*सनातन धर्म ने मानव मात्र से मानवता का पाठ पढ़ाया है | जिसके अन्तर्गत प्रत्येक मनुष्य को यह भी प्रयास करना चाहिए हमारे कर्मों से , हमारे आचरण से कोई भी असंतुष्ट ना रहे | इस संसार में सब को लेकर चलने वाला , सबको संतुष्ट रखने वाला मनुष्य सदैव सुखी रहता है | मनुष्य को यह प्रयास करना चाहिए कि हमारे घर के एवं समाज के लोग हमारे कर्मों से संतुष्ट रहें | प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य बनता है कि वह इस संसार के लोगों के साथ ही अपने पितरों को भी संतुष्ट रखें क्योंकि यदि पितर असंतुष्ट हो जाते हैं तो घर में पितृदोष स्पष्ट दिखाई पड़ने लगता है | पितृदोष हो जाने के बाद मनुष्य को अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है | मानसिक अवसाद , परिश्रम के अनुरूप फल ना मिलना , संतानोत्पत्ति में बाधा तथा घर में नकारात्मकता दिखाई पड़ना पितृदोष के लक्षण हैं | इसीलिए सनातन धर्म में पितरों का महत्व बताया गया है | संसार को संतुष्ट रखने का प्रयास करने वाले लोग अपने कर्मों के द्वारा जब अपने पितरों को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं तो उनको जीवन में इन सब परेशानियों का सामना करना पड़ता है | पितरों को संतुष्ट रखने के लिए सबसे पहले मनुष्य को अपने आचरण पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि पितरों के विपरीत आचरण होने पर भी पितर असंतुष्ट हो जाते हैं और घर में पितृदोष दिखाई पड़ने लगता है | जिसके कारण मनुष्य सब कुछ करने के बाद भी उसका यथोचित फल नहीं प्राप्त कर पाता| प्रायः लोग संसार को तो संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं परंतु अपने उन पूर्वजों को संतुष्ट नहीं कर पाते जिनकी संपत्तियों का भोग कर रहे हैं | प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य बनता है कि अपने पितरों के लिए समय-समय पर श्राद्ध आदि करता रहे साथ ही अपने आचरण को भी सकारात्मक रखें अन्यथा पितर सब कुछ करने के बाद भी क्रोधित ही रहते हैं और परिवार को आशीर्वाद नहीं प्रदान करते हैं जिसके कारण मनुष्य दुखी रहता है |*
*आज प्राय: घर-घर में पितृदोष दिखाई पड़ता है लोग अपनी जन्म कुंडली लेकर के ज्योतिषियों एवं विद्वानों के पास दौड़ भाग करते हुए देखे जा सकते हैं | पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए अनेक उपाय भी विद्वानों के द्वारा कराए जाते हैं परंतु उनका यथोचित फल नहीं मिल पा रहा है | जब सब कुछ करने के बाद भी मनुष्य को उसका उचित फल नहीं मिलता और पितृदोष बना ही रहता है तो मनुष्य को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता हो जाती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" जहां तक समझ पाया उसके अनुसार मनुष्य को पितरों के निमित्त पिंडदान -:श्राद्ध - तर्पण करने के साथ ही अपने आचरण में भी सुधार करना चाहिए | श्राद्ध करने में सबसे महत्वपूर्ण है मनुष्य की पवित्रता , पितरों के प्रति श्रद्धा एवं निर्मल मन | जो कि आज नहीं दिखाई पड़ रहा है | पितृकार्य को लोग कर तो रहे परंतु फिर भी उनके परिवार में अनेकों प्रकार की व्याधियों स्पष्ट दिखाई पड़ रही हैं | इसका कारण यही है कि आज अधिकतर लोगों ने सत्यता का त्याग कर दिया है | काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार , झूठ , कपट , छल से आज प्रत्येक मनुष्य घिरा हुआ है यही कारण है कि पितरों के लिए अनेकानेक विधान करने के बाद भी उसको यथोचित फल नहीं प्राप्त हो पा रहा है | एक बात सदैव ध्यान रखा जाय कि परिवार के लोग , समाज के लोग यहां तक कि देवता भी असंतुष्ट होने पर संतुष्ट हो सकते हैं परंतु यदि पितर असंतुष्ट हो गये तो उनको संतुष्ट करना बड़ा कठिन होता है | पितरों को संतुष्ट करने का सबसे सरल साधन है कि मनुष्य अपना आचरण सकारात्मक रखते हुए अपने कुल के अनुसार कृत्य करें और समय-समय पर श्रद्धा के साथ श्राद्ध आदि करता रहे | पिंडदान कर देने मात्र से पितर तब तक संतुष्ट नहीं हो सकते जब तक उनके प्रति पवित्र मन में श्रद्धा का भाव नहीं होगा | आज मनुष्य परेशानियों में घिरने पर पितरों को याद करता है यदि समय-समय पर अपने पितरों को उनका भाग मिलता रहे तो पितर कभी भी असंतुष्ट हो ही नहीं सकते |*
*संसार में यदि अनेक प्रकार के रोग है तो उनकी औषधियां भी उपलब्ध है जिनके लिए मनुष्य चिकित्सक के पास जाता है परंतु पितृदोष नामक रोग की औषधि स्वयं मनुष्य के पास है परंतु वह उसका उपयोग नहीं कर पा रहा है |*