*सुनु खगेस हरि भगति बिहाई !*
*जे सुख चाहहिं आन उपाई !!*
*ते सठ महासिंधु बिनु तरनी !*
*पैरि पार चाहत जड़ करनी !!*
यह मानव शरीर बड़ी ही तपस्या एवं पूर्वजन्मों के पुण्यकर्मों के कारण ही मिला है ! इस शरीर को पाकर जो विषयों में लिप्त हो जाता है उसे सावधान करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं :-
*साधन धाम मोक्ष कर द्वारा !*
*पाइ न जेहि परलोक संवारा !!*
यह मानव शरीर साधना का धाम है ! साधना कौन सी करे ? तो भाई ! अनेक प्रकार की साधना की बताई गई है परंतु सबसे सरल साधना के विषय में विचार किया जाए तो वह भगवान की भक्ति करना! यह साधना की प्राथमिक अवस्था हे ! क्योंकि जब तक हृदय में भक्ति नहीं होगी तब तक कोई भी साधना करने की इच्छा ही नहीं होगी | *जैसे अनेक प्रकार पकवान बनाये जायं और उन पकवानों में नमक न डाला जाय तो वे अनेकों प्रकार के पकवान बेकार हैं उसी प्रकार यदि जीवन में भक्ति नहीं है तो जीवन बेकार है ! *तुलसीदास जी* कहते हैं:--
*भगतिहीन नर सोहइ कैसे !*
*लवन बिना बहु बिंजन जैसे !!*
और इस जीवन में बड़े बड़े दान पुण्य करने के बाद यदि मनुष्य भक्ति सहित हरि भजन नहीं कपता है तो *तुलसीदास जी* बता देते हैं कि :--
*बिनु हरि भजे न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल !!*
जैसे बिना नाव के नदी को नहीं पार किया सकता , समुद्र में नहीं उतरा जा सकता *उसी प्रकार बिना हरि भक्ति के भवसागर को कदापि नहीं पार किया जा सकता !*
भक्ति के बिना मानव का जीवन कैसे है *इस पर एक भाव अपना भी है कि :--*
*बुद्धि बड़ी चतुराई बड़ी ,*
*मन में ममता अतिसय लिपटी है !*
*ज्ञान बड़ो धनवान बड़ो ,*
*करतूत बड़ी जग में प्रकटी है !!*
*गज बाजिहुँ द्वार मनुष्य हजार ,*
*तो इन्द्र समान में कौन घटी है !*
*सो सब विष्णु की भक्ति बिना ,*
*मानो सुन्दर नारि की नाक कटी है !!*
कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे बहुत सुन्दर नारी हो , नख से सिख तक श्रृंगार भी खूब किया हो *परंतु उसकी नाक कटी हो तो क्या वह सुंदर लगेगी ?*
उसी प्रकार बिना भक्ति के मनुष्य कुछ भी नहीं प्राप्त कर सकता ! भोतिक साधन तो प्राप्त कर सकता है परंतु भवसागर को पार करने के लिए *भक्ति रूपी साधन को साधना ही पड़ेगा*
*जय जय सियाराम*