*सनातन धर्म में पर्व एवं विशेष दिनों का बड़ा महत्व हैं | इन्हीं विशेष दिनों में अपने पितरों के लिए तर्पण करने का अवसर हमको पितृपक्ष में मिलता है | सनातन धर्म के मानने वाले सभी लोग अपने पितरों को तृप्त करने के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तर्पण एवं श्राद्ध करते हैं , परंतु विशेष जानकारी न होने के कारण उनको श्राद्ध एवं तर्पण का यथोचित फल नहीं प्राप्त हो पाता , और उनके पितर संतुष्ट नहीं हो पाते | किस का श्राद्ध कब करें ? इसके विषय में हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जिन व्यक्तियों की सामान्य एवं स्वाभाविक मृत्यु चतुर्दशी को हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को कदापि नहीं करना चाहिए , बल्कि पितृपक्ष की त्रयोदशी अथवा अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए | जिन व्यक्तियों की अपमृत्यु हुई हो , अर्थात किसी प्रकार की दुर्घटना , सर्पदंश , विष , शस्त्रप्रहार , हत्या , आत्महत्या या अन्य किसी प्रकार से अस्वाभाविक मृत्यु हुई हो , तो उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन कदापि नहीं करना चाहिए | अपमृत्यु वाले व्यक्तियों को श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए , चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो | सौभाग्यवती स्त्रियों की अर्थात पति के जीवित रहते हुए ही मरने वाली सुहागिन स्त्रियों का श्राद्ध भी केवल पितृपक्ष की नवमी तिथि को ही करना चाहिए , चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो | संन्यासियों का श्राद्ध केवल पितृपक्ष की द्वादशी को ही किया जाता है , चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो | नाना तथा नानी का श्राद्ध भी केवल अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ही करना चाहिए , चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो | स्वाभाविक रूप से मरने वालों का श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को करना चाहिए | इसके अतिरिक्त पितरों की मृत्यु तिथि का विशेष ध्यान भी रखते हुए श्राद्ध सम्पन्न करे | इस प्रकार अपने पितरों की विशेष तिथि जानकर यथासमय उनका श्राद्ध करके हम उनको संतुष्ट कर सकते हैं और पितर संतुष्ट होकर हमको अनेक प्रकार के आशीर्वाद देकर पितृलोक को गमन करते हैं |*
*आज लोग श्राद्ध करते हैं तर्पण भी नित्य करते हैं परंतु कहीं ना कहीं से उनको इसका यथोचित फल नहीं मिल पा रहा है | इसका एक ही कारण है कि हम आज आधुनिक हो गए हैं | अपने पितरों की मृत्यु तिथि नहीं याद रख पा रहे हैं | अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख तो हम लिख कर रख लेते हैं परंतु सनातन धर्म के अनुसार उन तिथियों को नहीं याद रख पाते हैं जिन तिथि को हमारे पितरों की मृत्यु हुई होती है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि यही कारण है कि सब कुछ करने के बाद भी हमको पितरों की ओर से कष्ट ही मिल रहा है | कुछ लोग यह भी कहते हैं कि श्राद्ध एवं तर्पण करने से मतलब है वह चाहे जिस दिन कर दिया जाये | ऐसा कहने वालों को यह बात ध्यान रखना चाहिए कि जिस प्रकार प्रत्येक देवी - देवता का एक विशेष दिन होता है उसी प्रकार पितरों की तिथि भी महत्वपूर्ण होती है | अन्य दिनों में किए गए पूजा पाठ की अपेक्षा विशेष दिनों में किया गया अनुष्ठान जिस प्रकार अधिक फल प्रदान करता है उसी प्रकार पितरों की तृप्ति के लिए पितृपक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध मृत्युतिथि पर करने पर अधिक फलदायी होता है , और इससे पितर संतुष्ट होकर के हम को आशीर्वाद प्रदान करते हैं | प्रत्येक मनुष्य को अपने पितरों की मृत्यु तिथि अवश्य जानना चाहिए क्योंकि बिना तिथि विशेष के किया हुआ श्राद्ध पितरों को संतुष्ट नहीं कर पाता और पितर असंतुष्ट होकर के अनेक प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न करते हैं | दिन विशेष एवं तिथि विशेष का बड़ा ही महत्व है , प्रत्येक मनुष्य को यह चाहिए कि जिस प्रकार वह अपनी एवं अपने बच्चों की जन्म तिथि सहेज कर रखता है उसी प्रकार अपने पितरों की मृत्यु तिथि भी सहेज कर रखें जिससे कि उस विशेष दिन पर श्राद्ध करके पितरों को संतुष्ट किया जा सके |*
*हमारे पितर हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना हमारे परिवार के जीवित स्वजन | हमें अंग्रेजी तारीख की अपेक्षा उनकी मृत्यु तिथि को सहेजने का प्रयास करना चाहिए जो अधिकतर लोग नहीं कर पा रहे हैं |*