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ग़ज़ल।।{ "कारवां यादों का,"}

27 फरवरी 2024

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कारवां यादों का था, जो गया ही न,
बहुत रोए फांसला था,जो गया ही न।।

रुखसतें वो रूखसार से ,कुछ  यूँ  हुई,
सीरत से सूरत का नशा,गया ही न।।

बोल, हाव-भाव, बने रकीब थे,
हौंसला बात करने का ,गया ही न।।

वो वहम मे अपने हुस्न के कुछ यूँ रही,जैसे ,
हुस्न से, बिछुड कर कोई ,गया ही न।।

गुरब्बत  उसकी मोहब्बत की सदा रही,जैसे,
अमीरी से ,वास्ता वफा का, गया ही न।।

चालाकियाँ शागिर्द उसकी यूँ रही,जैसे,
बचकानियों का, जमाना अभी गया ही न।।

वो कत्ल कर, मोहब्बत की भी खामोश रही ,
बहाना मासूमियत का संदीप गया ही न।।
=/=
मौलिक लेखन,
संदीप शर्मा।।


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रचनाएँ
बात माशूक से।
0.0
यहा हम ग़ज़ल कहेंगे, चूक भी गए जो नियम बंधन से, महबूबसे बात,तो भी करेगे।। =/= पूछते है,वो ये ग़ज़ल क्या है, महबूब से बात का इक जरिया है।। =/= संदीप शर्मा।।

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