवरी 2018
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माननीय प्रधानमन्त्री महोदय, मैं आपके शासनकाल में देश को विकास की ओर अग्रसर करने वाली योजनाओं के लिए ह्रदय से आभारी हूँ | एक भूतपूर्व सैनिक होने के नाते कुछ ऐसी बातें हैं जिनपर कोई साकारात्मक सहयोग हो इस आशा से कुछ बिंदु आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ :-1. शिक्षा के क्षेत्र में विसंगतियों :- यूँ त

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17 दिसम्बर 2019
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मंटूबड़ा खुश था । प्राइमरी में टीचर लगे उसेअभी साल भर भी नहीं हुआ था कि सरकार द्वारा प्रायोजित डी-एड पाठ्यक्रम के लिए उसकानामांकन हो गया । प्राइमरी स्तर के बालकों कोपढ़ाने के लिए डी-एडकी पढाई काफी महत्वपूर्ण है । समय परसमस्त शिक्षक सेंटर पहुँच गए । पाठ्यक्रमप

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मैं अक्सर हार जाता हूँ-भाग-1

28 जुलाई 2020
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परसों किसी सज्जन ने मुझे व्हाट्सएप पर संदेश दियाWhy Job ??? When U can own ur Business..........Let's learn 2 *EARN* कुछ नया व्यापार,सपनों की हर बात हासिल करने की शायद राह दिखाना चाह रहे थे। मैं भी उत्साहित था कि कुछ नया करने का मौका है।और फिर उन्होंने मुझे फोन किया।औपचारिक बातचीत के बाद उन्होंने म

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शब्दों का जादू

7 सितम्बर 2021
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<p>भाषाओँ के बारे में एक बात प्रचलित है कि जिन भाषाओँ में समय सापेक्ष परिवर्तन नहीं हुआ वे भाषाएं या

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ऑफिस डेस्क से समाधि तक

21 अक्टूबर 2022
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अपने डेस्क से बगल वाले डेस्क पर झांक कर देखा। कुर्सी पर बैठे बाबू बीच बीच में लंबी सांसे ले रहे थे,कभी सिर खुजाते कभी सिर रगड़ते और फिर लंबी सांसे लेने लगते।ऐसा लग रहा था मानो दर्द से उनका सिर फट रहा

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