✍️वो शाम हकीकत में बहुत हसीन थी
जो आज केवल ख्वाबों में ही जिंदा है।।
जरूरत की वस्तु की बाकायदा एक व्यवस्था थी
उस दिनचर्या की चाल सुंदर और आहिस्ता थी ।।
घर के हर द्वारे और चौपालों में महफिल सजती थी
हर छत और दीवारें एक-दूजे से हंसी ठिठोली करती थीं ।।
जरूरतें कम थी, परंतु उनका भी न कोई गम था
बुजुर्गों की फिक्र में भी हर किसी का जिक्र था ।।
जो भी पकता वह मिलबांट के परसा करते थे
एक ही थाली में जमकर खाया करते थे ।।
जब से विकास का कीड़ा जन्मा है
लाखों का सुख चैन भी इसने छिना है ।।
चौपाल सुनी, पनघट सूना, ममता का आंचल सूना
हुआ है हर घर के आंगन का कोना-कोना भी सूना ।।
आधुनिकता के पेंच में आज आदमी बना खिलौना
जहां सभी ने है सीखा अपना-अपना दही बिलौना ।।
आज मोबाइल से ही जुड़े हैं रिश्ते यहां
केवल मतलब पर ही होते हैं चर्चे जहां ।।
हर दिन सूरज ढलता और निकलता है
समय पर ही होता शाम और सवेरा है
किंतु न होती वो गांव की प्रात:
और गोधूलि सी बेला है ।। 🙏