*व्यंग्य: सरकारी दलित*
बारिश प्रचंड वेग पर थी।सरकार के तरफ से यह मुनादी फिरा दी गई कि नदी के किनारे बसे लोग कहीं सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं, बाढ़ आने की आशंका है,जान माल का नुकसान हो सकता है।कुछ लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए, जिनका कोई न था वे बेचारे इधर उधर होकर रह गए।सचमुच बाढ़ आ गई।काफी तबाही हुई।स्थिति का आंकलन करने के लिये नेताजी ने डीएम को आदेश दिया।समिति बिठाई गई,जिन लोगों का नुकसान हुआ उनकी सूची बनाई गई। सूची जब पूरी बन गई और डीएम के पास पंहुची तो इसे देख डीएम काफी हैरान हुए।बात ही कुछ ऐसी थी।इस सूची में दस ऐसे लोग थे जो सरकारी नौकरी करते थे।डीएम का माथा ठनका।सच्चाई जानने के लिये घटनास्थल पर स्वयं गए,राहत शिविर जैसा माहौल था।कुछ लोग खुले आसमान के नीचे तो कुछ टेंटों में जी रहे थे।सूची में दर्ज सरकारी कर्मचारियों को उन्होंने तलब किया।सब बुलाए गए।डीएम ने घुड़की दी,तुम लोग सरकारी मुलाजिम हो और इस प्रकार से नदी किनारा दखल कर रह रहे हो,तिस पर अब राहत के लिये दावा कर रहे हो! शर्म नहीं आती??
राजू,इनमें से एक ने साहस कर डीएम को जवाब दिया, "साहब हम सरकारी दलित हैं,तृतीय एवं चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी हैं।अब इतने बड़े शहर में हम सरकारी दलितों को कौन भला मकान देगा रहने के लिए।दूर देश से नौकरी करने आए हैं,कार्यालय सिर्फ नौकरी करवाती है, मकान देती नहीं,फिर जाएं भी तो कहां??
डीएम ने पूछा,'सरकारी मुलाजिम हो,मकान नहीं तो मकान के लिये भत्ता तो मिलता है। फिर कहाँ दिक्कत है।
साहब,भत्ता तो मिलता है पर वेतन के एक निश्चित प्रतिशत में।इस शहर में मासिक नौ सौ से ग्यारह सौ के आसपास मकान किराया मिलता है।अब इतने में तो यहां कोई अपने घर के बरामदे में बजी खड़ा न होने दे,किराया कहाँ से देगा।स्लम में भी 3-4हजार रुपया मांगते हैं।अब ऐसे में कैसे गुजारा हो?
'पर सरकारी विभाग में तो लीज एग्रीमेंट पर मुलाजिमों को मकान लेने का भी प्रावधान है।'-डीएम ने कहा।
जी हां साहब,लीज अग्रीमेंट में मकान किराये पर लेने का प्रावधान है,पर वह सिर्फ अधीक्षक या उनके ऊपर के अधिकारी के लिये।अब चूंकि सरकार या विभाग को यह लगता होगा कि इस वर्ग के अधिकारी शायद कम वेतन पाते हों, इसलिए उन्हीं को ही लीज अग्रीमेंट में मकान किराया पर लेने का प्रावधान रखा गया होगा।हम जैसे को नहीं।'- राजू ने कहा।
अब आप जी बताइये हम जाएं तो जाएं कहाँ।
पर तुम खुद को दलित कह रहे हो?आखिर जात क्या है तुम्हारी?खुद को दलित कहने का आधार तो बताओ? डीएम ने पूछा।
साहब, स्थापित दलित तो वो हैं जिन्हें भारतीय संविधान ने मान्यता दी है।उन्हें कई अधिनियमों के अनुसार ढेरों सुविधाएं मिलती है।पर हम तृतीय एवं चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी ऐसे दलित हैं जिसमे मान्यता प्राप्त दलित,सवर्ण,अगड़े,पिछड़े सभी जाति के लोग हैं जिन्हें सरकार की नीतियों के कारण दलितों जैसी स्थिति में आना पड़ जाता है,विशेषकर मकान एवं इसके लिये भत्ता निर्धारण के कारण।इस निर्धारण के कारण हम या तो ऐसे स्थानों में रहने को मजबूर हैं जो जानवरों के रहने लायक भी न हो या फिर एकदम से ऐसे इलाके में बसोबास को मजबूर होते हैं जहाँ का विकास अगली कुछ शताब्दियों न होने के आसार न हों। ऐसे माहौल में रहकर हमारे अतिरिक्त हमारे बाल-बच्चों का भी मानसिक और बौद्धिक विकास रुक जाता है।यह नीति हमें सरकारी दलित बनाती है,बना रही है।