यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है ! यह आधर्बुऊत प्रस्थान बिंदु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज्यादा तरल रूप में, ज्यादा गहरे के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर आते हैं ! उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है ! प्रेमचंद के जीवनकाल में ही वे कथा-यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचित विलम्ब से से आरम्भ हुआ ! कहानीकार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने प्रेमचंद के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी-कला का विकास किया ! उनकी कहानियों में संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वंद्ध जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई, जो आज तक चली आती है ! वैचारिक निष्ठां, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याय तथा तर्क की कसोटियों पर खरा जीवन-ये कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिंदी कहानी यशपाल की ऋणी है! ‘तर्क का तूफ़ान’ कहानी संग्रह में उनकी ये कहानियां शामिल हैं : निर्वासित, अपनी करनी, तर्क का तूफ़ान, मेरी जीत, जनसेवक, उतरा नशा डायन, सोम का साहस, होली नहीं खेलता, कानून, जादू के चावल, औरत, भाषा, पर्दा, रजा और तर्क का फल!
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