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आत्मनिरीक्षण - आचार्य अर्जुन तिवारी

11 जनवरी 2022

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*हमारे पूर्वज सद्विचार एवं सद्भाव के माध्यम से समाज में स्थापित हुये | उनके आचार -;विचार , व्यवहार समाज के लिए प्रगतिशील थे | उसका कारण था कि वे समय-समय पर आत्म निरीक्षण करते रहते थे | यही आत्म निरीक्षण उनको एक दिशा प्रदान करके उनको अच्छा बनाता था | जो मनुष्य आत्म निरीक्षण करता रहता था उसे दूसरों की अपेक्षा अपने अंदर की बुराई दिखाई पड़ने लगती थी और वह उनको दूर करने का प्रयास करते थे | जिस दिन मनुष्य के अंदर की बुराई समाप्त हो जाती है उस दिन उसमें नम्रता आने लगती है और विनम्रता का स्वभाव मनुष्य को समाज में एक स्थान प्रदान करता था | लोग अपने मान - सम्मान से ऊपर उठकर राग , द्वेष , ईर्ष्या , मद , मत्सर आदि से किनारा कर लेते थे | यही कारण रहा है कि हमारे पूर्वज महापुरुषों की श्रेणी में आए और हमारा देश भारत विश्व गुरु के पद पर पदासीन हुआ था | संसार के लोग भले ही उन्हें अच्छा मानते थे परंतु वे स्वयं को कभी भी अच्छा नहीं मानते थे क्योंकि वे जानते थे यह मानव शरीर उस खेत की तरह है जिसमें समय-समय पर दुर्गुण रूपी घास उग आती है | हमारे पूर्वज अपने हृदय से समय-समय पर इन्हीं दुर्गुणों को साफ किया करते थे समाज में मिलने वाले सम्मान से उन्हें कभी अहंकार नहीं प्रकट होता था और वे अपने विचार समाज में रखते तो थे परंतु उसे मानने के लिए किसी को बाध्य नहीं करते थे | उनके विचार ऐसे होते थे कि लोग उसे मानने पर स्वयं विवश हो जाते थे | इसका एक ही कारण था कि हमारे पूर्वज दूसरों को अच्छा बनाने की अपेक्षा सबसे पहले स्वयं अच्छा बनने का प्रयास करते थे |*


*आजलसमाज का परिदृश्य परिवर्तित दिखाई पड़ रहा है | आज लोग दूसरों को तो अच्छा बनाना चाहते हैं परंतु अपने अंदर के दुर्गुण उनको नहीं दिखाई पड़ते | यदि समाज में कुछ लोगों ने उसे अच्छा मान लिया तो उसके अंदर अहंकार उत्पन्न हो जाता है और यही अहंकार समस्त सद्विचारों का नाश कर डालता है और मनुष्य अनर्गल व्यवहार करने लगता है | स्वयं को ही महापुरुष मानते हुये स्वेच्छा से अपने विचार समाज के ऊपर थोपने का प्रयास आज किया जा रहा है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि संसार के लोग तुम्हें भले अच्छा मानते हो तुम्हारी प्रसिद्धि भी हो गई हो इससे यह कभी नहीं मान लेना चाहिए कि तुम वास्तव में अच्छे हो गए हो क्योंकि मनुष्य अच्छा तब बनता है जब उसका मन निर्मल होता है | मन से कुविचारों का सर्वथा अभाव हो जाता है |  आज यह नहीं देखने को मिल रहा है क्योंकि आज कोई भी आत्म निरीक्षण करना ही नहीं चाहता | यही कारण है कि आज समाज में यत्र तत्र सर्वत्र विवाद दिखाई पड़ता है | अपने ही विचारों को महान मान करके उसे अपना स्वभाव बना लेने वाले आज समाज में सर्वत्र दिखाई पड़ रहे हैं | जिस दिन मनुष्य स्वयं अच्छा बनकर दूसरों के समक्ष शुभ विचार प्रस्तुत करना प्रारंभ कर देगा उसी दिन वह अच्छा माना जा सकता है | परंतु आज के परिवेश में ऐसे मनुष्य बहुत कम ही दिखाई पड़ते हैं | यहां तो प्रत्येक मनुष्य में "एकोहम द्वितीयो नास्ति" की भावना स्पष्ट दिखाई पड़ रही है | मैंने जो कहा वही सही है बाकी सभी गलत है ऐसा मान करके लोग अहंकार में भरे बैठे रहते हैं | जिसके कारण समाज में उन्हें अच्छा नहीं माना जाता | प्रत्येक मनुष्य को अच्छा बनने का प्रयास करना चाहिए परंतु इसके लिए दूसरों की अपेक्षा अपने दोषों को देखना होगा , आत्मनिरीक्षण करना ही होगा |*


*जिस दिन मनुष्य आत्म निरीक्षण करने की कला सीख जाता है उस दिन के बाद उसे कोई भी बुरा नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि आत्म निरीक्षण करने के बाद वह सबसे पहले अपने दोषों को देखकर उसे दूर करने का प्रयास करता है | अपने ही दोषों को दूर करने में उसका जीवन व्यतीत हो जाता है ऐसे में वह दूसरों के दोष देखने का समय ही नहीं पाता | तब लोग उसे एक अच्छा मनुष्य कहने लगते हैं |*

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AcharyaArjunTiwari
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