‘गाँधी की शव परीक्षा ’ में शोषण में निरीहता , अहिंसा और दरिद्रनारायण की सेवा आदि सिद्धान्तों का मूल्यांकन करते हुए कहा गया है कि ‘गाँधी वाद’ जनता की मुक्ति , सामन्तकाली न घरेलू उद्योग-धंधों और स्वामी सेवक के सम्बन्ध की पुनः स्थापना में समझता है जो इतिहास की कब्र में दफन हो चुकी हैं। मुर्दा व्यवस्थाएँ आदर्श समाज को विकास की ओर ले जाने का काम नहीं कर सकतीं । उनका उपयोग, उन्हें समाप्त कर देने वाले कारणों को समझने के लिए या उनकी शव-परीक्षा के करने के लिए हो सकता हैं ।
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