*सनातन धर्म में मानव कल्याण के लिए अनेकों नियम निर्देश दिए गए हैं | मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा देवताओं एवं पितरों को भी संतुष्ट करने में सक्षम हो सके इसके लिए अनेकों विधान सनातन धर्म में देखने को मिलते हैं | हमारे पितर जिनकी संपत्ति पर हम अपना जीवन यापन कर रहे हैं वह हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ एवं परम पूज्य होते हैं | उनको तृप्त एवं संतुष्ट करना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य बन जाता है | पितरों को संतुष्ट करने के लिए तर्पण , पिंडदान , श्राद्ध तथा ब्राह्मण भोजन आदि की व्यवस्था बताई गई है | पितरों का तर्पण करने में सबसे महत्वपूर्ण है काला तिल एवं कुशा | इनके बिना तर्पण को पूर्ण नहीं माना जाता | काला तिल एवं कुशा की उत्पत्ति भगवान वाराह के शरीर से हुई थी इसलिए इनको अति पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना गया है | बिना तिल एवं कुशा के तर्पण को पूर्ण नहीं माना जाता | तर्पण के बाद श्राद्ध के दिन ब्राम्हण भोजन कराने के पहले पंचबलि का विधान है , जिसका तात्पर्य है कि भोजन से पहले 5 पत्तों पर भोजन निकाल कर के पंचवलि की जाती है | प्रथम पत्ता गाय के लिए , दूसरा पत्ता कव्वे के लिए , तीसरा पत्ता कुत्ते के लिए , चौथे पत्ते पर देवादिबलि एवं पांचवें पत्ते पर पिपीलिका अर्थात चींटी के लिए भोजन का भाग दिया जाता है | बिना पंचबलि किये यह भोजन को पूर्ण नहीं माना जाता तथा किसी को भी श्राद्ध का फल नहीं प्राप्त होता | हमारे पूर्वजों का मानना था कि मनुष्य की कमाई में पूरे सृष्टि का हिस्सा है यथा समय सबको सब का भाग देना मनुष्य का कर्तव्य है | धर्म शास्त्रों में बताये गये दिशानिर्देशों का पालन करके ही मनुष्य समस्त कर्मों को संपन्न कर सकता है अन्यथा कोई भी कर्म दिखावा मात्र बनकर रह जाता है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को श्राद्ध कर्म पूर्ण श्रद्धा के साथ दिशा निर्देशानुसार ही करना चाहिए |*
*आज लोग अपने पितरों के लिए तर्पण , पिंडदान श्राद्ध करके ब्रह्मा भोजन तो करा रहे हैं परंतु प्राय: लोग पंचबलि का विधान नहीं कर रहे हैं जबकि पंचबलि किए बिना श्राद्ध की पूर्णता नहीं होती | कुछ लोग तो यह भी विचार करते हैं कि गाय के लिए भोजन निकालना तो उचित है लेकिन कव्वे एवं कुत्ते के लिए भोजन किस आधार पर निकाला जाय ? जिन लोगों के मन में इस प्रकार के प्रश्न उठते हैं उनको मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह बताना चाहूंगा की सनातन धर्म का कोई भी विधान मिथ्या नहीं है | पंचबलि क्यों की जाती है इसके लिए हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि ब्रह्मा जी की सृष्टि में प्रथम प्राणी गाय हैं | गाय में तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है इसलिए प्रथम भोजन गाय के लिए निकाला जाता है | कव्वे को पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है इसलिए कौवे के लिए भोजन निकाल कर के तब पंचबलि की जाती है पंचबलि में कुत्ते के लिए भोजन निकाला जाता है जिसे यमराज का प्रतिनिधि माना जाता है | इस प्रकार अनेक विधान ऐसे हैं जिनके विषय में हम ना तो जानते हैं और ना जानना चाहते हैं यही कारण है की श्राद्ध या अन्य कोई भी कर्म करने के बाद भी मनुष्य को पूर्ण फल नहीं मिल पा रहा है क्योंकि आज मनुष्य सारा काम अपने मन से करना चाहता है | वह शास्त्रों में दिए गए दिशा-निर्देश को अनजान बनकर के नकार देता है | आज भी कर्मों का फल मिलता है आवश्यकता है उसे विधि विधान के साथ करने की |*
*पितृदोष से बचने एवं पितृऋण उतारने का सबसे सरल साधन है श्राद्ध कर्म | श्रद्धा के साथ पूर्ण विधि-विधान बनाकर यदि यह कर्म कर दिए जाते हैं पितृदोष समाप्त हो जाता है परंतु हम सुनी सुनाई बातों पर ध्यान अधिक देते हैं और शास्त्रों के दिशा निर्देश को नहीं मान रहे हैं |*