यशपाल के लेखिकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्यायबुद्धि है। यह आधारभूत प्रस्थान बिन्दु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज्यादा तरल रूप में, ज्यादा गहराई के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर आते है। उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है। प्रेमचन्द्र के जीवनकाल में ही वे कथा -यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचिते विलम्ब से आरम्भ हुआ। कहानी कार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने ने प्रेमचन्द के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी -कला का विकास किया । उनकी कहानियों में, संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वन्द्व जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई जो आज तक चली आती है। वैचारिक निष्ठा , निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याया तथा तर्क की कसौटियों पर खरा जीवन—वे कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिन्दी कहानी यशपाल की ऋणी है। ‘उत्तराधिकारी ’ कहानी संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं : उत्तराधिकारी , जाब्ते की कार्रवाई, अगर हो जाता ?, अंग्रेज का घुँघरू, अमर, चन्दन महाशय, कुल-मर्यादा, डिप्टी साहब और जीत की हार।
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