*सनातन धर्म स्वयं अद्भुत है एवं वैज्ञानिकता को समेटे हुए है | हमारे धर्म शास्त्रों का मानना है कि मनुष्य मृत्यु के उपरांत कर्मानुसार अन्य लोकों / योनियों में चला जाता है | प्रत्येक मनुष्य को अपने पितरों के लिए पितृकर्म अवश्य करना चाहिए | विशेष अवसर हमें प्राप्त होता है आश्विन कृष्ण पक्ष में जिसे पितृपक्ष कहा जाता है | हमारी मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में आते हैं तब परलोक से पितृ अपने परिजनों के पास आ जाते हैं | देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं | पिता को वसु के समान , दादा को रुद्र के समान एवं परदादा को आदित्य के समान माना जाता है | श्राद्ध करने के पहले मनुष्य को अपने पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए | तर्पण करते समय एक बात अवश्य ध्यान रखें तर्पण का जल सूर्योदय के आधे प्रहर तक अमृत होता है , एक प्रहर तक शहद के समान , डेढ़ प्रहर तक दूध के समान और तीन पहर तक जल के समान हो जाता है | तिलांजलि के रूप में हमारे द्वारा किया गया तर्पण हमारे पितरों को प्राप्त होता है | प्रत्येक मनुष्य को सूर्योदय से आधे प्रहर के मध्य अपने पितरों का तर्पण कर देना चाहिए जिससे कि वह जल हमारे पितरों को अमृत रूप में प्राप्त हो | श्राद्ध पक्ष में जल और तिल से दिया हुआ तर्पण पितरों को तृप्त कर देता है | सनातन धर्म दूसरों को जल पिलाना सबसे बड़ा पुण्य कार्य कहा गया है ! उसी प्रकार अपने पितरों को जलांजलि प्रदान करना बहुत ही महत्वपूर्ण है | पितरों को जलांजलि अर्थात तर्पण देकर के मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है क्योंकि जिसके पितर संतुष्ट हो जाते हैं वह सुख ऐश्वर्य का भोग करता है | पितरों का तर्पण करना मनुष्य के लिए एक अद्भुत अवसर है जिससे वह अपने पितरों को जल और तिल उत्तम रूप में पहुंचा सकता है | वसु , रुद्र एवं आदित्य देवता हमारे जल को , हमारे तर्पण को हमारे पितरों तक पहुंचाते हैं | श्राद्ध एवं तर्पण के द्वारा पितरों को परम संतुष्टि प्राप्त होती है जिससे पितृगण प्रसन्न होकर अपने परिजनों को दीर्घायु , संतान , सुख , धन-धान्य , विद्या , राज्य सुख , यश , कीर्ति , स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान कर देते हैं |*
*आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सनातन धर्म के अनुयायी अपने कर्मकांड को भूलते चले जा रहे हैं | पितरों का तर्पण कैसे किया जाता है ? क्यों किया जाता है ? इसके विषय में अधिकतर लोग जानते ही नहीं हैं | यही कारण है कि लोग सब कुछ करने के बाद भी परेशान दिखाई पड़ते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि जिस प्रकार लोग संसार को दिखाने के लिए गर्मी के महीनों में स्थान स्थान पर प्याऊ एवं जल की व्यवस्था आम जनमानस के लिए करते हैं उसी प्रकार यदि पितृपक्ष में अपने पितरों को जल प्रदान करने का प्रयास करें तो शायद उनके पुण्य संचित होता चला जाय ! परंतु लोग संसार को दिखाने के लिए जल दान तो कर रहे हैं पर अपने पितरों के लिए जलांजलि देना उन्हें ढोंग एवं अंधविश्वास लगता है | प्रत्येक मनुष्य को तर्पण की विधि एवं उसके महत्व को जानने का प्रयास अवश्य करना चाहिए क्योंकि जिस घर में पितरों को तर्पण नहीं किया जाता है उस घर में सुख शांति कभी भी नहीं आ सकती | बाहरी दिखावे में भले ही मनुष्य राजा की भांति जीवन यापन कर रहा हो परंतु जिसके पितर संतुष्ट नहीं होते वह अंदर से खोखला ही होता है | पितरों को श्रद्धा भाव से दिए हुए जल से ही तृप्ति हो जाती है , वे संतुष्ट हो जाते हैं परंतु मनुष्य ना तो श्रद्धा उत्पन्न कर पा रहा है और ना ही पितरों को जल देना चाहता है , तो भला उनको सुख और संतुष्टि कैसे प्राप्त हो सकती है ? हमारे पितर हमसे धन - ऐश्वर्य कुछ भी नहीं मांगते | अपना सब कुछ हमको देकर चले जाने वाले पितर हमसे एक अंजलि जल की आशा रखते हैं और मनुष्य को यह भी नहीं कर पा रहा है , इसीलिए परेशानियों के मकड़जाल में मनुष्य घिरा हुआ है |*
*जल , तिल , मधु , दूध आदि से तिलांजलि देकर अपने पितरों को श्राद्ध पक्ष में संतुष्ट करना प्रत्येक परिजन का कर्तव्य बनता है ऐसा करके ही मनुष्य सुखी एवं ऐश्वर्यशाली बन सकता है |*