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पितृपक्ष :- आचार्य अर्जुन तिवारी

27 सितम्बर 2021

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*सनातन धर्म संस्कृति में आश्विन कृष्ण पक्ष अर्थात पितृपक्ष का बड़ा महत्व है | ऐसा कहा जाता है कि इन १६ दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध , तर्पण एवं पिंडदान आदि करना सभी का कर्तव्य है | जो भी अपने पितरों के नाम पर श्राद्ध , तर्पण एवं पिंडदान आदि नहीं करता है वह सनातन हिंदू नहीं माना जा सकता है !  क्योंकि सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर का त्याग करने के बाद जीवात्मा चंद्रलोक की की ओर गमन करती हो और उससे भी ऊंचे उठकर पितृलोक में पहुंचती है | ऐसे में इन मृतात्माओं को वहां तक पहुंचने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है और यह शक्ति उनको पिंडदान और श्राद्ध के विधान से प्राप्त होती है | श्राद्ध में पितरों के नाम पर यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन एवं दान भी किया जाता है शास्त्रों के अनुसार इस पुण्य फल से ही पितरों का संतुष्ट होना माना गया है | पितरों के आशीर्वाद से आयु , पुत्र , यश , बल , वैभव , सुख और धन धान्य की प्राप्ति होती है | इसलिए सनातन धर्म में आश्विन मास के कृष्णपक्ष में प्रतिदिन नियम पूर्वक स्नान करके पितरों का तर्पण किया जाता है | जो दिन (मृत्युतिथि) उनके पितरों का होता है उस दिन अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार ब्राम्हण भोजन कराकर उन्हें वस्त्र आदि दान देकर संतुष्ट किया जाता है | ऐसा करने पर ही पितर संतुष्ट एवं शक्तिमान बनते हैं तथा परिवार को ढेरों आशीर्वाद प्रदान करते हैं |*


*आज लोग आधुनिक हो गये हैं | पितृकर्म , श्राद्ध , पिण्डदानादि को ढोंग एवं अन्धविश्वास मानने लगे हैं | यही कारण है कि आज कहने को तो लोग अनेकों प्रकार के धर्म कर्म करते रहते हैं परंतु पितरों के श्राद्ध के नाम पर अवहेलना ही दिखाई पड़ती है | अपने पितरों को कोई याद भी नहीं करना चाहता जबकि तर्पण एवं श्राद्ध पिता ,  पितामह और प्रपितामह अर्थात तीन पीढ़ियों के लिए किया जाता है | श्राद्ध कर्म करते समय जिस वस्तु की सबसे अधिक आवश्यकता होती है उसे श्रद्धा कहा गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि बिना श्रद्धा के किया हुआ श्राद्ध कदापि फलीभूत नहीं होता है | मृतात्मा के प्रति श्रद्धा पूर्वक किए गए कार्य को ही श्राद्ध कहा जाता है | श्राद्ध से श्रद्धा जीवित रहती है और पितरों के लिए श्रद्धा प्रकट करने का माध्यम केवल श्राद्ध ही है | पितृपक्ष में तर्पण करने से पितरों के जीवन का उत्थान होता है , उनको शांति मिलती है तथा पितरों की अंतरात्मा से तर्पण करने वाले के प्रति आशीर्वचन निकलते हैं |:इसलिए जीवन को सुखमय बनाए रखने हेतु प्रत्येक मनुष्य को पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध तर्पण आदि कर्म अवश्य करते रहना चाहिए |*


*सौभाग्य से यदि सनातन हिन्दू के घर जन्म हुआ है तो सनातन की मान्यताओं को मानना ही चाहिए | जो मान्यताओं को न मानकर इन्हें ढोंग और अन्धविश्वास कहते हैं उनका हिन्दू के घर जन्म लेना ही व्यर्थ है |*

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आचार्य अर्जुन तिवारी

आचार्य अर्जुन तिवारी

जी अवश्य पढूँगा

27 सितम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

माननीय आपके लेख हमारी संस्कृति के लिए बहुत जरूरी है। कृपया इस विषय पर मेरा लेख कन्यादान Vs कन्यामान पढ़े।

27 सितम्बर 2021

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रचनाएँ
AcharyaArjunTiwari
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