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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
*माता शक्ति क्रोध से भयभीत होकर मेधा ऋषि ने शरीर का त्याग करके धरती में समा गये एवं जौ तथा धान (चावल) के रूप में प्रकट हुए । इसलिए जौ एवं चावल को जीव माना गया है । जिस दिन यह घटना घटी उस दिन एकादशी थी ! जो लोग व्रत रहते हैं उनके लिए तो अन्न भी वर्जित है , परंतु जो व्रत नहीं रहते हैं उनको भी एकादशी के दिन जौ एवं चावल नहीं खाना चाहिए ! क्योंकि ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना मेधा ऋषि के मांस एवं मज्जा के बराबर है ।*
*सभी प्रकार के अन्न की तुलना में चावल में जल तत्व अधिक रहता है।*
*उपवास में मन का निग्रह होना अति आवश्यक है।*
*मन का देवता है चंद्रमा।*
*एकादशी पर चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक होने से हमारे शरीर पर ज्यादा प्रभाव डालता है।*
*अधिक जलमय अनाज (चावल) का भोजन करने से चंद्रमा की आकर्षण शक्ति से हमारा मन अधिक चंचल हो सकता है।*
*मन अधिक चंचल होने से उपवास के दिन भगवान के भजन में वह (मन) सुचारु रूप से नहीं लग सकता।*
*अत: चावल के भोजन का एकादशी को हमारे ऋषियों ने निषेध किया गया है।*
*अन्य विद्वानों के मत भी आमंत्रित है।*
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*(लेकिन जगन्नाथपुरी में यह अपवाद है। वहाँ चावल का भोग लगता है)।*
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*यथा सम्भव प्रयास*
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