ग़ज़ल," उम्मीद न कर। "
मुझसे, मेरे, होने की, ताकीद न कर,
डर पर मुझसे ,डरने की, तस्दीक न कर।।
मैं जो वक्त ,सा कही, फिर चला गया,
लौट आऊं गा, कही, उम्मीद न कर।।
बहुत हुआ, तो थोड़ा कही, जो ठहर गया,
रूक ही जाऊंगा ,मुझे, जंजीर न कर।।
नादानियाँ ,मेरी को तू,रूसवा ही कर,
देख मुझे ,बादशाह से तू ,फकीर न कर।।
दौलत मेरी,मैं ही हूँ ,मेरी सी वही,
कर मिलावट ,उसमे तू,रकीब न कर।।
धनवान हूँ, मैं लुटा पुटा,अमीर संदीप,
बता कर सबको ,तू मुझे ,गरीब न कर।।
कर तू सब , अपने ही मन की, खूब कर ,
पर मेेेरे मन की ,मैली तू ,तस्वीर न कर।।
=/=
संदीप शर्मा।।
रदीफ ,काफिया आप ही बताए।।
यह लिखा था।पर सीमान जी ने इसे निखार दिया,,कैसे, जी ऐसे।।मुझसे उम्मीद न करियो। *ग़ज़ल "उम्मीद न करियो।*
मुझसे तू, मेरे होने की, ताकीद न करियो,
डर पर भी मुझसे ,डरने की, तस्दीक न करियो।।
मैं वक़्त सा गुज़रता चला जाऊं जो कभी,
फिर आऊंगा मैं लौट, ये उम्मीद न करियो।।
थोड़ा कही, कुछ देर ठहर जाऊं मैं अगर,
रूक जाऊंगा तू ,मुझको, जंजीर न करियो।।
नादानियाँ सब मेरी रुसवा ही रहने दे,
मुझ बादशाह को देख तू फकीर ना करियों
दौलत तो मेरी,मैं ही हूँ ,उसमे तू मेरी सी,
कर के मिलावट ,उसमे तू,रकीब न करियो।।
कर अपने मन की सारी, मगर याद ये रखना,
मन की हमारी ,मैली तू ,तस्वीर न करियो।
धनवान था मैं हां भले अब लुट गया संदीप,
सबको बता कर ,तू मुझे ,गरीब न करियो।।
*संदीप शर्मा*