*इस संसार में ईश्वर ने सभी जड़ चेतन को एक विशेष गुण प्रदान किया | वही गुण उसको विशेष बनाते हैं | इस संसार में ईश्वर ने भाँति - भाँति के मनुष्यों की रचना की है | देखने में तो एक जैसे लगने वाले सभी मनुष्यों की मनोवृत्ति , आचार - विचार सब भिन्न-भिन्न होते हैं | कुछ लोग तो इतने सहृदय होते हैं कि उनको कुछ भी कहो परंतु उनकी सहृदयता बनी ही रहती है परंतु इसी समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें दुष्टता कूट-कूट कर भरी होती हैं | ऊपर से बहुत ही सुंदर दिखने वाले यह लोग अंदर से बहुत ही काले होते हैं क्योंकि इनका हृदय ही काला होता है | नकारात्मकता इनमें कूट-कूट कर भरी होती है | ऐसे लोग स्वयं को बहुत ही बुद्धिमान समझते हुए जो भी कार्य करते हैं उस पर स्वयं ही प्रसन्न होते हैं | समाज के देखने में वह कार्य भले ही विपरीत हो परंतु ऐसे लोगों को लगता है कि मैंने जो किया बहुत अच्छा किया | उनके इस कार्य से देश , समाज या परिवार यदि टूटता भी है तो भी उनके ऊपर इसका कोई प्रभाव नहीं होता और वे अपने किए पर प्रसन्न होते रहते हैं | जैसे सोने के कलश में जहर भरा हो उसी प्रकार यह लोग ऊपर से तो बहुत चिकनी - चुपड़ी बातें करते हैं परंतु भीतर से वह सदैव तोड़ने वाला प्रयोग ही किया करते हैं | भारत के इतिहास में ऐसे अनेक लोग देखने को मिल जाते हैं जिन्होंने समाज एवं परिवार को तोड़ने का कार्य किया है ऐसे लोग अपने कृत्य पर थोड़ी देर के लिए भले ही प्रसन्न हो जाएं परंतु इनका परिणाम अंततोगत्वा दुखद ही होता है क्योंकि इनकी यह कूटनीति एवं छल बहुत दिन तक छुपा नहीं रह पाता और जब भी उजागर होता है तो समाज ऐसे लोगों को बहिष्कृत कर देता है | समाज से बहिष्कृत होने के बाद भी ऐसे लोग स्वयं की गलती को नहीं मानते हैं और समाज के ऊपर ही दोषारोपण करने लगते हैं , परंतु समाज जब ऐसे लोगों को पहचान लेता है तो उन्हें कभी भी अपने साथ बैठने का अवसर नहीं प्रदान करता |*
*आज ऐसे लोगों की अधिकतर समाज में दिखाई पड़ रही है जो ऊपर से तो बहुत सुंदर दिखते हैं , सुंदर-सुंदर बातें करते हैं और बहुत ही लच्छेदार उपदेश भी देते हैं परंतु इनकी मनोवृत्ति इतने सत्संग करने के बाद भी नहीं सुधर पाती | किसी के परिवार को तोड़ना सबसे बड़ा पाप कहा गया है परंतु ऐसे लोग यह पाप करने से भी नहीं घबराते | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि अनेकों ऐसे लोग टहल रहे हैं जो उसी परिवार में बैठते हैं और परिवार के मुखिया को अपना परम प्रिय भी बताते हैं परंतु उसी परिवार का जब कोई सदस्य परिवार से रूठ जाता है तो उसे समझा कर परिवार में वापस लाने के स्थान पर उस सदस्य को अलग रहने की व्यवस्था तुरंत कर देते हैं , और फिर उसी परिवार के मुखिया से यह भी कह देते हैं कि भाई ! जब वह परिवार छोड़कर निकला तो मैंने सोचा कि आपके परिवार का सदस्य है तो कहीं रहने की व्यवस्था कर दी जाए | विचार कीजिए ऐसे व्यक्ति आपके हितेषी हैं या फिर आप के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं | ऐसे व्यक्तियों की पहचान करके उनको स्वयं से अलग करने में ही भलाई होती क्योंकि सर्प को कितना भी दूध पिलाओ वह अपना स्वाभाविक गुण कभी नहीं छोड़ पाता | जब भी अवसर मिलेगा वह दूध पिलाने वाले को ही डस लेता है | ऐसे लोग समाज के , परिवार के हितैषी कभी भी नहीं हो सकते हैं | इसलिए अपना हित और अहित देखकर प्रत्येक मनुष्य को कार्य करना चाहिए | जो भी मनुष्य ऐसे लोगों की पहचान नहीं कर पाता और उनकी लच्छेदार बातें सुनकर इस भ्रम में रहता है यह हमारा परम हितेषी है वही आगे चलकर पश्चाताप की अग्नि में जलता है |*
*प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर ने विवेक दिया है | अपने विवेक से ऐसे लोगों की पहचान करके उनसे दूरी बना लेने में ही भलाई है अन्यथा एक दिन ऐसा आता है जब ऐसे लोगों की संगत में पड़कर मनुष्य स्वयं अकेला पड़ जाता है |*